रविवार, 20 सितंबर 2009

शशि थरूर ने मजाक मजाक में एक सच क्या कह दिया, बचत का पाखंड करने वाले बड़े तो क्या छुटभैये भी तमतमाए फिरते हैं। अब इन्हें कौन समझाए शशि भाई इंग्लॅण्ड में पैदा हुए और अमेरिका में पढ़े ,वहां इकोनोमी क्लास को कैटल क्लास और पाखंडियों को होली काऊ कहते हैं । अपने खर्चे पर कोई किसी होटल से काम काज निपटाए तो किसी के बाप का क्या जाता है -जनता का मुर्ख बनाने वाले कट्ठोर बचतखोर शोर भी मचाएंगे और जनता के पैसे को चूना भी लगाते जायंगे। अब कांग्रेस के राज कुमार को ही लो , जनाब ट्रेन में लुधिआना आए जेड सुरक्षा थी ही ,कुल जमा दस हजार की बचत हुई किराये में और सुरक्षा बंदोबस्त पर लाखों का खर्चा जो बढ़ गया वो अलग । किसी सर फिरे ने ट्रेन का शीशा तोड़ कर इन नए बचत खोरों को आईना दिखा दिया, अब महज़ जांच पर लाखों का खर्चा और पुलसिया ढोंग अलग । जनता को इन नेताओं की बचत बहुत महँगी पड़नेवाली है।
सादगी का प्रतीक गांधीजी को ही लीजिये भले वक्तों में उद्योगपति बिरला के उन पर पचास रुपये रोज़ खर्च होते थे ,पचीस रुपये तोला सोना था उस वक्त , हुए न आज के 34 हज़ार रुपये। यही कारन है बिरला की गाड़ी एम्बेस्दोर सरकारी बजट का तेल निकाल रही है।
अरे बचात्खोरो ! देश की आधी आबादी आधा पेट भोजन कर पाती है और देश का लूटा हुआ कुबेर का खजाना स्विस बैंकों पड़ा है, इलेक्शन के दिनों में दबी जुबान में ही सही आप लोगो ने भी इसे देश में वापिस लाने की बात कही थी - ये सब पाखंड छोड़ देश के आवाम की खून पसीने की यह कमाई वापिस लाओ -गरीब की दुआ लगेगी!

1 टिप्पणी:

  1. देश के आवाम की खून पसीने की यह कमाई वापिस लाओ -गरीब की दुआ लगेगी!
    इतना ही काफी है !!

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