भूरू ,भूरी और कालू पूरे मोहल्ले की शान हैं क्योंकि सारा मोहल्ला उन्हें बिना पगार का चौकीदार मानता है. भूरी फिर से पेट से है. श्रीमती जी को बेसब्री से उसके प्रसव दिवस का इंतज़ार है, जब भूरी फिर से ६-७ पिल्लों को जन्म देगी . सुबह -शाम चबूतरे पर भूरी के लिए दूध का कटोरा रखा मिलता है. देवीजी बिना नागा तीनो के लिए दूध, ब्रेड और वह भी मलाई लगी हुई, परोसना नहीं भूलती . यह बात अलग है की हमें ब्रेड सूखी ही मिलती है . भूरी और भूरू में एक दूरारे की प्रति गहरा लगाव है. जब भूरू खा रहा है तो भूरी एक आज्ञाकारी पत्नी की भांति एक ओर कड़ी इंतज़ार करती है -उसकी तृप्ति के उपरांत ही बचे खुचे पर संतुष्ट रहती है.अब भूरी खाती है और भूरू चुप चाप खड़ा देखता है -अपने आने वाले बचों की खातिर ..... एक कालू जी हैं की उन्हें कुछ भी डालो -भूरू महाशय चट कर जाते है . देवीजी का ऐसा मानना है की बेचारे कालू को कम दिखाई देता है.पर यह कसर शनिवार को पूरी हो जाती है जब हर कोई एक से बढ कर एक पकवान कालू जी की सेवा में लिए खड़ा होता है. और कालू महाशय का नखरा भी सातवें आस्मां पर होता है. शेसी घी से चुपड़ी रोटी पर भी नाक नहीं धरते.
जब से मेनकाजी का वरदहस्त मिला है ! गली के आवारा कुतों को मारना तो बहुत दूर की बात है,कोई प्रताड़ित भी नहीं कर सकता. स्ट्रे एनिमल कंट्रोल रूल्स (डॉग) २००१ के तैहत आवारा कुत्तों को सम्पूर्ण संरक्षण प्राप्त है. कुत्तों पर अत्याचार के दोषी को अब ५ वर्ष तक कारावास या जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है .इस अधिनियम के अंतर्गत जहाँ आवारा कुत्तों को मारने पर प्रतिबन्ध लगा है वहीँ सभी कुत्तों की नसबंदी का भी प्रावधान है. सभी नगर निगमों को निर्देश दिया गया है की नगर निगम कमिश्नर की अध्यक्षता में ६ सदस्य एक कमेटी गठित की जाये जिसमें एक पशु चिकित्सक के अतिरिक्त जन स्वस्थ्य ,पशु भलाई विभागों और पशु प्रेमी सवयम सेवी संस्थाओं के
नुमैन्दे हों . यह कमेटी कुत्तों की देख भाल, गिनती,टीकाकरण के अतिरिक्त इनकी बढती आबादी पर अंकुश लगाने के कार्यक्रम संचालित करे जिसमे इनकी नसबंदी प्रमुख कार्य है. रैबिस से पीड़ित पागल कुत्तों के लिए इस एक्ट में दया मृत्यु का प्रावधान है. जिसे डाक्टर की देख रेख में उक्त कमेटी द्वारा कार्यान्वित किया जायगा . इन पागल कुत्तों द्वारा काटे जाने के सबसे अधिक शिकार बच्चे और कूड़ा बीनने वाले निर्धन लोग होते है जिनके पास एंटी रैबिस टीका लगवाने के भी पैसे भी नहीं होते. ऐसे में कोई गरीब यदि रैबिस का शिकार हो जाये तो किसी एक्ट में ऐसे अभागे को दया मृत्यु का भी प्रावधान नहीं है.
नगर निगमों की अफसरशाही ने उक्त एक्ट पर तुरंत आंशिक अमल करते हुए आवारा कुतों को मारना तो बंद कर दिया किन्तु इनकी नसबंदी का काम बिलकुल भूल ही गए . परिणाम हमारे सामने है -बागों के शहर पटियाला की ५ लाख आबादी पर जहाँ आवारा कुत्ते २० हज़ार हो गए वहीँ देश की राजधानी दिल्ली में ती कुत्तों की यह संख्या हमारे शहर की आबादी ५ लाख को भी पर कर गई. अब तो दिल्ली हाई कोर्ट ने कुत्ता प्रेमिओं की एक याचिका पर दिल्ली नगर निगम को निर्देश जारी किये हैं की कुत्तों के लिए ऐसे स्थान सुरक्षित किये जाएँ जहाँ पर ये ये लोग कुत्तों को भोजन आदि बिना रोक टोक परोस सकें .
मेनका जी का कुत्ता संरक्षण अधिनियम और निगम अधिकारिओं का कुत्तों की नसबंदी के प्रति उदासीन रवैया बदस्तूर जारी है. आवारा कुत्तों का हम दो हमारे छे का खेल भी बदस्तूर जारी है. अधिकारिओं का उदासीन रवैया और कुत्तो की लालू लीला यदि इसी प्रकार कुछ वर्ष यूँ ही चलती रही तो वेह दिन दूर नहीं जब प्रतियेक दिल्ली वासी के पीछे एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा होगा.....कहते हैं ! धरम राज युधिष्टर के श्वान ने अपने मालिक का साथ स्वर्गधाम तक निभाया था
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