शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

शीलाजी के कुत्ते- कलमाड़ी का खेल -और बुरा मान गए फेनेल

शीलाजी के कुत्ते ने बिगाड़ा कलमाड़ी का खेल..
एल.आर.गाँधी.

खिलाडी तो अभी पहुंचे भी न थे - कलमाड़ी जी के खेल गाँव में कि शीलाजी के कुत्ते खेल भी गए. यह देख कर फेनेल साहेब बुरा मान गए और पूरे के पूरे खेल गाँव को गन्दा और वास-अयोग्य करार दे दिया. शहरी आवास मंत्री जैपाल रेड्डी जी ने लाख तर्क दिए कि यह कोई ख़ास बात नहीं. कामन वेल्थ के अधिकारिओं ने तो यहाँ तक कह डाला कि हमारे और उनके सफाई मापदंडों में जमीन असमान का फर्क है. अब हम तो इस बफादार जीव का मुंह चूम लेते हैं -यकीं नहीं तो देवदास में 'दलीप' को दिखा दें . यह तो एक शीला जी का 'सरकारी पालतू' यूँही अपने ही गाँव में सरे राह चलते चलते खिलाडिओं के कमरे में दाखिल हो गया और कलमाड़ी जी के कीमती-मुलायम-आरामदेह-सफेदपोश गद्दों को देख बस जी मचल गया और विदेशी महमान से पहले जांच बैठा कि ' आल इज वैल' . उसे क्या मालूम था कि मुई बरसात का कीचड उसके पैरों में लगा है और पैरों के निशान छप गए गद्दे पर. अब मेहमान की शिकायत पर 'कबिनेट' बैठी और दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट तलब हुई तो दोषी निकला एम् सी डी का कोई 'भूरू' . बस फिर क्या था खेलगांव के सभी ' कालू-भूरू' उठा लिए गए - ५० में से अब एक 'भूरू' के पद चिन्हों के निशाँ की पहचान की जा रही है - दोषी के स्केच भी कल्माडी जी के कलाकारों को बनाने के कांट्रेक्ट जारी हो गए हैं.आशा है खेल ख़त्म होने से पहले 'दोषी पहचान लिया जाएगा बाकी ' ला विल टेक इट्ज़ ऑन कोर्स ' .
'भूरू' काण्ड ने जामा मस्जिद फाईरिंग और दो विदेशिओं के घावो पर से मिडिया का ध्यान हटा दिया और यहाँ तक कि 'कोर्ट का फैसला' भी मिडिया में 'भूरू ' टी आर पी से पिछड़ गया. अब हर टी वी चैनल ने 'भूरू' की तलाश में अपने 'खोजी पत्रकार' दौड़ा दिए हैं -इसके लिए श्वान-घ्राण-शक्ति से लबरेज़ 'वाच-डाग' लगाए गए हैं भई देश के साथ साथ 'शीलाजी' की नाक का भी सवाल जो ठेहरा !अभी वास्तविक महां खेले में तो नौं दिन बाकी हैं और शीला जी की दिल्ली में ऐसे ४ लाख 'कालू-भूरू' बेखौफ दुम उठाए दनदना रहे हैं और उन सब पर 'मेनका जी' का वरद-हस्त सन १९९३ से विद्दमान है. जानवरों पर अत्याचार रोको क़ानून का संरक्षण इन्हें प्राप्त है. कुतों को अब कुत्ते की मौत कोई नहीं मार सकता -हाँ परिवार निओजन नसबंदी से इनकी जनसँख्या पर अंकुश जरूर लगाया जा सकता है. एम् सी डी ने इन्हें मारना तो तुरंत बंद कर दिया पर नसबंदी भूल गई . अब हम दो हमारे छै के हिसाब से बढ़ने वाले इस श्वान समाज में प्रति वर्ष १०००० हजार नए महमान आ जुड़ते हैं. एम् सी डी प्रति वर्ष मात्र ६००० नसबंदी कर पाती है और रेबीज़ रोधक टीकों की कोई कारगर योजना नहीं . एक अनुमान है कि हर साल ३५००० दिल्ली वासी इनका शिकार होते हैं और २-३ दर्जन लोग रेबीज़ की मौत मारे जाते हैं. मेनका जी के क़ानून में पागल कुत्ते को सहज मृत्यु का प्रावधान तो है मगर आज़ाद मियां के क़ानून में रेबीज़ ग्रस्त इंसान के लिए यह सहज मृत्यु नदारद है.
आगामी ९ दिनों में या खेलों के दौरान इन शीला जी के 'सरकारी पालतुओं' में से कोई 'फेंनेल' के खिलाडिओं के साथ खेल गया तो....... और हाँ हमारे पलनिअप्पन चिदम्बरम जी के सुरक्षा घेरे में ये घर के भेदी शीलाजी के बफादार बिलकुल नहीं आते.

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