सोमवार, 3 जनवरी 2011

धरा- दिनकर का लुका छिपी महोत्सव ....

धरा- दिनकर का लुका छिपी महोत्सव ......

                    एल. आर. गाँधी. 
                               
 आज दिनकर.... धरा... संग लुक्का छिप्पी का खेल खेलेंगे .....
अनादी काल से एक पैर पर गोलाकार नृत्य में निमग्न धरा अपने प्रियतम की परिक्रमा में तल्लीन है और दिनकर भी निरंतर निहारते हुए अपनी उर्जा की पुष्प वर्षा कर उसे अखण्ड  सौभाग्यवती भव की मंगल आशीष से आनंदित कर रहे हैं . भ्रमांड के इन प्रथम प्रेमिओं के सृष्टि सम्भोग का आज महोत्सव है. नए वर्ष में ऐसे छह महोत्सव होंगे और चार जनवरी को इस प्रथम  उत्सव का विश्व मन्चन प्रात्य से  सांय तक चलेगा ...लो ... चाँद ने मंच संचालन का जिम्मा संभाल लिया है.... धरा ने आँखें बंद कर लीं.... और....और  दिनकर ने छुपने का स्थान ढूंढने की कवायत शुरू कर दी...... लो दिनकर छुप गए...और ... और धरा दबे पाँव अपने प्रियतम को ढून्ढ रही है. ...चाँद चुप चाप इस खेल को निहार ..ठंडी आहें भर रहा है. मानो.... तीनों आज सदिओं के बाद इतनी लम्बी छुट्टी पर पिकनिक माना रहे हैं ..पिछले कई दिनों से सूर्या देव इस उत्सव की तैयारी में लगे थे.... बादलों की ओट में छुपने का अभ्यास कर रहे थे... और धरा उनके इस लुका -  छुपी के खेल से पानी पानी हो पिंघल कर जमी जा रही थी .
वैज्ञानिक विशाल काय दूरबीनों से इस महापर्व को निहार रहे हैं और इस महा सृष्टि सम्भोग से पैदा होने वाली उथल पुथल की विवेचना में लगे हैं और हम लोग अपने परलोक की चिंता में ग्रस्त प्रदूषित-पवित्र ठन्डे जल की डुबकियां लगाने में व्यस्त हैं कुरुक्षेत्र की पुन्य भूमि में लोग इस ग्रहण के  दुष्परिणामों  से निजात पाने के लिए धार्मिक अनुष्ठान आयोजित करेंगे.  अपनी भविष्य  विज्ञान  की पोथिओं के गर्भ से 'कुम्भ राशी' के जातको को आतंकित कर , सूर्य ग्रहण से होने वाली विप्पत्तियो से छुट्कारे के उपाए सुझा कर 'मोटी दक्षिणा' बटोराने में,ज्योतिषी  सिध्हस्थ हैं.   और सरकार ने पुन्य भूमि  कुरुक्षेत्र  में छुट्टी  घोषित कर दी है.ब्रह्म सरोवर में डुबकी लगाने के लिए ५ लाख श्रधालुओं के आने की उम्मीद थी - कहते हैं इस वक्त की एक डुबकी जन्म जन्मान्तर के पाप हर लेती है ! मगर सरोवर के घाट को देख कर ऐसा आभास हो रहा था जैसे कहर की ठण्ड के आगे आस्था ठिठुर कर ठिठक गई...कहर की ठण्डी और अनजाने से  परलोक की  चिन्ता में बर्फीले पानी की डुबकी !.. न बाबा न ... .हम तो भई इतनी ठंडी में 'पंच-स्नान ' से ही संतुष्ट हैं और देव लोक प्रद्दत सोम रस की चुस्कियों में विश्व के प्राचीनतम प्रेमियों की रास लीला का लुत्फ़ उठा रहे हैं . 
हमारी गृह लक्ष्मी जी शीतल जल से स्नान कर एक हाथ में दूब के तिनके और दूसरे में गंगा जल का लोटा लिए सारे घर में गंगा जल का छिडकाव कर आसुरी शक्तिओं को बाहर का रास्ता दिखा रहीं हैं. ग्रहण से पूर्व सभी खाद्य पदार्थों में एक-एक दूब का तिनका टिका दिया गया था ताकि सूर्य ग्रहण के दुष्परिणामों से बचे रहे. 
इसे कहते हैं कुंठित मान्यताओं के अंधकूप में डूबते को 'तिनके' का सहारा !

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