बुधवार, 26 जून 2013

श्री नगर या शरिया नगर




श्री नगर या शरिया नगर 
  एल आर गाँधी

श्रीमती जी की तीव्र इच्छा थी , एक बार 'देवभूमि' श्रीनगर की सुन्दर व् अलौकिक वादियों के भ्रमण की ...वादी में प्रवेश करते ही देव भूमि पर पसरा मज़हबी आतंक का क्रूर काला  साया ज़ेहन पर तारी होता गया ...ऊपर से तो सभी पर्यटकों के प्रति समर्पित दिखाई दे रहे थे किन्तु यथार्थ में हमें लूटने और सताने को सभी खुदा के बन्दे  एक जुट थे ...
गुलमर्ग के नज़ारे देखने की इच्छा सभी पर्यटकों में होती ही है . सो हम दोनों और साथ में गए मित्र दंपत्ति होटल से ही टैक्सी में गुलमर्ग के लिए चल पड़े ...सड़क के दोनों और निहायत ही खूबसूरत कुदरत के नजारे थे ...दो दिन के साथ ने ड्राईवर को भी कुछ कुछ 'मुखर' बना   दिया ....जब उसे पता चला की हम पंजाब से हैं तो कश्मीर और पंजाब के एक से 'हालात' पर अपने पके पकाए विचार व्यक्त करने लगा ...बोला ...एक बार तो खालिस्तान बन ही गया था ? मेरी प्रतिक्रिया के लिए 'जोहान' ने मेरी और देखा ...उसकी आँखों में नाकामी का मलाल साफ़ दिखाई दे रहा था ...हिन्दुस्तान की सेना की श्रीनगर में मौजूदगी पर भी उसे सख्त ऐतराज़ था ...बात चीत आगे बढ़ी तो पता चला की जेहान के और भी तीन भाई हैं सभी अनपढ़ हैं और उसी की भाँती छोटे मोटे काम करते है ...पढाई वही मौलवी के मदरसे तक .
गुलमर्ग का रास्ता और प्राकृतिक छटा अतुलनीय थी रास्ते में कई  स्थानों पर प्रकृति के मनमोहक दृश्यों को कैमरे में कैद किया ... गुलमर्ग के पहले और निकटम गेट के रास्ते में कुछ लोग खड़े थे ..उन्होंने गाड़ी को दूसरे   रास्ते से जाने का इशारा किया ...पूछने पर जोहान ने बताया की ये लोग घोडा गैंग से हैं ...निकट के गेट पर सवारी पैदल ट्राली हाट तक चली जाती है और उनके घोड़ों पर नहीं बैठती ...यदि कोई गाड़ीवाला नहीं मानता तो ये ड्राईवर और सवारियों को पीटते हैं और गाड़ी को भी नुक्सान पहुंचाते हैं ....जोहान ने हमें दूसरे गेट जो ट्राली से ३-४ किलोमीटर दूर था उतार दिया ...पहले रेन शूज़ और रेन कोट वालों ने घेरा ..किसी प्रकार उनसे पिंड चुदाया  तो घोड़े वाले पीछे पड गए ...मानो चार घोड़ों के १ २ ० ० रूपए बचा कर हम अमीर  सैलानी उनके पेट पर लात मार  रहे हैं ...रास्ते भर घोड़े पैदल यात्रियों पर गुर्राते नज़र आए ...गुड सवारों के लिए अलग से कच्चा रास्ता है ,फिर भी ये लोग सड़क से पैदल यात्रियों पर घोडा चढाते ..कश्मीरी भाषा में भद्दे तंज़ कसते जा रहे थे .
बहुत सारी गाडिया ट्राली तक जा रही थी .. अब समझ आया कि मियां जोहान भी अपने इन घोडा गैंग बिरादरी के साथ है .
२ घंटे ट्राली के लिए लाईन में लगे जबकि टिकट पहले ही आन लाईन बुक करवा ली थी ..लोकल घोडा गैंग बिना लाईन के खिड़की से अपने ग्राहकों के लिए टिकट ले रहे थे ..मनमाने 'चर्ज़िज़ ' एंठ कर ..लाईन के बिना एंट्री के अलग से चर्ज़िज़ थे ..हम 'हिंदुस्तानी' २ घंटे तक लाईन  में खड़े कश्मीरी कायदे -क़ानून की धारा  ३ ७ ०  ताकते रहे .
जेहान ने बताया था कि गुलमर्ग की पहाड़ी पर शाल बढ़िया सस्ते और टिकाऊ मिलते हैं ...ट्राली का रास्ता एक विदेशी कंपनी ने निर्मित किया था ...बहुत बढ़िया भी था ...गुलमर्ग की पहाड़ी पर चंद  शाल बेचने वाले मुल्लाओं से सैलानी महिलाएं मोल तोल कर रहीं थी ..हमारे सैलानी भी शाल देखने लगीं ..मियांजी अपने कश्मीर में बने सस्ते शालों की गर्मी का बखान कर ही रहे थे कि एक   महिला ने सारा गुड गोबर कर दिया।।यह कह कर कि ये तो चाईनीज़ शाल हैं ....

क्रमश




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