पाक की नापाक दरिंदगी -भारत की अंधी गली !
एल.आर.गाँधी.
हमें अंधी गली में धकेला जा रहा है..... सबसे कठिन दौर में हैं अल्पसंख्यक.... यह शब्द हैं पाकिस्तान के ईसाई सांसद अकरम मसीह गिल के ... पाक में अल्पसंख्यकों पर निरंतर बढ़ रहे अत्याचारों के चलते विधायक राम सिंह सोधो जान बचा कर भारत आ गए. जब एक विधायक आपने आप को महफूज़ नहीं पाता तो आम ' हिन्दू' की क्या बिसात है. अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सही सोच के मुसलमान का हश्र गवर्नर सलमान तासीर जैसा होता है जिन्हें उनके ही बाडीगार्ड मुमताज़ कादरी ने गोलियों से भून दिया और पाक में ख़ुशी का माहौल तारी हो गया 'कादरी' पर अदालत में फूलों की बरसात की गई और मुल्लाओं ने उसे 'गाजी' जो काफिरों को मारे !की उपाधि से सम्मानित किया. पाक में आज भी १४०० साल पुराने इस्लामिक क़ानून तारी हैं . किसी भी अल्पसंख्यक को ईशनिंदा के इलज़ाम में कभी भी फंसाया जा सकता है और सजा भी है उम्र कैद या फांसी. जो काम पिछले १४०० साल से 'जाजिया' करता आ रहा है वही काम अब 'ईशनिंदा' कानून ने संभाल लिया है. किसी भी गरीब हिन्दू को जो जाजिया नहीं दे पाता था 'इस्लाम' कबूल करवाने का जरिया बनता था -जाजिया. अब 'ईशनिंदा' के डर से इस्लाम कबूल करना ही एक मात्र विकल्प बचा है पाक में हिन्दुओं के लिए.
पाक में आज ९७% मुसलमान हैं और केवल १.६ % हिन्दू १.६% ईसाई व् .००१% सिख बचे हैं .विभाजान के वक्त पाक में अल्प संख्यक एक चौथाई के करीब २४% थे और पिछले छह दशक में घटते घटते महज़ ३% रह गए हैं यदि यूं ही 'इस्लाम' की शरियत मान्यताओं का कहर जारी रहा तो ज़ल्द शून्य रह जायंगे. हमारे सेकुलर प्रधान मंत्री जी को जब मालूम हुआ कि आष्ट्रेलिया में एक हिन्दुस्तानी मुस्लिम डाक्टर को आतंकवादी समझ कर प्रताड़ित किया गया है तो सिंह साहेब की रातों की नींद हराम हो गई . मगर राम सिंह सोंधो के जान बचा कर भारत पहुँचाने पर हमारे 'सिंह' साहेब को कोई मलाल नहीं ! शायद-
भारतीय सेकुलरिज्म का यही तकाजा है.
देश के बंटवारे के वक्त पाक की कुल आबादी ३० मिलियन थी जो अब बढ़ कर १७० मिलियन हो गई है अर्थात यह वृद्धि पांच गुना हुई . यदि अल्पसंख्यकों की जनसँख्या भी इसी रफ़्तार से बढती तो पाक में आज अल्पसंख्यक लगभग ४० मिलियन होने चाहियें मगर हैं मात्र ५ मिलियन . यह आंकड़े चौकाने वाले हैं - पिछले छह दशक में ३५ मिलियन अल्पसंख्यक जिनमें अधिकाँश हिन्दू थे ...इस्लामिक कट्टरवाद की भेंट चढ़ गए और हमारे सेकुलर शैतानों और मानवाधिकार के ठेकेदारों व् आदर्शवादी मिडिया के मूंह से इस त्रासद मानव-विध्वंस पर कभी 'हे राम' तक नहीं निकल माया. ईष्ट पाक अब बंगलादेश में भी अल्पसंख्यको का यही हाल है. करोड़ों लोग तो आतंक और बेबसी के चलते हमारे देश में ही घुस आए हैं. पिछले छह दशक में हिन्दुओं की जनसँख्या ३४% से सिमट कर मात्र ९% रह गई है. हमारे सेकुलर शैतान फिर भी बंगलादेश की आज़ादी पर अपनी पीठ थपथपा कर मस्त हैं. जैसे 'हिन्दुओं का कोई मानव अधिकार है ही नहीं'.
पिछले १४०० बरस में जब से इस्लाम और जेहाद ने जन्म लिया है लगभग २७० मिलियन 'काफ़िर' जो इस्लाम को नहीं मानते थे मौत के घाट उतार दिए गए !अफ्रीका में इस दौरान १२० मिलियन ईसाई व् अन्य 'काफ़िर' जेहाद की भेंट चढ़ गए. हिन्दुओं की आधी आबादी लगभग १०० मिलियन और सिल्क रूट के सभी बौध -लगभग १० मिलियन , भी इस्लामिक आतंक की ताब न ला सके. बिहार का नालंदा विश्व विद्यालय जो विश्व का सबसे विशाल और प्राचीन ज्ञान केंद्र था - मुस्लिम आक्रान्ता 'खिलज़ी ' द्वारा महज़ इस लिए नेस्तो- नामूद कर दिया गया क्योंकि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में 'कुरआन' नहीं थी. ज्ञान के समंदर पुस्तकालय को आग लगा दी गई जो तीन माह तक जलती रही .....यह जेहाद के वो आंसू हैं जो किसी पुस्तकालय में नहीं पढाए जाते.
जेहाद के अज्ञान की इसी अग्नि में सारा 'अरब' जल रहा है अरब के २० देशों में से १६ में तानाशाही साम्राज्य है. बाकी २ इरान और लेबनान में गृह युद्ध जैसी स्थिति है. इन देशों में तानाशाह और नई व्यापारिक जमात का नियंत्रण है जिसे अमेरीका और इस्लामिक कठमुल्लाओं का समर्थन प्राप्त है, और इस्लामिक आतंवाद को पनपाने में इस व्यवस्था का मुख्य हाथ है .गत १०० साल में इन अरब देशों का मानवीय ज्ञान के उत्थान में बंगला देश से भी कम योगदान रहा है. अरब की रियाया आज विश्व की सबसे लहुलुहान सभ्यता है. जिसके समक्ष कोई भी ऐसा रहनुमा नहीं जो उसे सही राह दिखा सके.वे पश्चिम द्वारा दबाए जाते है , इजराइल की ठोकर पर हैं और आपने ही नवाबों के विश्वाश्घात के दंश से पीड़ित. अरब देशों की प्रगति का अंदाज़ा इस तथ्य से ही भली भांति उजागर होता है कि सारे अरब देशो द्वारा उत्पादित सामान का निर्यात इजराईल से भी कम है.
मिश्र से हुई शुरुआत अब सभी अरब देशों में फैलने जा रही है. अरब की जनता को अपना भविष्य अब इस्लाम के स्थान पर लोकतंत्र में तलाशना ज्यादा मुफीद नज़र आ रहा है. दस लाख मिश्र वासियों का हजूम हुस्ने मुबारक के ३० साल पुरानी तानशाही के विरुद्ध सड़कों पर है - जब कि विकल्प नदारद है...फिर भी लोग तानाशाही का बस अंत चाहते हैं.
अपनी मज़हबी मान्यताओं के फलसवरूप मुसलमानों की आबादी तो नित्य नई उचाइयां छू रही है. विश्व की कुल आबादी बीस साल बाद ६.९० अरब से बढ़ कर ८.३० अरब हो जाएगी वहीँ मुसलामानों की आबादी १.६० अरब से बढ़ कर २.२० अरब होगी.बढती आबादी के चलते निश्चय ही उपलब्ध संसाधन बौने पड़ जायेंगे और फिर कोई 'चंगेज़ खान' मानवता के खून से अपनी शमशीर की प्यास बुझाएगा....
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एल.आर.गाँधी.
हमें अंधी गली में धकेला जा रहा है..... सबसे कठिन दौर में हैं अल्पसंख्यक.... यह शब्द हैं पाकिस्तान के ईसाई सांसद अकरम मसीह गिल के ... पाक में अल्पसंख्यकों पर निरंतर बढ़ रहे अत्याचारों के चलते विधायक राम सिंह सोधो जान बचा कर भारत आ गए. जब एक विधायक आपने आप को महफूज़ नहीं पाता तो आम ' हिन्दू' की क्या बिसात है. अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले सही सोच के मुसलमान का हश्र गवर्नर सलमान तासीर जैसा होता है जिन्हें उनके ही बाडीगार्ड मुमताज़ कादरी ने गोलियों से भून दिया और पाक में ख़ुशी का माहौल तारी हो गया 'कादरी' पर अदालत में फूलों की बरसात की गई और मुल्लाओं ने उसे 'गाजी' जो काफिरों को मारे !की उपाधि से सम्मानित किया. पाक में आज भी १४०० साल पुराने इस्लामिक क़ानून तारी हैं . किसी भी अल्पसंख्यक को ईशनिंदा के इलज़ाम में कभी भी फंसाया जा सकता है और सजा भी है उम्र कैद या फांसी. जो काम पिछले १४०० साल से 'जाजिया' करता आ रहा है वही काम अब 'ईशनिंदा' कानून ने संभाल लिया है. किसी भी गरीब हिन्दू को जो जाजिया नहीं दे पाता था 'इस्लाम' कबूल करवाने का जरिया बनता था -जाजिया. अब 'ईशनिंदा' के डर से इस्लाम कबूल करना ही एक मात्र विकल्प बचा है पाक में हिन्दुओं के लिए.
पाक में आज ९७% मुसलमान हैं और केवल १.६ % हिन्दू १.६% ईसाई व् .००१% सिख बचे हैं .विभाजान के वक्त पाक में अल्प संख्यक एक चौथाई के करीब २४% थे और पिछले छह दशक में घटते घटते महज़ ३% रह गए हैं यदि यूं ही 'इस्लाम' की शरियत मान्यताओं का कहर जारी रहा तो ज़ल्द शून्य रह जायंगे. हमारे सेकुलर प्रधान मंत्री जी को जब मालूम हुआ कि आष्ट्रेलिया में एक हिन्दुस्तानी मुस्लिम डाक्टर को आतंकवादी समझ कर प्रताड़ित किया गया है तो सिंह साहेब की रातों की नींद हराम हो गई . मगर राम सिंह सोंधो के जान बचा कर भारत पहुँचाने पर हमारे 'सिंह' साहेब को कोई मलाल नहीं ! शायद-
भारतीय सेकुलरिज्म का यही तकाजा है.
देश के बंटवारे के वक्त पाक की कुल आबादी ३० मिलियन थी जो अब बढ़ कर १७० मिलियन हो गई है अर्थात यह वृद्धि पांच गुना हुई . यदि अल्पसंख्यकों की जनसँख्या भी इसी रफ़्तार से बढती तो पाक में आज अल्पसंख्यक लगभग ४० मिलियन होने चाहियें मगर हैं मात्र ५ मिलियन . यह आंकड़े चौकाने वाले हैं - पिछले छह दशक में ३५ मिलियन अल्पसंख्यक जिनमें अधिकाँश हिन्दू थे ...इस्लामिक कट्टरवाद की भेंट चढ़ गए और हमारे सेकुलर शैतानों और मानवाधिकार के ठेकेदारों व् आदर्शवादी मिडिया के मूंह से इस त्रासद मानव-विध्वंस पर कभी 'हे राम' तक नहीं निकल माया. ईष्ट पाक अब बंगलादेश में भी अल्पसंख्यको का यही हाल है. करोड़ों लोग तो आतंक और बेबसी के चलते हमारे देश में ही घुस आए हैं. पिछले छह दशक में हिन्दुओं की जनसँख्या ३४% से सिमट कर मात्र ९% रह गई है. हमारे सेकुलर शैतान फिर भी बंगलादेश की आज़ादी पर अपनी पीठ थपथपा कर मस्त हैं. जैसे 'हिन्दुओं का कोई मानव अधिकार है ही नहीं'.
पिछले १४०० बरस में जब से इस्लाम और जेहाद ने जन्म लिया है लगभग २७० मिलियन 'काफ़िर' जो इस्लाम को नहीं मानते थे मौत के घाट उतार दिए गए !अफ्रीका में इस दौरान १२० मिलियन ईसाई व् अन्य 'काफ़िर' जेहाद की भेंट चढ़ गए. हिन्दुओं की आधी आबादी लगभग १०० मिलियन और सिल्क रूट के सभी बौध -लगभग १० मिलियन , भी इस्लामिक आतंक की ताब न ला सके. बिहार का नालंदा विश्व विद्यालय जो विश्व का सबसे विशाल और प्राचीन ज्ञान केंद्र था - मुस्लिम आक्रान्ता 'खिलज़ी ' द्वारा महज़ इस लिए नेस्तो- नामूद कर दिया गया क्योंकि विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में 'कुरआन' नहीं थी. ज्ञान के समंदर पुस्तकालय को आग लगा दी गई जो तीन माह तक जलती रही .....यह जेहाद के वो आंसू हैं जो किसी पुस्तकालय में नहीं पढाए जाते.
जेहाद के अज्ञान की इसी अग्नि में सारा 'अरब' जल रहा है अरब के २० देशों में से १६ में तानाशाही साम्राज्य है. बाकी २ इरान और लेबनान में गृह युद्ध जैसी स्थिति है. इन देशों में तानाशाह और नई व्यापारिक जमात का नियंत्रण है जिसे अमेरीका और इस्लामिक कठमुल्लाओं का समर्थन प्राप्त है, और इस्लामिक आतंवाद को पनपाने में इस व्यवस्था का मुख्य हाथ है .गत १०० साल में इन अरब देशों का मानवीय ज्ञान के उत्थान में बंगला देश से भी कम योगदान रहा है. अरब की रियाया आज विश्व की सबसे लहुलुहान सभ्यता है. जिसके समक्ष कोई भी ऐसा रहनुमा नहीं जो उसे सही राह दिखा सके.वे पश्चिम द्वारा दबाए जाते है , इजराइल की ठोकर पर हैं और आपने ही नवाबों के विश्वाश्घात के दंश से पीड़ित. अरब देशों की प्रगति का अंदाज़ा इस तथ्य से ही भली भांति उजागर होता है कि सारे अरब देशो द्वारा उत्पादित सामान का निर्यात इजराईल से भी कम है.
मिश्र से हुई शुरुआत अब सभी अरब देशों में फैलने जा रही है. अरब की जनता को अपना भविष्य अब इस्लाम के स्थान पर लोकतंत्र में तलाशना ज्यादा मुफीद नज़र आ रहा है. दस लाख मिश्र वासियों का हजूम हुस्ने मुबारक के ३० साल पुरानी तानशाही के विरुद्ध सड़कों पर है - जब कि विकल्प नदारद है...फिर भी लोग तानाशाही का बस अंत चाहते हैं.
अपनी मज़हबी मान्यताओं के फलसवरूप मुसलमानों की आबादी तो नित्य नई उचाइयां छू रही है. विश्व की कुल आबादी बीस साल बाद ६.९० अरब से बढ़ कर ८.३० अरब हो जाएगी वहीँ मुसलामानों की आबादी १.६० अरब से बढ़ कर २.२० अरब होगी.बढती आबादी के चलते निश्चय ही उपलब्ध संसाधन बौने पड़ जायेंगे और फिर कोई 'चंगेज़ खान' मानवता के खून से अपनी शमशीर की प्यास बुझाएगा....
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बढती आबादी सब के लिये खतरनाक है..
जवाब देंहटाएंराम सिंह सोंधो के जान बचा कर भारत पहुँचाने पर हमारे 'सिंह' साहेब को कोई मलाल नहीं ! शायद-
जवाब देंहटाएंभारतीय सेकुलरिज्म का यही तकाजा है.
jane kya kya dekhna baki hai abhi .