मंगलवार, 27 अप्रैल 2010

आइ.पी.एल का अलीबाबा -बी.पी.एल.के चालीस चोर

जो काम ४० चोर ६३ साल में नहीं कर पाए ,वह कारनामा अलीबाबा ने महज़ ३ साल में कर दिखाया.
देश पर राज करने वाले चालीस चोर ६३ साल में बी.पी.एल. अर्थात गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे गरीब गुरबों की जीवन रेखा मापते रहे और जितना मापा यह रेखा उतनी और बढ़ती गई.गरीब और गरीब होता गया और दो जून के निवाले को तरसता रहा.
अली बाबा ने अपना काम महज़ तीन साल से संभाला और कमाल कर दिया. बाबा ने खेल खेल में बैट की लम्बाई , बाल की गोलाई और क्रिकट के मैदानों की ऐसी पैमाइश की कि ४० चोर मुंह बाएँ ताकते ही रह गए,और अली बाबा ने ४ बिलियन यू. एस डालर के जैकपाट कि भनक तक न होने दी किसी को भी. एक चोर ने मजाक मजाक में बाबा से ' ट्विट' अरे वोही ' ठिठोली' क्या की कि बेचारा केरल की गलिओं में अपना कद नापता फिर रहा है.
अली बाबा का तीन साल का ज़लवा चालीस चोरों के ६३ साल के तमाशे पर भारी ही नहीं बहुत भारी पड़ा. ४० चोरो के सताए बी.पी.एल. के गरीब गुरबे चंद दिनों के लिए ही सही अपनी बी.पी.एल को भुला कर आइ.पी. एल के चौके छाकों और चीअर लीडर के ठुमकों में अपनी मुफलिसी को बिसरा बैठे. प्रीती जिन्टा के गालों के गड्डों में उन्हें अपनी दाल/सब्जी की कटोरी और शाहरुख़ के उदास चेहरे में फफूंदी ग्रस्त ब्रेड का आभास होने लगा. आइ.पी.एल. की मारामारी में बी.पी.एल. की बेचारगी मानों पोलार्ड के छक्के से उडी बाल सी गायब हो गई.
एसा भी नहीं की हमारे इन ६३ वर्षीया चालीस चोरों ने बी.पी.एल की गरीबी रेखा मिटाने के 'भागीरथ प्रयत्न' न किये हों.१९७० में इंदिरा जी ने नारा दिया 'वे कहते हैं इंदिरा हटाओ , मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ. देश के सारे के सारे गरीब साथ हो लिए. गरीब की बाकायदा पहचान की गई. ६ रोटी,१ दाल/सब्जी की कटोरी दो वक्त जिसे नसीब हो रही है, वह गरीब नहीं. २४०० कैलोरी का पौष्टिक भोज़न करने वाला शख्स भला गरीब कैसे हो सकता है-बजा फरमाया ! जीने के लिए 'काफी' है. फिर भी ३२ करोड़ गरीब कमबख्त न मालूम कहाँ से आ टपके. और हिसाब लगाया गया गाँव में इस पौष्टिक भोज़न के लिए ६२/- और शहर में ७१/- प्रति महीना बहुत हैं. अब महंगाई के साथ साथ यह कैलोरी और दाल की कटोरी का दाम भी बढ़ता गया . सन 2००० में यह 'काफी' गाँव में ३४८/- और शहर में ४५४/ प्रति माह हो गया. चार साल बाद फिर बढ़ कर ४५४/- और ५४०/- को जा पहुंचा . अब आप २०१० का पूछोगे. भई दाल १००/- किलो और सब्जी थैले में नहीं जेब में आने लगी है, और हमने हिसाब लगाना ही बंद कर दिया. अब इन चालीस चोरों को तो लोक सभा की केन्टीन में ५/- में दाल/सब्जी की प्लेट और ५० पैसे में रोटी मिलती है.यह तो ६ रोटी और दाल कटोरी में जीने वालों से पूछो की वे जीने के लिए दवाई , शिक्षा , यातायात, आपदा खर्च और सबसे बड़ा अंतिम संस्कार का खर्चा कहाँ से लाये. आइ.पी.एल.का खेला तो बी.पी.एल. वाले भी देखते हैं. अब टी.वि.,बिजली,पंखे और अंकल चिप्स के खर्चे न गिनने बैठ जाना , बी.पी.एल.के कोटे में यह सब नहीं है.
६३ साल से सार्वजानिक वितरण प्रणाली से इन गरीबों को सस्ते दाम पर राशन का जुगाड़ अली बाबा की यह सेना करती आ रही है. और सहायता राशी भी बढ़ते बढ़ते ५५५७८ करोड़ का आंकड़ा छूने लगी है यह बात अलग है की इस में से ५८% माल इन चोरो के भाई उचक्के रास्ते में सेंध मारी कर जाते हैं. गरीबों तक निवाला पहुंचे तो कैसे पहुंचे.
इंदिरा जी से यहीं पर गलती हो गई. वे गरीबी हटाने में लगी रहीं और गरीब बढ़ते ही चले गए. अब सोनिया जी वह गलती दोहराना नहीं चाहतीं .उन्होंने अपने आठ रत्नों को साफ़ कह दिया है पहले ढंग से गिनती करो और फिर एक क़ानून बना कर गरीबी को जड़ से ही मिटा डालो. गरीबो को कानूनन रोटी का हक़ अत्ता किया जाये. फिल हाल तो गिनती के झमेले से ही नहीं निकल पाए हमारे 'शरद' जी. अरे भाई ठीक से गिन के बताओ गे तभी तो मैं इन्हें भोजन सामग्री जारी करूँगा. अब योजना आयोग ६५.३ मिलियन बता रहा है और तेंदुलकर कमीशन ८३.७ मिलियन और लोगों पास राशन कार्ड हैं १०८.६९ मिलियन . एक और कमीशन है उसकी माने तो ७७% लोग २०/- प्रति दिन पर गुज़र बसर कर रहे है. और ४६% बच्चे कुपोषण के शिकार होते हैं जो की विश्व के सबसे निर्धन सब सहारा अफ्रीकन देशों से भी अधिक है.
अरे आइ.पी.एल के सफल अलीबाबा को ही बी.पी.एल. का खेल दे दो. आप के ६३ वर्ष के खेल से अलीबाबा का ३ वर्ष का खेला तो फिर भी रोमांचकारी रहा . यह बात अलग है की पैसों की गेंद लपकते लपकते खिलाडिओं के इंजर पिंज़र ढीले हो गए और सचिन भाई अपनी ऊंगली क्रिकेट में धोनी से क्लीन बोल्ड हो गए.

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