गुरुवार, 24 जनवरी 2013

सच्चे शिव सैनिक -नागा साधू


सच्चे शिव सैनिक -नागा  साधू

         एल आर गाँधी 

 एक हाथ में माला दूजे में भाला ...शरीर पर वस्त्र के नाम पर  मात्र  भस्म-विभूति ...जन्म -मरण से मुक्त ये शिव भक्त केवल कुम्भ पर्व पर ही प्रकट होते हैं ...और लाखों करोड़ों दर्शकों की उत्सुकता का केंद्र बिन्दु  भी  . जहाँ दत्तात्रेय की चरण पादुकाएं समझो वहीँ पर इनका निवास ...ये अखंड शिव भक्त निर्जन स्थान पर बने अपने अखाड़ों में निवास करते हैं ...समाज से दूर व् सामाजिक बन्धनों से मुक्त ........ ठीक वैसे ही जैसे देश की रक्षा में मुश्तैद फौजी अपनी छावनियों में निवास करते हैं। 
 
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने नागा साधू साम्प्रदाय का गठन सनातन धर्म  की रक्षा के महती प्रयोजन से किया था ...एक सैनिक के रूप में इनके हथियार ... त्रिशूल, तलवार, दंड व् युद्ध उद्दघोष के लिए 'शंख ' जिसे ये अपने आराध्य महाकाल 'दत्तात्रेय ' अर्थात भगवान् शिव के आह्वान हेतु भी प्रयोग में लाते हैं। 
1757 में जब अहमद शाह दुर्रानी ने हिन्दुओं के पवित्र स्थल मथुरा ,वृन्दावन और गोकुल में हिन्दुओं के पूजा स्थल-मंदिरों को तोडा   ब्रिन्दावन में जहाँ तीर्थ यात्री होली के पवित्र अवसर पर पूजा अर्चना में मस्त थे ..अहमद शाह के इस्लामिक जेहाद के ज़हर से भरे अफगान सैनिकों ने हजारों लोगों को मौत के घाट  उतार दिया और मंदिरों को लूटा और मिस्मार कर दिया। चारों  और लाशों के ढेर थे और किसी लाश का सर नहीं दिखाई देता था। शाह ने काफिरों 'हिन्दुओं' के सर पर पांच रूपए इनाम घोषित  किया हुआ था .शमीन सरकार एक प्रत्यक्ष दर्शी के अनुसार ' एक स्थान पर हमने देखा की दो सौ मृत बच्चों का ढेर लगा था और किसी भी बच्चे का सर नहीं था। 
  गोकुल में अपने 'अखाड़े' की रक्षा के लिए हजारों की संख्या में बैरागी पंथ के नागा साधू अहमद शाह के अफगान सैनिकों से भिड़  गए ...घमासान युद्ध हुआ ...अफगान सैनिकों के पास घातक हथियारों के साथ साथ अपने बचाव के लिए शरीर पर ज़राबख्तर 'कवच'और एक हाथ में शमशीर 'तलवार' व् दूसरे में ढाल भी थी ...मगर नागा साधुओं के हाथ में केवल त्रिशूल या तलवार ...और बचाव के लिए नंगे शरीर पर मात्र ' भस्म' . युद्ध में 2000 नागा वीर वीरगति को प्राप्त हुए मगर इतने ही अफगान हमलावर भी हलाक हो गए ...घबरा कर शाह ने अपने सैनिकों को वापिस बुला लिया ... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें