रविवार, 19 सितंबर 2010

आतंक के सेकुलर रंग .......

सेकुलर आतंक के रंग
एल.आर.गाँधी

आजाद भारत के लिए जब राष्ट्र ध्वज में तीन रंगों का चयन किया गया तो भगवा रंग को शीर्ष पर और मध्य में श्वेत और फिर हरा अर्थात हरा-भरा धरातल को मान्यता मिली. . डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रध्वज के तीनो रंगों और अशोक चक्र की प्रतीकात्मक व्याख्या की है . महामहिम विश्व के प्रख्यात दार्शनिकों में से एक थे . उन्होंने राष्ट्रध्वज के 'भगवा' रंग को भारतीय संस्कृति में सदियों से रचे बसे आत्मत्याग और वैराग्य का प्रतीक मानते हुए ,हमारे राजनेताओं से भौतिक लाभ का लोभ त्याग कर पूरी निष्ठां और वैराग्य से देश की सेवा करने की आशा जताई . इसी प्रकार श्वेत रंग को सच्चाई और हरे रंग को हरियाली का प्रतीक माना और आशा व्यक्त की कि देश के नेता अपने आचरण में श्वेत रंग सी पारदर्शिता और सच्चाई आत्मसात कर लोक भलाई के लिए भारत भूमि को उपजाऊ बना कर प्रगति का बीजारोपण करेंगे . अशोक चक्र को उन्होंने क़ानून का राज्य और निरंतर प्रगति का प्रतीक माना.
राष्ट्र ध्वज में निहित तीनो रंगों की भावना को हमारे 'सेकुलर राजनेताओं ' ने पिछले छै दशकों में किस कदर साम्प्रदायिक जामा पहना दिया कि तिरंगे की राष्ट्रीय अवधारणा ही ओछी राजनीति के छल प्रपंचों में कहीं तिरोहित सी हो गई. हमारे ग्रहमंत्री श्री श्री पल्निअप्पम चिदंबरम जी को तो अनायास ही भगवे रंग में 'आतंक' लगा दिखाई देने और झट से छोड़ दिया 'भगवे आतंक' का एक नया शगूफा. आतंकी गतिविधियों में निरंतर अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग की संलिप्तता और विश्व पटल पर 'जेहादी' आतंकियों की कारगुज़ारिओं से सेकुलर सरकार कि स्थिति सांप के मुंह में कोहड़किरली की सी हो गई.ग्रह मंत्री जी ने आने वाले बिहार-बंगाल के चुनावों में कांग्रेस की नैया पार लगाने और अल्पसंख्यक वोट बैंक को भुनाने के जुगाड़ में 'भगवे रंग को ही साम्प्रदायिक रंग में रंग कर एक नए आतंक का जिन्न ला खड़ा किया ताकि देश का अल्पसंख्यक इस भगवे आतंक से खौफज़दा हो कर 'कांग्रेस के राजकुमार' के पीछे हो लें.
भगवा रंग वैदिक काल से भारतियों का परम पूजनीय प्रतीक रहा है - अन्याय के विरुद्ध लड़ने को तत्पर आर्य लोग भगवा ध्वज और केसरी परिधान धारण कर युद्ध भूमि में राक्षसों पर टूट पड़ते थे. हिन्दू समाज में जीवन के अंतिम प्रहर में जब मनुष्य मोह माया का त्याग कर संन्यास आश्रम में प्रवेश करता है तो 'भगवे वस्त्र' इस नश्वर संसार से विरक्ति के शाश्वत प्रमाण बन जाते हैं . किसी एक आध अधर्मी के कुकर्मो की आड़ में
भगवे रंग को ही 'आतंक' का पर्याय घोषत करना, क्या कुष्ठ-मानसिकता की अभिव्यक्ति नहीं है. रावन ने भी सीता हरण भगवा वेश में ही किया था. क्या भारतवंशियों ने भगवे को राक्षक-रूप दे दिया था.
अब शान्ति और पारदर्शिता के प्रतीक श्वेत रंग को ही लें .गत छै दशकों में हमारे इन सफेद पोश सेकुलर शैतान काली भेड़ों ने इस श्वेत परिधान की आड़ में इस देश को किस कदर लूटा, किस कदर गरीब जनता का लहू पिया ,किस कदर देश को विभिन्न सम्प्रदायों ,जातियों, वर्गों में बाँट कर अपना उल्लू सीधा किया -यह किससे छिपा है. क्या इन सफ़ेद पोश लुटेरों की काली करतूतों से शांति का प्रतीक 'श्वेत' रंग बदरंग कहलायेगा.
कल को हरियाली, प्रगति और प्रकृति के प्रतीक हरे रंग को कोई पागल 'जेहाद' से जोड़ कर ज़ुल्मो सितम का प्रतीक बना दे तो क्या भारत वर्ष की वसुंधरा 'हरित क्रांति' से अपने जन जन की भूख मिटाने का संकल्प त्याग देगी.

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