शुक्रवार, 21 मई 2010

कामनवेल्थ गेम्स में ' काल गर्ल्स का खेल'

कामन वेल्थ खेलों को वल्ड क्लास बनाने के कलमाड़ी जी के अभियान को गज़ब का प्रोत्साहन मिला जब जी .बी.रोड की ६००० खिलाडिनों ने भी 'महाखेले' में जी जान से भाग लेने की घोषणा कर डाली.
सवेरा नामक सव्यसेवी संस्था ने रेड लाईट एरिया के कोठों को नया लुक देने के लिए कोठों के सौन्द्रियकरन का बीड़ा उठाया है. अँधेरे और बदबूदार कोठों को महकाया और रौशन किया जाएगा .कोठों को स्प्लिट ऐ. सी., एल.सी.डी और अन्य सुविधाओं से लैस किया जायेगा ताँ जो देसी और विदेशी महमानों को किसी प्रकार की असुविधा न होने पाए. देसी कोठे वालियों को विदेशी भाषा सिखाने का ख़ास प्रबंध किया गया है. अब वे आइये जनाब -मिजाज़ कैसे हैं- या खुशामदीद -अलविदा जैसे बोरिंग अल्फाज़ नहीं बल्कि वेलकम , हाउ - डू - यू- डू,हेलो, थैंक यू जैसे माडर्न शब्दों से मेहमानों को संबोधित करेंगीं तमिलनाडु की सलमा तो अपने ७ साल के लड़के को भी इंग्लिश क्लास में साथ ले जाती है.
मुग़ल काल में तो दिल्ली में ऐसे पांच बाज़ार थे जहाँ जिस्मफरोशी का धंधा होता था . अंग्रेजों ने इसे एक स्थान तक सीमित कर दिया और इस स्थान का नाम उस समय के अँगरेज़ कलेक्टर गैरीस्तिन बस्टन के नाम पर रखा गया. भारत सरकार ने १९६५ में इस सड़क का नाम बदल कर 'स्वामी श्र्धानंद मार्ग 'रख दिया मगर लोगों के मुंह जी. बी. रोड ही चढ़ा है. जी. बी. रोड एशिया की सबसे बड़ी हार्ड वेअर की मार्कीट है. नीचे हार्ड वेअर का धंधा है तो ऊपर कोठों पर जिस्मफरोशी का. बीस इमारतों में पहली और दूसरी मंजिल पर ९६ कोठे हैं. पिछले तीन सालों में इन कोठों पर धंधे वाली 'काल गर्ल्स ' की संख्या ४५०० से बढ़ कर ६००० को पहुँच गई है. कोठों की हालत पशुओं के बाड़ों से भी बदतर है. अधिकतर त्योहारों और राजनैतिक रैलिओं के वक्त धंधा जोरों पर रहता है . कामन वेल्थ खेलों के दौरान भी इन्हें मोटी कमाई की आशा है.
अधिकाँश लड़किया दूर दराज़ के पिछड़े क्षेत्रों के गरीब परिवारों से छोटी उम्र में ही देह व्यापारिओं द्वारा बहला फुसला कर यहाँ लाई जाती हैं और कोठे वालों को बेच कर मोटी रकम वसूली हो जाती है. सलमा जो पहले १० से १५ ग्राहक निपटा देती थी अब मात्र २-३ ही जुटा पाती है क्योंकि अब वह उम्र की ढलती पायदान पर है. उसे अपने बेटे अल्ला रक्खा और बेटी किस्मत की फ़िक्र खाए जाती है. मोली और पुष्पा के पास एक ही कमरा है , शाम होते ही पुष्पा को कमरा छोड़ना होता है , क्योंकि मोली का धंधा कमरे तक सीमित है, तब पुष्पा बाहर एसा ग्राहक तलाशती है जो उसे साथ कहीं ले जाए. पुलिस का डर इस अवैध धंधे में सदा ही बना रहता है.
इन किस्मत की मारी 'काल गर्ल्स ' को सरकार की ओर से किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त न होने के कारण , अपने बहुत से शैतान ग्राहकों के इलावा,इलाके के गुंडे भाई लोगों को भी रंग दारी देनी पड़ती है. दिल्ली पर एक नहीं दो दो महिलाओं का राज्य है और महिला स्शक्तिकर्ण के नाम पर लोक सभा और राज्य सभा में खूब गला फाड़ फाड़ अगड़ी पिछड़ी महिलाओं पर रुदन होता है. फिर भी कोई शीला कोई सोनिया इन शर्मीला-सबिया की सुध लेने की जहमत नहीं उठती . जी .बी. रोड के कोठों के पीछे दो मस्जिदें हैं और सामने एक हनुमान जी का मंदिर - मगर सुनता न वो है न ये है. इन 'काल गर्ल्स' के लिए बीता कल वो है जो कभी नहीं आयेगा और आने वाला कल वो है जिसे वे कभी न देख पाएंगी. बस महज़ आधा दिन और आधी रात है जिसे जिए जा रहीं हैं. जब नीचे की मार्कीट के शटर शाम को गिर रहे होते है तब इनके कोठों का कारोबार शुरू होता है और सुबह तक चलता है तबले की थाप और घुंघरू की छनकार पर 'यहाँ तो हर चीज़ बिकती है ,बोलो जी तुम क्या क्या खरीदोगे साड़ी रात चलता है. - जब मार्कीट खुलती है तो ये थकी मांदी कोठे के किवाड़ बंद कर सो रही होतीं हैं
कलमाड़ी जी के महाखेले में तो अभी बहुत दिन बाकी हैं और काम भी बहुत बाकी है बहुत जोर लगाना पड़ेगा 'देश की साख' और शीला जी की नाक का सवाल है.

6 टिप्‍पणियां:

  1. L .R GANDHI जी आज आपने दिल्ली और इस लोकतंत्र की खोखली तस्वीर और इस देश के दिमाग को पूरी तरह सड़ाने वाले भ्रष्ट भाग्य बिधाताओं की घिनौनी तस्वीर इस पोस्ट के जरिये पेश किया ,जिसके लिए आपका धन्यवाद और हार्दिक आभार / उम्दा प्रस्तुती / L .R GANDHI जी हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें कुछ ईमेल भेजकर / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

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  2. बहुत ही दुखद है.. और मार्मिक भी.. लेकिन सत्ता की आंखों पर पट्टी बंधी है..

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  3. "जब जी .बी.रोड ............ घोषणा कर डाली."

    जो और जैसा चल रहा है उससे तो यही लगता है की आखिर में यही होगा ! दो चार चियेर गर्ल्स हाथ हिला देंगी, मल्लिका शेरावत ji को उद्घाटन के लिए बुला लेंगे , दोचार बेनीफिशियरी ताली बजा देंगे , हो गया कॉमन वेल्थ !

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  4. sir, in this piece u captured the reality. particularly the paradox of nature reflects here, when u say that there r 2 masjids n 1 hanuman mandir beside it, but nobody listens. thats true, n probably that is the reason why bhagat singh reflected his ideology in WHY I AM AN ATHEIST. if GOD is there then why doesnt he intervenes and relieves the people from miseries? A true pic of HARDWARE MARKET and HARDCORE.

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