शनिवार, 28 अगस्त 2010

जिन्ना का पाक.. मोमिन और काफ़िर में जेहाद

जिन्ना का पाक
मोमिन और काफ़िर में जेहाद ....
एल.आर.गाँधी

लाहोर स्थित १००० वर्ष से लाखों मुसलमानों की आस्था का केंद्र रही हज़रत दाता गंज बख्शी सूफी संत की दरगाह को एक जुलाई को तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों ने अपना निशाना बनाया - ५० मुसलमान हलाक हो गए. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान इस सूफी संत की दरगाह को गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोम नाथ के मंदिर के समान मानते हैं ,जिसे सुलतान मुहम्मद गजनबी ने तोडा था. हज़रत दाता गंज की इस मजार पर सूफी गायक और संगीतकार अपने हरदिल अज़ीज़ कलामों और मौसिकी से अपने प्रिय संत की उपासना करते हैं. मजार पर निर्धन मुसलमानों को खाने -कपडे के अतिरिक्त आश्रय भी दिया जाता है. देओबंद सुन्नी और वहाबी -तालिबान ' मुसलमानों का 'पीरीफकीरी' का सन्देश प्रचारित करने वाली इस सूफी दरगाह पर सजदा करना इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ मानते है और इस मज़ार पर आने वाले बरेलवी मुसलमानों को ' काफ़िर' तस्सवुर करते हुए- उनकी गर्दने बिना कोई सवाल किए कलम करना हिजाब मानते हैं. बरेलवी मुसलामानों पर ऐसे हमले कोई नई बात नहीं है.१२ अप्रैल २००६ को जब बरेलवी मुसलमान कराची स्थित निश्तार पार्क में हज़रात मुहम्मद का जन्म दिन मना रहे थे तो एक बम ब्लास्ट में ७० मुसलमान मारे गए. पिछले साल भी तालिबान ने १७वी सदी की प्राचीन सूफी संत कवि ,रहमान बाबा की मजार पर हमला किया. रहमान बाबा संगीत और रस्क से अल्लाह की इबादत करते थे लेकिन देओबंद- तालिबान की नज़र में संगीत और नृत्य इस्लाम में हराम है. तालिबान द्वारा बहादुर बाबा की मजार पर रॉकेट से हमला किया गया और पेशावर स्थित ४०० साल पुराणी सूफी संत अबू सईद बाबा की मजार को भी नुक्सान पहुँचाया.
दसंबर २००९ में अहमदी समुदाय द्वारा जब मुहर्रम का जलूस निकला जा रहा था तब तालिबान ने हमला कर ३३ मुसलमानों को मौत के घात उतार दिया. देओबंद मुसलमान अहमादिओं को मुसलमान नहीं मानते. जिया-उल हक़ पर दवाब बना कर पाकिस्तान में अहमदी समुदाय को गैर मुस्लिम घोषित करवा दिया गया और उन पर मस्जिद में इबादत पर रोक लगा दी गई.
पकिस्तान में ९७% आबादी मुसलमानों की है जिसमें सुन्नी मुसलमान सबसे जियादा हैं.सुन्नी आगे बरेलवी और देओबंद सम्प्रदाय में बंटे हुए हैं . बरेलवी मुसलमानों का विशवास है की अल्लाह तक मौसिकी और रस्क व् कलाम द्वारा इबादत से पहुंचा जा सकता है. ये ६०% हैं जो कि संतों फकीरों की मजारों पर सजदा करने में विशवास रखते है. बाकी के सुनी मुसलमान देओबंद सम्र्दय से है . वहाबी सम्र्दय को मिला कर इनकी संख्या २० % है. पाकिस्तान की फौज और हुकमरान पर इनका गेहरा असर है. बाकी की आबादी में १५% शिया और ५% अन्य अल्पसंख्यक आते हैं जिन में क्रिश्चन,इस्मईली,हिन्दू,सिख, पारसी व् अहमदिया मुस्लिम हैं. २०% बहावी और देओबंद सुन्नी मुसलामानों की नज़र में इस प्रकार पाकिस्तान का 80 % अवाम काफ़िर है.
पाकिस्तान के संस्थापक मुहमाद अली जिन्ना ने हिन्दुस्तान में रह रहे मुसलमानों के लिए एक खालिस -पाक वतन की कल्पना की थी जिसमें अल्लाह के बन्दे अपने इस्लाम को मानने वाले दीनियों के साथ पाक-साफ़ रह सकें . जिन्नाह नेहरु के सेकुलर अहंकार से भी बहुत आहत थे. तभी तो ११ अगस्त १९४७ के अपने एतिहासिक भाषण में उन्होंने पाक को सभी मज्हबो, जातियो और सम्प्रदायों के लिए आज़ाद देश बताया था जहाँ सभी को पूरी पूरी आजादी होगी पूजा अर्चना की.लेकिन राजयक्ष्मा से पीड़ित इस महत्वाकांक्षी बनिया से मुसलमान बने इस राजनेता को अपनी मृत्यु से पहले ही 'पाक की बर्बादी ' का अहसास हो गया था. तभी तो अपने डाक्टर से अपने अंतिम दिनों में जिन्ना ने कहा था 'पाक मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल है'.
गाँधी और जिन्ना में केवल और केवल एक चीज़ ही सामान्य है - दोनों को उनके देश वासियों ने पूरंतया बिसरा दिया.गाँधी जी ने राम राज्य का सपना देखा था जो कम से कम भारत में तो दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. जिन्ना ने एक इस्लामिक सेकुलर समाज की कल्पना की थी जो पाक में कहीं नज़र नहीं आती. हाँ पाक पाकिस्तानी और काफ़िर पाकिस्तानी में जिहाद मुसलसल जारी है !!!!

1 टिप्पणी:

  1. गाँधी और जिन्ना में केवल और केवल एक चीज़ ही सामान्य है - दोनों को उनके देश वासियों ने पूरंतया बिसरा दिया.गाँधी जी ने राम राज्य का सपना देखा था जो कम से कम भारत में तो दूर दूर तक नहीं दिखाई देता. जिन्ना ने एक इस्लामिक सेकुलर समाज की कल्पना की थी जो पाक में कहीं नज़र नहीं आती. हाँ पाक पाकिस्तानी और काफ़िर पाकिस्तानी में जिहाद मुसलसल जारी है !!!!

    katu satya

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