बुधवार, 9 दिसंबर 2015

श्वान वृति

श्वान वृति

एल आर गांधी

 कालू -भूरू और भूरी की दिन रात की मेहनत रंग लाई  और उनका परिवार तीन से तेरहं  हो गया है  ...... भूरी का फिर से पैर भारी है !
 ...हमारे देवी जी अपने नित्य कर्म में सुबह के वक्त भूरी को दूध डालना कभी नहीं भूलती !और हाँ ! शाम को तीनो घर के समक्ष कतार में बैठे ब्रांडे की ओर टकटकी लगाए देखते रहते हैं की कब मालकिन उनके परांठे परोसेंगी  ..... हम भोजन मांगें तो सम्राट अशोक देखने के बाद और उनके परांठे सम्राट से पहले। भूरी परिवार का मोहल्ले पर अब एकाधिकार है  .... कोई बाहरी श्वान भूल से भी उनके एरिया की सड़क 'सूंघ' के तो दिखाए सभी कालू -भूरू बहन -भाई टूट पड़ते हैं और बेचारा परदेसी अपनी टांगों में  दबा कर भाग खड़ा होता है।
बढ़ती आबादी को देखते हुए यका यक कार्पोरेशन के अफसरों को मेनका जी की वह नसीहत याद आ गयी जिसमें श्वान संरक्षण के साथ साथ इनकी आबादी पर अंकुश के लिए इनके परिवार नियोजन आप्रेशन का  प्रावधान भी था , सो यूपी से एक  मियाँ जी को इनके ऑपरेशन का ठेका दिया गया   .... किसी कुत्ता -प्रेमी ने मियां जी को फोन पर  धमकी दे दी और मियां जी भी  .... दुम दबा कर भाग खड़े हुए  ..... अब इंतज़ार है उन दिनों का जब ये उन कुत्ता प्रेमियों के बच्चों को नोच खाएंगे और ये कुत्तों के प्रति असह्शुन्ता के विरोध में अपने मेडल मैडम मेनका को लौटाएंगे !
यदि कालू -भूरू और भूरी का यह , हम  दो  हमारे तेरहं का खेल यूँही चलता रहा तो  वह दिन दूर नहीं जब ये अपनी दिन रात की मेहनत के सदके 'उनको ' भी पीछे छोड़ देंगे जो एक की चार और चार के चौदहं की स्पीड से बढ़ रहे हैं  ..... या अल्लाह मेरे भारत को इस प्रतिस्पर्धा से बचाओ !

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