ब्रिटिश भक्त रियासती रजवाडो की बदौलत ही अँगरेज़ हमारे देश में 90 बरस और टिके रहे ,वरना 1857 में ही भाग खड़े होते । मंगल पाण्डेय के विद्रोह के बाद अँगरेज़ साम्राज्य की नींव पूरी तरह हिल गीत थी . मई 57 में अंग्रेजों के कत्ल और आगरा के सरकारी हज़ने की लूट ने अंग्रेज़ी सरकार के प्रति जनमानस में व्याप्त भरी आक्रोश को क्रांति का रूप दे दिया । लोगों ने लगान देना बंद कर दिया था और सरकार आर्थिक रूप से दिवालियेपन के कगार पर थी ।
पंजाब प्रान्त के ब्रिटिश अधिकारी करंक ब्र्नीज़ ने 23 मई 1857 अर्थात ग़दर से 13 दिन बाद एक फरमान जारी कर सभी अँगरेज़ परस्त रजवाडों , अधिकारिओं ,जमींदारों और व्यापारिओं से अपील की कि वे सरकार को क़र्ज़ के रूप में अधिकाधिक पैसा दें । पंजाब से कुल 1817591 रुपये इकठे हुए । पटियाला के महाराजा नरेंदर सिंह ने सबसे अधिक 5 लाख रुपये अँगरेज़ सरकार को दिए । महाराजा साहिब अँगरेज़ भक्तों के सिरमौर मानाने के चक्कर में 5 लाख लुटा तो बैठे किंतु रियासत के खजाने कि हालत पतली हो गई . महाराज ने अपने दर्बरिओं की एक बैठक बुलाई . सरकारी खजाने को फ़िर से भरने की नै नै जुगतें लडाई गई और पतियाल्विओं पर नए नए टैक्स लगाये गए .
पटियाला पैग लगा कर शराबी को देह व्यापर में संलग्न प्रतियेक सुंदर बाला माल नज़र आती है . एक ऐसे ही दरबारी की सलाह पर शहर के रेड लाइट एरिया - धरमपुरा बाज़ार के लिए बहार से लायी जाने वाली वेश्याओं पर चुंगी लगा गई . अम्बाला से दो वेश्याओं ने शहर में परवेश किया ‘चुंगी ’ दे कर . इस प्रथा को बाद में अम्बाला के एक राजनेता ने ही बंद करवाया .
महाराजा भूपेंदर सिंह तो अन्ग्रेज्प्रस्ती में साड़ी सिमैएँ लाँघ गए . ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने तो उन्हें ‘सों ऑफ़ विक्टोरिया ‘ के खिताब से नवाजा . 1910 में महाराज का नया मोती बाग़ महल बन कर तैयार हुआ तो महल के प्राचीर पर महाराज ने ब्रिटिश फ्लग यूनियन जैक फेहराया और पोल के ऊपर विक्टोरिया क्राऊन बनवाया । आज कल इस महल में राष्ट्रीय खेल कूद संसथान है और यूनियन जैक के स्थान पर नेशनल फ्लग लहरा दिया गया है किंतु त्रिंगे के ऊपर विक्टोरिया क्राऊन यथा वत कायम है . राष्ट्रीय ध्वज के इस अपमान पर अधिकारी चुप हैं और सरकार सो रही है .
भूपेंदर सिंह पटियाला रियासत के निहायत ही अय्याश रजवाडों में गिने जाते हैं अँगरेज़ परस्ती के साथ साथ जिस्मफरोशी में भी उनका कोई सानी नहीं था . अपने रनवास में उन्होंने 365 रानियाँ हर दिन के लिए एक रख छोडी थी । महाराजा की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ सेवा सिंह ठीकरीवाला ने एक जन आन्दोलन –प्रजा मंडल तिहरी चलाया । ठीकरीवाला को मिलये जन समर्थन से बौखला कर महाराज ने उन्हें एक लोटा चोरी के इल्जाम में जेल में दाल दिया , जहा 1934 में उनकी मृत्यु हो गई ।
प्रथम सवतंत्रता संग्राम अपने अंजाम को प्राप्त करने में असफल रहा और हमें 90 साल का लंबा इन्त्जार करना पड़ा । गुलामी की जंजीरों को ज़क्दाने मैं अँगरेज़ भक्त रजवाडों के साथ साथ हमारी वेश्या वृति जन्य मानसिकता का भी हाथ रहा
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