८० सावन देख चुके नेहरा साहेब किंतु सवभाव में अज भी पतझड़ झलकता है -सुबह की सैर पर अक्सर मिल जाते । गुजरे शाही वक्त का पछतावा और सदाबहार कब्ज की शिकायत। बीते दिनों की अफसरशाही अकड़ अज भी उनकी हर बात में झलकती है । अपने अकडू सवभाव के कारन बचों से अलग थलग पड़ गए और जीवन काळ की साध्य बेला तनहा काट रहे हैं। नेहरा साहेब की यह हालत देख कर चीनी विचारक लिंग युतंग के जीवन का उदेश्य पर विचार और गीता के प्रकृति एक मानसिक उपकरण सारगर्भित लगते हैं।
निस्संदेह जीवन का उदेश्य खुशी हासिल करना है -हम इसी खुशी की लालसा में सदिओं से भटक रहे हैं -सभी तरह की खुशी एक तरह से जीव विज्ञानं की खुशी है और पुरी तरह से एक वैज्ञानिक परक्रिया है । सभी तरह की मानवीय खुशी एक तरह से भावनात्मक खुशी होती है -सची खुशी केवल आत्मा की खुशी है। आत्मा का अर्थ खुशी का एहसास दिलाने वाली ग्रंथिओं के दम सही ढंग से कम करने की वजह है -खुशी का अर्थ स्वस्थ पाचन क्रिया -लिंग युतंग की मने तो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखना ही खुशी का मूल मंत्र है। और हाँ मानसिक शान्ति के लिए गीता की शरण ली जा सकती है -जो मनुष्य केवल आत्मा में आनंद अनुभव करता है , जो आत्मा से संतिष्ट और तृप्त है ,इस लिए अनासक्त हो कर सदा करने योग्य करम करता है। प्रकृति (सवभाव )वह मानसिक उपकरण है जिसके साथ मनुष्य जन्म लेता है। यह पूर्व जन्म के कर्मों का प्रतिफल है -यह अपना कार्य करके रहेगा
निरंतर अभ्यास से मुमुक्षावन -इछाविहीन होने की इच्छा -सम्पुरण रूप से मुक्त होने की आकांक्षा -अस्तित्व चक्र से बहार हो जाने की इच्छा -वैदेही होना , कठिन तो है किंतु असंभव नहीं । जीवन का परम आनंद इसी मैं है। अर्थात कोशिश करके अपने पाचन तंतर को दुरुस्त रखते हुए जीवन को ब्रहमांड के एक महोत्सव की तरहां जिया जाए।
अच्छा लगा पढ़कर-सदविचार!!
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