रविवार, 9 मई 2010

दो बूँद पानी

महज़ चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा पीने के लिए ! इस कदर गन्दा कर दिया है हमने अपने जीवित रहने के लिए अनिवार्य और महत्तवपूर्ण स्त्रोत को . पृथ्वी पर दो तिहाई क्षेत्र में पानी ही पानी है.फिर भी मानव शुद्ध पीने योग्य पानी के आभाव से त्रस्त है.
पानी में मीन प्यासी
मोहे सुन सुन आवे हासी.
कबीरजी के इन विचारों के अनुरूप ही आज मानव पानी में प्यासी मीन के समान हो गया है, अपनी पानी के प्रति उपेक्षित मनोवृति के कारन .
साठ वर्ष पूर्व संविधान की धारा ४७ में देश के सभी नागरिकों को पीने का स्वच्छ पानी मुहैया करवाने का दायित्व डाला गया था सरकार पर. नेहरूजी की दिवास्वप्न्लोकी १० पांच वर्षीय योजनाओं द्वारा इस महती कार्य के लिए १,१०५ बिलियन रूपए खर्च कर दिए गए लेकिन 'मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की.'....आज भी प्रति वर्ष ३७.७ मिलियन देशवासी स्वच्छ पानी न मिल पाने के कारण गंदे पानी से होने वाली बिमारिओं से जूझ रहे है. सबसे बड़ी शिकार हुई है हमारी भावी पीढ़ी 'बच्चे' गन्दा पानी पीने के कारण प्रति वर्ष १.५ मिलियन बच्चे अकाल मृत्यु का शिकार हो जाते हैं.
सबसे चिंताजनक स्थिति है ग्रामीण इलाकों की जहाँ ७०० मिलियन ग्रामीण लोगों के लिए अभी तक स्वच्छ पीने का पानी मुहैया करवाने का किसी भी सरकार या निजी संस्था ने सार्थक और गंभीर परियास नहीं किया. गांवों में आज भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ गृहिणियां प्रति दिन मीलों चल कर पानी के घढ़े अपने सर पर ढ़ोती हैं . स्वच्छ वायु और पानी स्वस्थ राष्ट्र की जीवन रेखा होती है. क्योंकि ८० % बीमारियाँ हमें गंदे जल की देन हैं. ज़ाहिर है जब नागरिक अस्वस्थ रहेंगे तो राष्ट्र की प्रगति,मृत्यु दर,और अर्थ व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा. उल्टा स्वस्थ सेवाओं पर भारी भरकम खर्च से सामान्य जन की आर्थिक स्थिति और भी दयनीय होगी. जिस देश में ७७% जनता महज़ २०/- प्रतिदिन पर गुजर बसर करने को मजबूर हो वहां महँगी दवाईयों का जुगाड़ कहाँ से हो पायेगा. नित्य नए नए मेडिकल कालेज -अस्पताल और उनको मान्यता के नाम पर २-२ करोड़ की रिश्वत ....यह तो बानगी भर है. ..सचाई तो ब्लड कैंसर से भी विकराल रूप धारण कर चुकी है.
आधुनिक जीवन पधत्ति ने नगरों में पानी के दुरपयोग को कई गुना बढ़ा दिया है. जो काम हमारे पूर्वज एक लोटे में निपटा लेते थे ,इसी के लिए हम एक फ्लश में १२ लिटर जल बहा देते हैं. सरकारी स्तर पर तो जल संरक्षण का कोई भी प्रयास नहीं किया जा रहा. उल्टा वोट बैंक मज़बूत करने के चक्कर में लोगो को मुफ्त पानी लुटाया जा रहा है. जिस प्रकार अंधाधुंध जल दोहन के कारण भूजल रसातल में जा रहा है और निरंतर पर्यावरण व् जलप्रदूष्ण के कारन सभी जलस्त्रोत गंदले हो रहे हैं. आने वाले दिनों में हम भयंकर जल संकट से दो चार होने जा रहे हैं. आज की यह ईद कहीं भविष्य के रोज़े हो कर न रह जाएँ

3 टिप्‍पणियां: