शनिवार, 26 दिसंबर 2009

सुख्मृत्यु -एक वरदान या अपराध

युथ्नेजिया अर्थात सुख्मृत्यु एक अपराध या वरदान ! भारतीय कानून में सुख्मृत्यु एक अपराध है क्योंकि हमारा सारा कानूनी ढांचा ब्रिटिश पीनल कोड पर आधारित है और ब्रिटिश कानून इसाई धरम पर आधारित है. इसाई धरम में जीवन को लेने का अधिकार केवल इश्वर को है क्योंकि यह उसी का दिया हुआ वरदान है.आज भी विश्व में यह एक गहन विचार का विषय है. इसाई मत के विपरीत जाते हुए विश्व के कुछ देशों ने इच्छा मृत्यु को मान्यता दे दी है जिनमें हेदरलैंड पहला देश है जिसने ४,२००२ में, और अमरीका के प्रान्त ओरेगोन ने एक एक्ट द्वारा १९९७ में डेथ विद डिग्निटी को मान्यता दे दी . यु. के . के डॉ;आर्थर ने एक बच्चे को कोडीन की डोज़ दे कर सुख मृत्यु सुला दिया क्योंकि बच्चा जन्म से ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित था -डॉ; पर हत्या का केस चलाया गया किन्तु कोर्ट ने उसे बरी कर दिया कियोंकि यह सब दया भाव से किया गया था. कोलम्बिया के डॉ; डेथ (डॉ;जैक ) ने तो, १९९० तक , असाध्य रोगों से पीड़ित १३० लाइलाज रोगीओं को इच्छा मृत्यु में मदद की. सुख मृत्यु के लिए तीन प्रकार की प्रक्रियाए प्रयोग में ली जाती हैं - एक्टिव ; इसमें जान लेवा इंजेक्शन लगा कर मौत की नींद सुला दिया जाता है . दूसरा है पैस्सिव - रोगी को जीवित रखने के लिए लगाये गए सपोर्ट सिस्टम को हटा लिया जाता है. तीसरे डबल इफेक्ट - में रोगी को दर्द निवारक दवाओं की हैवी डोज़ दे कर चिर निद्रा में सुला दिया जाता है.
पिछले ३६ साल से एक बलात्कार पीड़ित नर्स हस्पताल में असहाए और दयनीय हालत में जीवन मृत्यु से जूझ रही है. उसका यह हाल करने वाला दोषी ७ साल की सजा काट कर आज़ाद भी हो गया .इच्छा मृत्यु कानूनन जुर्म के चलते इसे ऐसे अपराध की सजा मिल रही है जो उल्टा इसके साथ ही हुआ है. अहिंसा के मसीहा महात्मा गाँधी जी का दया मृत्यु के प्रति दृष्टिकोण क्या था ! इसका अंदाज़ा इस का घटना से भली भांति लगाया जा सकता है. साबरमती आश्रम में एक बछड़ा एक लाइलाज बीमारी से पीड़ित असहनीय पीड़ा से गुज़र रहा था. गांधीजी ने डाक्टर से इसे तुरंत दया मृत्यु दे कर पीड़ा मुक्त करने का आदेश दिया. कुत्तों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते हुए मेनका गाँधी ने स्ट्रे एनिमल कण्ट्रोल एक्ट (डॉग) २००१ में रैबिस पीड़ित पागल कुत्तों के लिए विशेष तौर पर दया मृत्यु का प्रावधान करवाया. रैबिस पीड़ित कुत्ते के लिए तो दया मृत्यु लेकिन कुत्ते के काटे रैबिस पीड़ित मानव के लिए येही राहत कानूनन जुर्म ! लोक हित में इच्छा मृत्यु वैदिक दर्शन का एक मौलिक सिधांत रहा है. श्रावस्ती के राजा विद्दभ ने कपिलवस्तु पर आक्रमण कर प्रजा का संहार करना शुरू कर दिया तो संत महानाम ने जो की राजा के गुरु भी थे ,उनसे गुरुदाक्षिना के रूप में नरसंहार रोकने की मांग की. राजा ने शर्त रखी कि जितनी देर वे तालाब के जल में रहेंगे उतनी देर नरसंहार नहीं होगा. संत महानाम ने लोक हित में सदैव के लिए जल-समाधी ले कर आत्मोत्सर्ग कर दिया.
इसाई धर्म जीवन को इश्वर का उपहार मानता है.,तो वैदिक दर्शन इसे अपने पूर्व जन्मों का प्रतिफल और मृत्यु को परमात्मा द्वारा दिया गया उपहार. यदि मृत्यु का पूरे पूरे होशोहवास में वर्ण किया जाये तो जन्म जन्म के बंधन से मुक्त हो कर मोक्ष को पाया जा सकता है. वैदिक धर्म जीवन को अमृत कि खोज मानता है और मृत्यु से गुजर कर ही अमृत कि उपलब्धि संभव है. महाकवि कालिदास ने ठीक ही कहा है कि 'वास्तव में जन्म एक दुर्घटना है, जबकि मृत्यु ही शाश्वत सत्य है.'....इसी लिए जीवन को एक यात्रा और मृत्यु को इस यात्रा के एक पडाव कि भांति माना गया है. मृत्यु होते ही आत्मा नए जीवन कि तलाश में प्रयत्न शील हो जाती है. सामान्य आत्माएं किसी भी सुलभ प्राप्त योनी में प्रवेश कर जन्म पा जाती हैं. कठिनाई देव आत्माओं और प्रेत आत्माओं को होती है. देव आत्माएं श्रेष्ट योनी कि खोज में, और प्रेत आत्माएं किसी अधम योनी कि खोज में भटकती रहती हैं.
वैदिक दर्शन में विशवास रखने वाले इच्छा मृत्यु को एक वरदान मान कर चलते हैं. महाभारत के युग पुरुष भीषम पितामाह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था. हठयोग से उन्होंने सुख दुःख पर विजय प्राप्त कर ली थी. वान शैया पर ६ माह तक उत्तरायण योग कि प्रतीक्षा कि और शुभ लग्न में अपनी इच्छा से मृत्यु लोक को प्रस्थान किया.धरमराज के अर्धांश महापुरुष विदुर ने भी अपनी इच्छा से प्राण त्यागे ! पांडवों ने तो सदेह बैकुंठ धाम कि ओर प्रस्थान कर इच्छा मृत्यु को ग्रहन किया. वैदिक धरामाव्लाम्भी जहाँ जीवन को एक उत्सव मानते है वहीँ मृत्यु को महोत्सव. सैंकड़ों वर्ष कि गुलाम मानसिकता का ही परिणाम है कि आज़ाद भारत में एक कुत्ते को प्राप्त 'दया मृत्यु' का अधिकार एक मनुष्य को नसीब नहीं है.

सोमवार, 21 दिसंबर 2009

भूरू -कालू की लालू लीला

भूरू ,भूरी और कालू पूरे मोहल्ले की शान हैं क्योंकि सारा मोहल्ला उन्हें बिना पगार का चौकीदार मानता है. भूरी फिर से पेट से है. श्रीमती जी को बेसब्री से उसके प्रसव दिवस का इंतज़ार है, जब भूरी फिर से ६-७ पिल्लों को जन्म देगी . सुबह -शाम चबूतरे पर भूरी के लिए दूध का कटोरा रखा मिलता है. देवीजी बिना नागा तीनो के लिए दूध, ब्रेड और वह भी मलाई लगी हुई, परोसना नहीं भूलती . यह बात अलग है की हमें ब्रेड सूखी ही मिलती है . भूरी और भूरू में एक दूरारे की प्रति गहरा लगाव है. जब भूरू खा रहा है तो भूरी एक आज्ञाकारी पत्नी की भांति एक ओर कड़ी इंतज़ार करती है -उसकी तृप्ति के उपरांत ही बचे खुचे पर संतुष्ट रहती है.अब भूरी खाती है और भूरू चुप चाप खड़ा देखता है -अपने आने वाले बचों की खातिर ..... एक कालू जी हैं की उन्हें कुछ भी डालो -भूरू महाशय चट कर जाते है . देवीजी का ऐसा मानना है की बेचारे कालू को कम दिखाई देता है.पर यह कसर शनिवार को पूरी हो जाती है जब हर कोई एक से बढ कर एक पकवान कालू जी की सेवा में लिए खड़ा होता है. और कालू महाशय का नखरा भी सातवें आस्मां पर होता है. शेसी घी से चुपड़ी रोटी पर भी नाक नहीं धरते.
जब से मेनकाजी का वरदहस्त मिला है ! गली के आवारा कुतों को मारना तो बहुत दूर की बात है,कोई प्रताड़ित भी नहीं कर सकता. स्ट्रे एनिमल कंट्रोल रूल्स (डॉग) २००१ के तैहत आवारा कुत्तों को सम्पूर्ण संरक्षण प्राप्त है. कुत्तों पर अत्याचार के दोषी को अब ५ वर्ष तक कारावास या जुर्माना अथवा दोनों की सजा हो सकती है .इस अधिनियम के अंतर्गत जहाँ आवारा कुत्तों को मारने पर प्रतिबन्ध लगा है वहीँ सभी कुत्तों की नसबंदी का भी प्रावधान है. सभी नगर निगमों को निर्देश दिया गया है की नगर निगम कमिश्नर की अध्यक्षता में ६ सदस्य एक कमेटी गठित की जाये जिसमें एक पशु चिकित्सक के अतिरिक्त जन स्वस्थ्य ,पशु भलाई विभागों और पशु प्रेमी सवयम सेवी संस्थाओं के
नुमैन्दे हों . यह कमेटी कुत्तों की देख भाल, गिनती,टीकाकरण के अतिरिक्त इनकी बढती आबादी पर अंकुश लगाने के कार्यक्रम संचालित करे जिसमे इनकी नसबंदी प्रमुख कार्य है. रैबिस से पीड़ित पागल कुत्तों के लिए इस एक्ट में दया मृत्यु का प्रावधान है. जिसे डाक्टर की देख रेख में उक्त कमेटी द्वारा कार्यान्वित किया जायगा . इन पागल कुत्तों द्वारा काटे जाने के सबसे अधिक शिकार बच्चे और कूड़ा बीनने वाले निर्धन लोग होते है जिनके पास एंटी रैबिस टीका लगवाने के भी पैसे भी नहीं होते. ऐसे में कोई गरीब यदि रैबिस का शिकार हो जाये तो किसी एक्ट में ऐसे अभागे को दया मृत्यु का भी प्रावधान नहीं है.
नगर निगमों की अफसरशाही ने उक्त एक्ट पर तुरंत आंशिक अमल करते हुए आवारा कुतों को मारना तो बंद कर दिया किन्तु इनकी नसबंदी का काम बिलकुल भूल ही गए . परिणाम हमारे सामने है -बागों के शहर पटियाला की ५ लाख आबादी पर जहाँ आवारा कुत्ते २० हज़ार हो गए वहीँ देश की राजधानी दिल्ली में ती कुत्तों की यह संख्या हमारे शहर की आबादी ५ लाख को भी पर कर गई. अब तो दिल्ली हाई कोर्ट ने कुत्ता प्रेमिओं की एक याचिका पर दिल्ली नगर निगम को निर्देश जारी किये हैं की कुत्तों के लिए ऐसे स्थान सुरक्षित किये जाएँ जहाँ पर ये ये लोग कुत्तों को भोजन आदि बिना रोक टोक परोस सकें .
मेनका जी का कुत्ता संरक्षण अधिनियम और निगम अधिकारिओं का कुत्तों की नसबंदी के प्रति उदासीन रवैया बदस्तूर जारी है. आवारा कुत्तों का हम दो हमारे छे का खेल भी बदस्तूर जारी है. अधिकारिओं का उदासीन रवैया और कुत्तो की लालू लीला यदि इसी प्रकार कुछ वर्ष यूँ ही चलती रही तो वेह दिन दूर नहीं जब प्रतियेक दिल्ली वासी के पीछे एक आवारा कुत्ता खड़ा दुम हिला रहा होगा.....कहते हैं ! धरम राज युधिष्टर के श्वान ने अपने मालिक का साथ स्वर्गधाम तक निभाया था

शनिवार, 19 दिसंबर 2009

शंख नाद .....एक अपराध

धरम क्षेत्र कुरुक्षेत्र की जिस कर्म भूमि से भगवान श्री कृष्ण ने अपने पंच्जय शंख से पापी और मानवता के अप्रराधिओं के विरुद्ध धर्मपरायणता का उदघोश किया था, उसी कर्म भूमि पर शंख बेचना ,रखना या शंख से पूजा करना अपराध हो गया है .विल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट १९७२ की आड़ में कुछ वन्य जीव संरक्षण के ठेकेदार इसे अपराध घोषित कर हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं. उक्त एक्ट के तैहत शंख सिपिओं के प्रचालन पर रोक लगाई गई थी. हरयाणा की एक पीपल फार एनिमल संस्था के नरेश कदयाल की पैहल पर २ शंख विक्रेताओं को वाइल्ड लाइफ विभाग द्वारा बंदी बना लिया गया.
१६२ वर्ष पूर्व भी कुरुक्षेत्र के ही एक अँगरेज़ पुलिस अधिकारी ने पिहोवा के एक पुजारी पर मंदिर में शंख बजाने के जुर्म में १०० रूपए जुर्माना किया था.जब मामला लुधिआना कोर्ट के एक अँगरेज़ जज के संज्ञान में लाया गया तो पुजारी की धार्मिक भावनाओं को देखते हुए जुरमाना खारिज कर दिया गया. उक्त एक्ट की एक अन्य धरा के जून २००१ में लागू होने पर भी श्री लंका से आए एक जहाज से ५ लाख शंख ज़ब्त कर लिए गए. क्योंकि जहाज में शंख एक्ट लागु होने से पूर्व लादे गए थे इस लिए दोषिओं को बरी कर दिया गया. देश भर में शंख, सीपिओं के व्यापार में लगभग १५ लाख लोगों की आजीविका चलती है. और केवल इंडियन ओशन से ही २५० किस्म के शंख निकाले जाते हैं.
शंखो के व्यापार पर रोक विश्व वन्य जीव संरक्षक संस्थाओं के अनुरोध पर इस लिए लगाई गई थी की योरपियन देशों में सी फ़ूड के रसिक लोगों द्वारा बहुत अधिक मात्रा में शंख सीपिओं का समुद्र मंथन होने लगा था जिस कारन इन समुद्री जीव जंतुओं के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया था. जबकि भारतीओं में सी फ़ूड का प्रचालन नाम मात्र ही है. प्राचीन मान्यताओं के चलते हमारे यहाँ तो शंक का महत्व एक धार्मिक धरोहर के रूप में ही अधिक है. अनादी काल से हिन्दू समाज शंख की आराधना पूरी श्रधा और भक्ति से करता आ रहा है. शंख से धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है. दक्षिणावर्ती पांचजन्य शंख भगवान विष्णु के कर कमलों की शोभा हैं और यह बहुत ही दुर्लभ शंख लाखों शंखों में एक ही पाया जाता है. हिन्दू समाज शंख को अपने घर , कार्य, व् पूजा स्थल पर एक शुभ्यंकर प्रतीक के रूप में सजाते हैं. सभी देवी देवताओं की आराधना के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के शंखों का चयन किया जाता है. और हमारे शास्त्रों में इस का विधि सम्मत विधान है.
महाभारत के युद्ध का उद्दघोश भगवान श्री कृषण ने अपने पांचजन्य शंख की उत्कल ध्वनि से ही किया था इसके पश्चात् युद्ध की घोषणा के रूप में महान धनुर्धर अर्जुन ने देवराज इंद्र से प्राप्त देवदत्त शंख बजाया. भीम ने विशाल पांडर नामक शंख से भयंकर गर्जना की. युधिष्टर ने विजय का प्रतीक -अन्नंत विजय शंख , नकुल ने शुभ्यंकर प्रतीक सुघोष शंख और सहदेव ने सबसे सुन्दर मणिपुष्पक शंख से युद्ध में विजयी भाव की कामना की. अन्य महाराथों ने भी अपने अपने शंख बजा कर युद्ध की घोषणा कर दी. वास्तव में शंख नाद ही युद्ध भूमि में एक योधा की पहचान था. शंख का धार्मिक महत्व महाभारत काल से भी पूर्व का है और हिन्दू समाज में इसे धरम के प्रतीक रूप में जाना जाता है.
जानवरों पर हो रहे अत्याचारों के विरुद्ध झंडाबरदार संस्थाओं के इन ठेकेदारों को शंखो और सीपिओं में पल रहे कीड़ों की तो इतनी चिंता सता रही है.क्या इन्हें मज़हब के नाम पर तडपा
तडपा कर मारे जाने वाले जानवर दिखाई नहीं देते.

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

जन्नत की हकीकत -कासमी,कसाब और ९ ताबूत.

जे जे अस्पताल में एक साल से सड रही कसाब के ९ साथिओं के शवों में असहनीय दुर्गन्ध पैदा हो गई है. अस्पताल के शव कक्ष में तैनात कर्मचारी दिन रात इन शवों को संजोने में व्यस्त हैं. जब तक कोर्ट से कोई आदेश नहीं आ जाता इन शवों को दफन भी नहीं किया जा सकता. शव कक्ष का तापमान ६ डिग्री से कम बनाये रखने के इलावा जब इन्हें कक्ष के भीतर जाना पड़ता है, टो इनकी जान पे बन आती है. भयंकर दुर्गन्ध के कारन सर चकरा जाता है और बेहोशी छ जाती है कोर्ट में हो रही देरी का संताप अस्पताल के ये कर्मचारी भोग रहे हैं.सड रहे शवों से पैदा हुई दुर्गन्ध के कारन किसी संक्रामक बीमारी का भैय अलग सत्ता रहा है.
कसब केस की सुनवाई कर रहे जज साहेब के सब्र का बाँध एक साल बाद ही सही आखिर टूट ही गया. जब कसाब के वकील अब्बास कासमी ने कसब और उसके ९ साथी जेहादीयों के हाथों
मरे गए पीड़ितों के सम्बन्धियो की गवाहियो के हलफनामे कबूल करने में आना कानी की. कासमी के कारन ही यह केस एक साल से लटक रहा है. कोर्ट में झूठ बोलने और नित नई अड़ंगेबाजी करने के इलज़ाम में जज साहेब ने कासमी को केस से बे दखल कार दिया.
मुंबई हमले से पहले कसब और उसके ९ साथिओं को उनके पाकिस्तानी आकाओं ने कुरआन का जेहादी पाठ पढाया था जैसा की कासब ने भी अपने एक बयां में माना है, कि उसे जन्नत का ख्वाब दिखाया गया था - अर्थात 'जो मुस्लमान इस्लाम के लिए जेहाद में मारा जाता है वेह सदा के लिए मृगनयनी अप्सराओं के साथ जन्नत में आंनंद भोगता है. अब कासब को जन्नत कब मिलेगी यह तो नहीं मालूम, पर उसके ९ साथी बंद ताबूतों में दोज़क कि दुर्गन्ध ज़रूर फैला रहे हैं और मरने के बाद भी कासमी जैसे जाहिल वकीलों की हरकतों के कारन जे जे अस्पताल के शव कक्ष में तैनात कर्मचारिओं का जीवन भी नरकतुल्य बना छोड़ा है.
कसब केस का जल्द निपटारा तभी संभव है यदि केस की सुनवाई जे जे अस्पताल के शव कक्ष में ९ जेहादिओं की जन्नत के बीच की जय. बकौल ग़ालिब 'हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन, दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है.

शनिवार, 28 नवंबर 2009

बाबर खुश हुआ ........

लिब्राहन रिपोर्ट सेकुलर मनमोहन सरकार की बाबर को सच्ची शर्धांजलि कहें तो अतिश्योक्ति न होगी. २००५ में मनमोहन बाबर के देस अफगानिस्तान,भारत द्वारा संचालित अफगानिस्तान के नवनिर्माण कार्यों को देखने गए थे और साथ में राजपूत नेता विदेशमंत्री नटवर सिंह और देश के भावी प्रधान मंत्री राहुल बाबा भी थे.अब अफगानिस्तान गए हैं तो बाबर की मज़ार पर तो जाना ही था -अफगानी जिन्ना तो बाबर ही हुए न.अडवाणी की तरहं बोले तो कुछ नहीं पर बाबर से वायदा जरूर किया होगा -तेरे नाम की मस्जिद तोड़ने वालों को छोडेंगे नहीं.एक सेकुलर देश में कैसे कोई एक मसीत को गिरा सकता है, चाहे वो कैसे ही बनी हो. वहीँ पास में एक समाधि भी थी,जिसे मनमोहन और राहुल ने तो उन्देखा किया ही, इराकी तेल पर फिसले नटवर की नज़र भी इस समाधी से फिसल गई. यह समाधी थी धरती के वीर महान राजपूत सम्राट और भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वी राज चौहान की.समाधी पर लिखा है ,यहाँ दिल्ली का काफ़र हिन्दू राजा पड़ा है'.९०० साल बाद आज भी अफगान लोग समाधी पर जूते मार कर बोलते हैं 'हिन्दू काफ़िर ने हमारे सुलतान गौरी को मारा था' -ऐसी प्रथा है.अब ऐसे हिन्दू राजा की समधी पर जाएँ भी कैसे- सेकुलर इमेज तार तार न हो जायगा और फिर मुस्लिम वोट बैंक का भी तो सवाल है.
ऐनी मार पई कुर्लाने, तैं की दरद न आया ' ;-बाबर के अत्याचारों से विचलित गुरुनानक देव जी के मुख से यह शब्द बरबस ही निकल पड़े थे. बाबर जिसने लाखों बेगुनाह हिन्दुओं को केवल इस लिए मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वे इस्लाम को न मानने वाले काफ़िर थे -सैंकड़ों मंदिर तोड़े क्योंकि इस्लाम में मूर्ति पूजन हराम है. बाबर के ही एक सिपहसलार ने अयोध्या में भगवन राम के जन्मस्थान पर बने मंदिर को तोड़ कर बाबर के नाम की मस्जिद बना दी. सदिओं से हिन्दू अपने आराध्य देव के जन्म स्थान को आजाद करवाने के लिए संघर्ष कर रहे है. सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी इसे मुक्त करवाने के लिए मुहीम चलाई थी. १७ साल पहले बाबर की यह ज़बर की निशानी कार सेवकों ने गिरा दी.और हजारों मंदिर तोड़ने कर अल्लाह के बन्दे कहलाने वाले जेहादी मुसलमानों की यकायक भावनाए आहत हो गई. केंद्र की सेकुलर कांग्रस सरकार को मुस्लिम वोट बैंक खिसकता दिखाई देने लगा. झट से कमीशन बिठा दिया.
लिब्रहान रिपोर्ट आ गई, बाबर की मजार पर मनमोहन और राहुल बाबा का किया सजदा साकार हो गया है. और पृथ्वी राज चौहान के वंशज नटवर सिंह गए तेल लेने !.......बाबर...खुश ....हुआ...!

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

vinod mishra ka blog: २६\११ ! दुनिया हम पर हस रही होगी तो पाकिस्तान ठहाका लगा रहा होगा

vinod mishra ka blog: २६\११ ! दुनिया हम पर हस रही होगी तो पाकिस्तान ठहाका लगा रहा होगाkendr mein ek naye mantralaya ki rachna ki jaye-rudaali aur candle mantralaya jiska cabinet mantri shiv raj patil ko banaya jaye aur ye kar bhi kaya sakte hain.

चाचा चोर भतीजी काजी -जागो मोहन प्यारे

चाचा चोर भतीजी काजी -मनमोहन राज़ी का राज़ी - जागो मोहन प्यारे ......
सी बी आइ के आला अफसर किस कदर क्वात्रोकी चाचा को बचाने के लिए झूठ फरेब की सभी हदें पार किये जा रहे हैं, का एक और प्रमाण सामने आया है. आर टी आई के तैहत क्वात्रोकी के बारे में मांगी एक जानकारी देने से सी बी आई ने साफ़ इनकार कर दिया -कारन बताया कि इस से दोषी के खिलाफ अभियोजन और पकडे जाने में अड़चन आयगी.क्वात्रोकी केखिलाफ सभी मामले बंद करने का निर्णय यह सरकारी जाँच एजेंसी पहले ही किये बैठी है. फिर यह नई अड़चन का अडंगा कहाँ से आ गया. ज़ाहिर है चाचा कि भतीजी की नाराज़गी से बचने या फिर उसे खुश रख कर कुछ हासिल करने की होड़ लगी है एजेंसी के आला अफसरों में. सी बी आई के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह खुद स्विस बैंकों से क्वात्रोकी का कच्चा चिठा लाये थे जिसमें दलाली के २१ करोड़ के खाते का खुलासा हुआ था. किस प्रकार चाचा को पहले भगाया और बचाया गया और फिर दलाली का पैसा दिलवाया गया किसी से छुपा नहीं. सत्ता के दलाल देश के राज परिवार के प्रति अपनी स्वामी भक्ति व्यक्त करने में व्यस्त हैं. बोफोर जाँच के नाम पर कंहीं पे निगाहें कहिएं पे निशाना का खेल बरसों से खेल रहे हैं. क्वात्रोकी के खिलाफ दिल्ली कोर्ट में अधूरे डोकुमेंट लगा कर मामला रफादफा करवा दिया. स्विस कोर्ट में इस बिनाह पर क्वात्रोच बच गए कि उस वक्त दलाली लेना देश के क़ानून में गुनाह था हीनहीं.
गरीब देश के अमीर चोरों का ७० लाख करोड़ रूपया स्विस बैंको से वापिसी की उम्मीद हम इन चोर चोर चचेरे भाईओं से लगाए बैठे हैं. जागो... मोहन प्यारे ...

रविवार, 22 नवंबर 2009

चाचा चोर भतीजी काजी -मनमोहन राज़ी का राज़ी
सी बी आइ के आला अफसर किस कदर क्वात्रोकी चाचा को बचाने के लिए झूठ फरेब की सभी हदें पार किये जा रहे हैं, का एक और प्रमाण सामने आया है. आर टी आई के तैहत क्वात्रोकी के बारे में मांगी एक जानकारी देने से सी बी आई ने साफ़ इनकार कर दिया -कारन बताया कि इस से दोषी के खिलाफ अभियोजन और पकडे जाने में अड़चन आयगी.क्वात्रोकी केखिलाफ सभी मामले बंद करने का निर्णय यह सरकारी जाँच एजेंसी पहले ही किये बैठी है. फिर यह नई अड़चन का अडंगा कहाँ से आ गया. ज़ाहिर है चाचा कि भतीजी की नाराज़गी से बचने या फिर उसे खुश रख कर कुछ हासिल करने की होड़ लगी है एजेंसी के आला अफसरों में. सी बी आई के पूर्व निदेशक जोगिन्दर सिंह खुद स्विस बैंकों से क्वात्रोकी का कच्चा चिठा लाये थे जिसमें दलाली के २१ करोड़ के खाते का खुलासा हुआ था. किस प्रकार चाचा को पहले भगाया और बचाया गया और फिर दलाली का पैसा दिलवाया गया किसी से छुपा नहीं.
गरीब देश के अमीर चोरों का ७० लाख करोड़ रूपया स्विस बैंको से वापिसी की उम्मीद हम इन चोर चोर चचेरे भाईओं से लगाए बैठे हैं. जागो... मोहन प्यारे ...

रविवार, 15 नवंबर 2009

सेकुलर शैतान का सच

जब प्रेम करता है तो आदमी अप्रैल (बसंत) होता है ,लेकिन जब शादी करता है तो दिसम्बर (पतझड़) हो जाता है . कुछ ऐसा ही हुआ अधेड़ उम्र के जिन्ना के साथ जब वे १६ साल की पारसी लड़की पर लट्टू ही गए . रति के पिता दिनश पेटिट जिन्ना के मित्र थे . जिन्ना ने पहले तो अंतरजातीय विवाह के बारे में उनके विचार जाने . सकारात्मक उत्तर पाते ही रति का हाथ मांग लिया. जिन्ना पेटिट से मात्र ३ साल छोटे थे . सुनते ही पेटिट आग बबूला हो गए और रति के जिन्ना से मिलने पर कानूनी पाबन्दी लगवा दी. अपनी अठारहवी जन्म संध्या पर जब पेटिट परिवार उसका जन्म दिन मन रहा था, रति जिन्ना के पास भाग गई. पिता रति के इस दुस्साहस से बहुत आहत हुए, रति से नाता तोड़ते हुए उसके 'उठावना' (मृत्यु ) की सूचना अख़बारों में छपवा दी .
अब पिता के दरवाजे रति के लिए बंद हो चुके थे -वह अब जिन्ना के रहमोकरम. जिन्ना ने भी मौका देख अपना सेकुलर मुखौटा उतर दिया और इस्लामी वर्ष के रजब महीने के सातवे दिन ९ अप्रैल को पहले तो उसे इसलाम कबूल करवाया और उसी दिन उस से निकाह कर लिया.रतिजिसने जिन्ना की खातिर घर-बार सब कुछ छोड़ दिया का अंत बहुत त्रासद रहा. अबने जीवन का अंतिम वर्ष उसने जिन्ना से अलग एकांकी और रुग्णावस्था में व्यतीत किये. बम्बई के ताज होटल के एक कमरे में वह एक वर्ष जीवन मृत्यु के बीच जूझती रही. जीवन के इसी पड़ाव पर शायद रति को अपने धरम परिवर्तन की गलती का अहसास हुआ. रति की अंतिम इच्छा थी की उसका मृत्यु के बाद हिन्दू रीती से दाह संस्कार किया जाये .जिन्ना ने फिर भी मुस्लिम रीती के साथ रति को दफनाया- अपनी कोम का रहनुमा बने रहने के लिए उसने यही मुनासिब समझा- एक बार फिर जिन्ना असली चेहरा लोगों के सामने था.
जिन्ना खुद गुजरात के खिज़ा बनिया के वंशज थे. बेटी दीना महज़ साढे नौं साल की थी जब माँ की मृत्यु हो गई और वेह अपने पारसी ननिहाल के यहाँ पली बड़ी हुई . ननिहाल के ही निकटवर्ती एक पारसी युवक नेविल वाडिया से वेह प्रेम कर बैठी .दीना ने जब जिन्ना से अपने प्यार के बारे में बात की तो जिन्ना के भीतर का सेकुलर शैतान फुंकार उठा और कहा की काया तुझ्हे कोई मुस्लमान युवक नहीं मिला. दीना ने भी फौरन जिन्ना को उनके अंतर्जात्य निकाह की याद दिला दी.
अपने आप को सेकुलर दिखनेऔर रति को खुश करने के चक्कर में जिन्ना इसलाम में हराम मांस से बने हैम् सैंड विच और पोर्क सौसिज़ बड़े चाव से खाते मगर अपनी कोम से चोरी चुपके. जिन्ना की पाकिस्तान बाबाने की सनक ने ५ लाख निर्दोष लोगों की जान तो ली ही और ५० लाख लोग घर से बेघर हो गए. अपने अंतिम दिनों में राज यक्ष्मा से पीड़ित जिन्ना को अपनी गलती का एहसास हुआ जब उन्होंने अपने डाक्टर कर्नल इलाहिबख्श से कहा-डाक्टर पाकिस्तान मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल थी. 'कहते हैं मरने से पहले शैतान भी कभी झूठ नहीं बोलता

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

राष्ट्र ध्वज तिरंगा -गरीब फ़िर नंगे का नंगा

डॉo एस. राधाकृष्णन ने राष्ट्र ध्वज के तीन रंगों और अशोक चक्र की प्रतीकात्मक व्याख्या करते हुए -भगवे रंग को त्याग का प्रतीक मानते हुए, राजनेताओं को भौतिक लाभ का लोभ त्याग कर पूरी निष्ट्थासे देश सेवा की नसीहत दे डाली। मध्य के शवेत रंग को सचाई का प्रतीक मान कर अपने आचरण में पारदर्शिता और सचाई लेन को कहा। हरे रंग को देश की हरियाली का प्रतीक मानते हुए लोक हित में प्रगति का बीजारोपण करने का संदेश दिया। अशोक चक्र को कानून के राज्य और निरंतर प्रगति का प्रतीक माना गया।

तिरंगे के तीनो रंगों की मूल भावना के त्रिस्कार की आज होड़ लगी है -हमारे देश को प्रगति पथ पर लेजाने वालों के बीच। हमारे राजनेताओं द्वारा पिछले ६० सालों से देश की गरीब जनता की खून पसीने की कमाई को इस कद्र लूटा की आज दुनिया के सबसे गरीब देश के सबसे अमीर चोरों का काला पैसा स्विस बैंकों में १४ खरबडोलर का आंकडा पार कर गया है। यह है बापू के बेटों की त्याग भावना का प्रमाण !

अपने आचरण में पारदर्शिता और सचाई !हे राम....बापू अपने साथ ही ले गए। और हरित क्रांति तो हुई, गोदाम अनाज से इस कद्र भरे पड़े हैं की सडरहा है,और ६०% जनता भूखे पेट सोती है । रही निरंतर प्रगति -दुनिया के सबसे गरीब देश में अरबपति धनकुबेरों की गिनती सबसे अधिक है। राज तो है और कानून की अगली पेशी पड़ी है।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

गाँधी का सारे जहाँ से अच्छा -इकबाल! सेकुलर जिन्ना का आजाद

'मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,'
'हिंदी हैं हम वतन है, हिन्दोस्तान हमारा,'
गाँधी जी ने इसे 100 बार गुनगुनाया था -लोगों ने इसे अपने तौर पर कौमी तराना मान लिया
-क्योंकि इस गीत में उन्हें हिन्दू -मुस्लिम भाईचारे के सन्देश के साथ साथ देश प्रेम का सन्देश सुनाई देता था।
अल्लाम्मा इकबाल ने जब पहली बार 1904 में इसे कॉलेज की स्टेज से गाया तो उन्होंने भी नहीं सोचा था की यह तराना इतना मकबूल होगा - इसे ;तराना इ हिंद ; का नाम दिया गया .

1910 आते आते इकबाल बदल गए ! अब वे मुस्लिम लीग के संस्थापकों में से एक और इसलाम और मुस्लिम समाज के रहनुमा बन गए पाकिस्तान स्टेट का विचार उनके ही दिमाग की उपज था . अब वे मुफ्फकिर इ पाक विचारधारा के पर्चारक थे .इकबाल ने राष्ट्रवाद और ध्राम्निश्पेक्ष्ता के सिधांत को सिरे नक्कार दिया . और फिर से नया ‘तराना इ मिल्ली ’लिखा -इसमें 'हिंदी' का स्थान ले लिया 'मुस्लिम' ने और 'हिन्दोस्तान' की जगह 'सारा- जहाँ' आ गया ;
'चीनो अरब हमारा , हिन्दोस्तान हमारा ,
'मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा .
60 साल की उम्र में 1938 में उनकी मौत हुई .उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे .
पाक ने उन्हें राष्ट्र कवी माना और 9 नवम्बर उनके जन्म दिन को कौमी छुट्टी कर दी .
जिस शख्स ने देश के टुकडे किये उसके तराने ‘सारे जहाँ’ को, जिसने उसे खुद ही नक्कार दिया था, आज भी भारत एक जम्हूरी मुल्क के नाते मान रहा है.

जिन्ना को नेहरु की इसी सेकुलर परस्ती से ईर्षा थी- क्योंकि जिन्ना भी खुद को सेकुलर और पाक को जम्हूरी मुल्क का दिखावा करता था, क्योंकि पाक में गैर मुस्लिमों की आबादी 20% थी जो अब 2% से भी कम रह गई है,
आजादी से महज़ तीन दिन पहले जिन्ना ने लाहोर में उर्दू के एक हिन्दू शायर जगन नाथ आजाद को ढूँढ निकाला , और उस से पाक का राष्ट्र गीत ‘ऐ सरजमीने पाक ’ लिखवाया .
पाक का यह सेकुलर मुखौटा महज़ 18 महीने बाद उतर गया -जिन्ना की मौत के 6 महीने बाद इसका स्थान हफीज जल्लान्धारी के लिखे कौमी तराने ने ले लिया. और आजाद तो चाँद दिनों में ही पाक छोड़ कर भारत आ गए जहाँ वे अंतिम दिनों तक जे & के में डिरेक्टर प्रेस ब्यूरो रहे .
भारत में बंकिम चंदर के बंदे मातरम को नेशनल सोंग और रविंदर नाथ टेगोर के ; जन गन मन को नेशनल अन्ठेम घोषित किया गया. BBC के इक सर्वे में विशव के 10 सबसे लोक प्रिये गीतों में बन्दे मातरम को दूसरा स्थान प्राप्त है. स्वतंत्रता संग्राम में हजारों भारतीये बन्दे मातरम गीत गाते हुए शहीद हो गए. जिन्ना के हिन्दुस्तान में बैठे शैतानो को अब इस गीत में इसलाम विरोधी स्वर सुनाई देने लगे हैं .

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

वेश्याओं पर चुंगी अँगरेज़ भक्त राज्वादाशाही .

पटियाला पैग के लिए ही प्रख्यात नहीं है, यह शहर! इसे ब्रिटिश भक्त भक्त राज्वादाशाही के लिए भी जाना जाता है ।

ब्रिटिश भक्त रियासती रजवाडो की बदौलत ही अँगरेज़ हमारे देश में 90 बरस और टिके रहे ,वरना 1857 में ही भाग खड़े होते । मंगल पाण्डेय के विद्रोह के बाद अँगरेज़ साम्राज्य की नींव पूरी तरह हिल गीत थी . मई 57 में अंग्रेजों के कत्ल और आगरा के सरकारी हज़ने की लूट ने अंग्रेज़ी सरकार के प्रति जनमानस में व्याप्त भरी आक्रोश को क्रांति का रूप दे दिया । लोगों ने लगान देना बंद कर दिया था और सरकार आर्थिक रूप से दिवालियेपन के कगार पर थी ।

पंजाब प्रान्त के ब्रिटिश अधिकारी करंक ब्र्नीज़ ने 23 मई 1857 अर्थात ग़दर से 13 दिन बाद एक फरमान जारी कर सभी अँगरेज़ परस्त रजवाडों , अधिकारिओं ,जमींदारों और व्यापारिओं से अपील की कि वे सरकार को क़र्ज़ के रूप में अधिकाधिक पैसा दें । पंजाब से कुल 1817591 रुपये इकठे हुए । पटियाला के महाराजा नरेंदर सिंह ने सबसे अधिक 5 लाख रुपये अँगरेज़ सरकार को दिए । महाराजा साहिब अँगरेज़ भक्तों के सिरमौर मानाने के चक्कर में 5 लाख लुटा तो बैठे किंतु रियासत के खजाने कि हालत पतली हो गई . महाराज ने अपने दर्बरिओं की एक बैठक बुलाई . सरकारी खजाने को फ़िर से भरने की नै नै जुगतें लडाई गई और पतियाल्विओं पर नए नए टैक्स लगाये गए .

पटियाला पैग लगा कर शराबी को देह व्यापर में संलग्न प्रतियेक सुंदर बाला माल नज़र आती है . एक ऐसे ही दरबारी की सलाह पर शहर के रेड लाइट एरिया - धरमपुरा बाज़ार के लिए बहार से लायी जाने वाली वेश्याओं पर चुंगी लगा गई . अम्बाला से दो वेश्याओं ने शहर में परवेश किया ‘चुंगी ’ दे कर . इस प्रथा को बाद में अम्बाला के एक राजनेता ने ही बंद करवाया .

महाराजा भूपेंदर सिंह तो अन्ग्रेज्प्रस्ती में साड़ी सिमैएँ लाँघ गए . ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने तो उन्हें ‘सों ऑफ़ विक्टोरिया ‘ के खिताब से नवाजा . 1910 में महाराज का नया मोती बाग़ महल बन कर तैयार हुआ तो महल के प्राचीर पर महाराज ने ब्रिटिश फ्लग यूनियन जैक फेहराया और पोल के ऊपर विक्टोरिया क्राऊन बनवाया । आज कल इस महल में राष्ट्रीय खेल कूद संसथान है और यूनियन जैक के स्थान पर नेशनल फ्लग लहरा दिया गया है किंतु त्रिंगे के ऊपर विक्टोरिया क्राऊन यथा वत कायम है . राष्ट्रीय ध्वज के इस अपमान पर अधिकारी चुप हैं और सरकार सो रही है .

भूपेंदर सिंह पटियाला रियासत के निहायत ही अय्याश रजवाडों में गिने जाते हैं अँगरेज़ परस्ती के साथ साथ जिस्मफरोशी में भी उनका कोई सानी नहीं था . अपने रनवास में उन्होंने 365 रानियाँ हर दिन के लिए एक रख छोडी थी । महाराजा की जन विरोधी नीतियों के खिलाफ सेवा सिंह ठीकरीवाला ने एक जन आन्दोलन –प्रजा मंडल तिहरी चलाया । ठीकरीवाला को मिलये जन समर्थन से बौखला कर महाराज ने उन्हें एक लोटा चोरी के इल्जाम में जेल में दाल दिया , जहा 1934 में उनकी मृत्यु हो गई ।

प्रथम सवतंत्रता संग्राम अपने अंजाम को प्राप्त करने में असफल रहा और हमें 90 साल का लंबा इन्त्जार करना पड़ा । गुलामी की जंजीरों को ज़क्दाने मैं अँगरेज़ भक्त रजवाडों के साथ साथ हमारी वेश्या वृति जन्य मानसिकता का भी हाथ रहा

बुधवार, 30 सितंबर 2009

स्विस बैंकों का युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स यानि चाचा नेहरू टैक्स।

हमारे यहाँ पंजाबी में एक कहावत है 'चोरां दे कपडे ते लाठिया दे गज '-इसी कहावत को चरितार्थ करने जा रही है स्विस बैंको की संस्था। स्विस सरकार को एक प्रस्ताव भेजा है संस्था के मुखिया जेम्स नासन ने -स्विस बैंकों में पड़े विदेशी धन की कमाई पर युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स लगाया जाए और सम्बंधित देश को इसकी अदायगी कर दी जाए। स्विस बैंक शायद विशव व्यापी एक नियम भूल गए की चोरी का माल खरीदना भी उतना ही बड़ा अपराध है जितना की चोरी करना।

स्विस बैंकों में आज भारत जैसे गरीब देशों का २२३७ बिल्लियन स्विस फ्रांक्स अर्थात एक करोड़ करोड़ रुपैया... एक सौ करोड़ या एक लाख करोड़ नहीं पूरा एक करोड़ करोड़ रूपया पड़ा है जो स्विस बैंकों की कुल जमा पूंजी का ५६% है और इसमें इंडिया दैट इज भारत का है १.४ त्रिलिओन डालर अर्थात १४ खरब डालर। स्विट्जरलैंड के ये बैंक इस प्रकार गरीब देशों के अमीर चोरों के बैंक हैं ।

बचपन से सुनते आए हैं की भारत सोने की चिडिया थी विदेशी लुटेरों ने इसे खूब लूटा और हमारा धन विदेश ले गए -अब जो अपने लूट कर विदेश में जमा करवा रहे हैं ,उन्हें क्या कहें-'सव्देशी लूटेरे '!

भ्रष्टाचार का यह वट वृक्ष एक दो दिन में इतना विशाल नहीं हुआ। इसका बीजारोपण जाने अनजाने में हमारे प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी के हाथों हुआ था । कृष्ण मेनन पहले भ्रष्ट केंद्रीय मंत्री थे जिसने बतौर रक्षा मंत्री सेना के लिए खरीदी जीपों में घोटाला किया -परिणाम हमारे सामने है -हमारी सेनाये चीन के हाथों बुरी तरह पराजित हुई -हजारों सैनिक शहीद हुए ,मीलों फैली सरहद पर चीन का कब्ज़ा हो गया -नेहरूजी सदमे में चल बसे । नेहरूजी के दूसरे चहेते नेताजी थे -पंजाब के मुख्यामंत्री परताप सिंह कैरों -कैरों जी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के साथ जब लोग नेहरूजी के शिकायत ले कर पहुंचे ,तो उनका जवाब बहुत रोचक था 'अरे भाई देश का पैसा देश में है ,कैरों साहेब कहीं बाहर तो नहीं ले गए।

नेहरूजी सपने बहुत देखते थे ,उनहोंने सपना देखा पंचशील का ,चीन ने तार -तार कर दिया । सपना देखा अक्खंड भारत का ,जिन्ना ने तोड़ दिया। एक सपना था पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश को स्वर्ग बनने का जिसे भ्रष्ट बिचौलिओं ने अपने अंजाम तक पहुचने से पहले ही हाइजैक कर लिया। आखिर राजीव गाँधी को कटु सत्य सवीकारना पड़ा की केंद्रिये योजनाओ का एक रुपये में से केवल १० पैसे ही आम आदमी तक पहुँच पाते हैं। ९० पैसे भ्रष्ट बिचौलिये -नेता, अफसर, उद्योगपति डकार जाते हैं। इनके पैसे पर ही स्विस बैंको का कारोबार फल फूल रहा है। चोर चोर चचेरे भाई - एक दुसरे को बचने में व्यस्त हैं । अब चाचा कत्रोची को ही लो -बोफोर के दलाल को किस प्रकार भाग जाने दिया ,किस से छुपा है। भ्रष्टाचार के प्रति -'सब चलता है 'देश की बागडोर ही उन सफेदपोशों के हाथों में है जिनके काले धन को दूध से धोने की योजना स्विस बैंकों ने बनाई है युनिवेर्सल विद होल्डिंग टैक्स यानि चाचा नेहरू टैक्स।

शनिवार, 26 सितंबर 2009

बाल शहीद 'किरण'

वीर हकीकत राय दशमेश पिता के साहिबजादे और अनेक अनजान बालशहीदों की कुर्बानिओंकी बदौलत ही आज का हिंदू समाज कायम है - ऐसी ही एक अनजान वीर बालिका थी 'किरण' ! जिसने अपनी जान की बाज़ी लगा दी ,पर मज़हबी अत्याचार से हार नहीं मानी ।
सन १७२५ , दिल्ली के सिंहासन पर मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह का राज था । उसका एक मीर मुंशी था रामजीदास सेठ । मौलविओंके दबाव और लालच में आ कर मुंशीजी ने इस्लाम कबूल लिया और बन गए मियां अहमद अली। सेठ मियन की एक पुत्री थी -'किरण'! अपने पिता के इस धर्म परिवर्तन से उसे गैहरा आघात लगा -उसने प्रतिज्ञा की कि किसी भी कीमत पर वह अपने धरम पर अटल रहेगी ।
मौलविओं ने उसे बहुत से प्रलोभन दिए ,भय दिखाया ,पर वह नहीं मानी। किरण को बड़े काजी की अदालत में पेश किया गया। काजी ने फरमान जारी किया की जब उसके पिता ने इस्लाम कबूला था वह १३ साल की नाबालिग़ लड़की थी , इस लिए बाप के धर्म के साथ ही उसका भी धर्म बदल गया । किरण ने काजी का हुकम मानने से इनकार कर दिया। किरण को तब तक जेल भेज दिया गया जब तक किवह इस्लाम कबूल न कर ले ।
एक मासूम पर ऐसे इस्लामिक अत्याचार कि ख़बर सुन कर राजधानी में सनसनी फ़ैल गई। व्यापारिओं ने हड़ताल कर दी और लोग महल क्र सामने धरने पर बैठ गए। शहंशाह ने जनता कि बात सुनी और किरण को जेल से मुक्त कर उसे एक सेठ घनशाम दास कि पन्नाह में भेज दिया।
बड़े काजी ने इसे अपना अपमान समझा और दिल्ली के सभी मौलवियों को इक्कठा कर जुम्मे कि namaz पर बादशाह को घेर लिया। तर्क दिया कि यह एक मजहबी मामला है और इसका फ़ैसला बादशाह कि अदालत नहीं -सिर्फ़ जमा मस्जिद कि अदालत-अंजन मौलाना ही कर सकती है । किरण को फ़िर से बंदी बना कर मौलविओं कि अदालत में पेश किया गया, जहा उसे सभी प्रकार के प्रलोभन दिए गए किंतु किरण ने हिंदू धर्म छोड़ इस्लाम कबूलने से साफ़ इनकार कर दिया। मुल्लाओं ने उसे मौत कि सज़ा सुनाई जिसे किरण ने सहर्ष सवीकार लिया ।
तय तारिख को मौत कि सज़ा कि तामील के लिए जल्लाद हाथ में खंजर लिए जब किरण का सर कलम करने काल कोठरी में पहुँचा तो किरण ने ख़ुद ही दीवार से अपना सर पटक कर प्राण त्याग दिए और वीर गति को प्राप्त हो गई -किरण का साहस देख ज़ल्लाद सन्न रह गया।
किरण कि शहादत कि ख़बर दिल्ली में आग कि तरह फ़ैल गई-लोगों का एक हुज्जूम जेल के बहार इक्कठा हो गया कहते हैं !किरण कि शव यात्रा में जितना जन सैलाब था उतना दिल्ली के इतिहास में किसी ने नहीं देखा था। अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य का यह अन्तिम काल था ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

शशि थरूर ने मजाक मजाक में एक सच क्या कह दिया, बचत का पाखंड करने वाले बड़े तो क्या छुटभैये भी तमतमाए फिरते हैं। अब इन्हें कौन समझाए शशि भाई इंग्लॅण्ड में पैदा हुए और अमेरिका में पढ़े ,वहां इकोनोमी क्लास को कैटल क्लास और पाखंडियों को होली काऊ कहते हैं । अपने खर्चे पर कोई किसी होटल से काम काज निपटाए तो किसी के बाप का क्या जाता है -जनता का मुर्ख बनाने वाले कट्ठोर बचतखोर शोर भी मचाएंगे और जनता के पैसे को चूना भी लगाते जायंगे। अब कांग्रेस के राज कुमार को ही लो , जनाब ट्रेन में लुधिआना आए जेड सुरक्षा थी ही ,कुल जमा दस हजार की बचत हुई किराये में और सुरक्षा बंदोबस्त पर लाखों का खर्चा जो बढ़ गया वो अलग । किसी सर फिरे ने ट्रेन का शीशा तोड़ कर इन नए बचत खोरों को आईना दिखा दिया, अब महज़ जांच पर लाखों का खर्चा और पुलसिया ढोंग अलग । जनता को इन नेताओं की बचत बहुत महँगी पड़नेवाली है।
सादगी का प्रतीक गांधीजी को ही लीजिये भले वक्तों में उद्योगपति बिरला के उन पर पचास रुपये रोज़ खर्च होते थे ,पचीस रुपये तोला सोना था उस वक्त , हुए न आज के 34 हज़ार रुपये। यही कारन है बिरला की गाड़ी एम्बेस्दोर सरकारी बजट का तेल निकाल रही है।
अरे बचात्खोरो ! देश की आधी आबादी आधा पेट भोजन कर पाती है और देश का लूटा हुआ कुबेर का खजाना स्विस बैंकों पड़ा है, इलेक्शन के दिनों में दबी जुबान में ही सही आप लोगो ने भी इसे देश में वापिस लाने की बात कही थी - ये सब पाखंड छोड़ देश के आवाम की खून पसीने की यह कमाई वापिस लाओ -गरीब की दुआ लगेगी!

सोमवार, 14 सितंबर 2009

आस्तीन के सांप-जिन्ना के शैतान

जिन्ना का भूत जसवंत सिंह के बाद अब केन्द्र्य मंत्री जय राम रमेश में परवेश कर गया है। जनाब नें सांप को क्या सहलाया ,जिन्ना को शिव का अवतार ही बता डाला और साथ ही गाँधी-नेहरू को ब्रह्म-विष्णु ।हमारे शास्त्रों में शिव को कल्याण का प्रतीक माना गया है। जिन्ना ने भारत का क्या कल्याण किया सभी जानते हैं । जिन्ना की जिद ने देश को तीन टुकडों में ही नहीं बांटा ,दो कौमों के नाम पर हिंदू मुस्लिम भाईचारे में भी कभी न पाटेजाने वाली दर्रार दाल दी। जिन्ना के पाकिस्तान की कीमत पाँच लाख लोगों की हत्या और पचास लाख लोग अपने घरों को छोड़ कर पलायन करने को मजबूर हुए । काश समय रहते पता चल जाता की जिन्ना चंद महीनों का मेहमान है तो देश का बंटवारा टाला जा सकता था । जिन्ना के इंतकाल के २५ साल बाद मालूम हुआ की वेह टी बी का रोगी था ।
जसवंत सिंह जी अपनी किताब बेचने शीघ्र ही पाकिस्तान जाने वाले हैं । जाहिर है जिन्ना की मजार पर भी जायेंगे । जनाब अपने सेकुलर जिन्ना के पकिशैतानी दोस्तों से एक बात जरूर पूछिएगा -जब जिन्ना का सेकुलर पाक बना था उस वक्त १८% अल्पसंख्यक थे ,आज पात्र २% रह गए हैं -यह कैसा सेकुलर राज्य है । यही नहीं जिन्ना के दो राष्ट्र फार्मूले का हश्र भी हमारे सामने है -पाकिस्तानी सैनिकों ने पूर्वी पाक में २० लाख मुसलमानों का नरसंहार किया और १९७१ में बांग्लादेश बना। इसके लिए जुलाई २००२ में ढाका में मुशर्रफ़ ने खेद प्रकट किया । रहा पाकिस्तान वेह भी एक असफल राज्य बन कर रह गया है । जिस राज्य की नींव ही नफरत और इंसानियत की कत्लोगारत पर टिकी हो उसका अंजाम भी एसा ही निश्चित है । रही हमारे सेकुलर नेताओं की ,आस्तीन में सांप पलना उनकी राजनैतिक मजबूरी है । वोट की राजनीती के चलते उन्हें चिंता लगी रहती है की कहीं जिन्ना के शैतान नाराज़ न हो जाएँ।

मंत्री महोदय जय राम रमेश जी शिव ने मानवता के कल्याण हेतु हलाहल पान किया और उनके जिन्ना ने सिर्फ़ और सिर्फ़ ज़हर उगला और लाखों हिन्दुस्तानी उसकी भेंट चढ़ गए

सोमवार, 7 सितंबर 2009

जसवंत का सेकुलर शैतान


जसवंत के जिन्ना की आज खूब चर्चा है -सेकुलरवादी पत्रकार ,टी वीचैनल ,अखबारों और औट्लूकटाईप रासलानावीस खूब भारत की भोली भाली जनता को समझाने में लगे है की कैसे अभिविताक्ति की स्वतंत्रता का कैसे हिंदूवादी पार्टी ने गला काट दिया है और मोदी ने तो हद ही कर दी - बिना पढ़े जिन्ना के जसवंत पर बैन लगा कर लेखक के मौलिक अधिकारों का हननंकर डाला । पत्रकार बिरादरी का जिन्ना प्रेम देखते ही बनता है - जनाब ये वाही जिन्ना है जिसने देश को दो कौमों -दो मुल्कों में बांटा । जब गांधीजी इश्वर अल्लाह तेरे नाम का संदेश दे रहे थे -जिन्ना की डायरेक्ट एक्शन की एक काल पर जिन्ना के शैतानों ने कलकत्ता शहर में पांच हजार से अधिक निर्दोष हिन्दुओं को एक दिन में काट डाला।


किताब से बैन हटाने पर कोर्ट के फैसले पर खूब तालिया पीटी गई । किताबें तो पहले भी बैन हुई और वेह भी बिना पढ़े -रश्दी साहेब की शैतान की आयतें बैन हुई बिना पढ़े -किसी भी सेकुलरवादी पत्रकार ,टी वी चेन्नल या रासलानावीस का ऐसा मजमा नहीं देखा . एक लेखिका दर दर भटक रही है ,पहले अपनी कॉम ने देश निकाला दिया फ़िर सेकुलर वामपन्थिओं ने दुत्कारा अब भारत की महान सेकुलर सरकार ने गत दिनों उसका रिहायशी परमिट इस शरत पर नवीकृत किया है की चुपचाप सेकुलर भारत से भाग जाए । किसी टी वी चेन्नल ,समाचार पत्र (एक को छोड़ कर)ने नोटिस तक नहीं लिया -कहीं शैतान के बन्दे -जिन्ना के पैरोकार नाराज न हो जाएं । क्या इंडिया दैट इज भारत एक इस्लामिक मूलक है ।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

जीवन का उत्सव

८० सावन देख चुके नेहरा साहेब किंतु सवभाव में अज भी पतझड़ झलकता है -सुबह की सैर पर अक्सर मिल जाते । गुजरे शाही वक्त का पछतावा और सदाबहार कब्ज की शिकायत। बीते दिनों की अफसरशाही अकड़ अज भी उनकी हर बात में झलकती है । अपने अकडू सवभाव के कारन बचों से अलग थलग पड़ गए और जीवन काळ की साध्य बेला तनहा काट रहे हैं। नेहरा साहेब की यह हालत देख कर चीनी विचारक लिंग युतंग के जीवन का उदेश्य पर विचार और गीता के प्रकृति एक मानसिक उपकरण सारगर्भित लगते हैं।
निस्संदेह जीवन का उदेश्य खुशी हासिल करना है -हम इसी खुशी की लालसा में सदिओं से भटक रहे हैं -सभी तरह की खुशी एक तरह से जीव विज्ञानं की खुशी है और पुरी तरह से एक वैज्ञानिक परक्रिया है । सभी तरह की मानवीय खुशी एक तरह से भावनात्मक खुशी होती है -सची खुशी केवल आत्मा की खुशी है। आत्मा का अर्थ खुशी का एहसास दिलाने वाली ग्रंथिओं के दम सही ढंग से कम करने की वजह है -खुशी का अर्थ स्वस्थ पाचन क्रिया -लिंग युतंग की मने तो पाचन क्रिया को दुरुस्त रखना ही खुशी का मूल मंत्र है। और हाँ मानसिक शान्ति के लिए गीता की शरण ली जा सकती है -जो मनुष्य केवल आत्मा में आनंद अनुभव करता है , जो आत्मा से संतिष्ट और तृप्त है ,इस लिए अनासक्त हो कर सदा करने योग्य करम करता है। प्रकृति (सवभाव )वह मानसिक उपकरण है जिसके साथ मनुष्य जन्म लेता है। यह पूर्व जन्म के कर्मों का प्रतिफल है -यह अपना कार्य करके रहेगा
निरंतर अभ्यास से मुमुक्षावन -इछाविहीन होने की इच्छा -सम्पुरण रूप से मुक्त होने की आकांक्षा -अस्तित्व चक्र से बहार हो जाने की इच्छा -वैदेही होना , कठिन तो है किंतु असंभव नहीं । जीवन का परम आनंद इसी मैं है। अर्थात कोशिश करके अपने पाचन तंतर को दुरुस्त रखते हुए जीवन को ब्रहमांड के एक महोत्सव की तरहां जिया जाए।

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

पुरबनी मर गई
पड़ोस की पुरबनीt एक वृद्धा -बचपन से उसे सामने वाले डेढ़ कमरे के मकान में अपने भरे पुरे परिवार के साथ देख रहा था -परिवार में उसके लगभग ६ लड़किया और एक लड़का काका । उसकी लड़किया सभी बियाही गई और काके की भी दो तीन शादियाँ हुई -एक तो उसके भांजे के साथ ही भाग गई और अबके वाली कई बार भागी , फिलहाल एक टिकी हुई है। पुरबानी ने सारा जीवन पास पड़ोस वालों की कृपा पर काट दिया -किसी ने उसके पति को नहीं देखा फिर भी उसने अपनी लड़किओं के हाथ पीले का जुगाड़ अपनों के दम पर किया ।
आज मुहल्ले वाले जब उसे शमशान घाट लेकर जा रहे थे तो अपनी आदत से मजबूर मने नेक सलाह दे डाली की शवदाह कम लकड़ी वाले चबूतरे पर किया जाए -लकड़ी भी कम लगेगी औरye पैसे भी बचेंगे -काके के काम आएंगे । कह कर मैंने मानों -मधुमाख्हियों के छत्ते में पत्थर दे मारा ।
पुरबनी के नाते रस्ते वालों की तो छोडो-मुहल्ले के महानुभाव भी मेरे पीछे हाथ धो कर पड़ गए । हम मर गए क्या ,यतीम समझ रखा है। बड़े जवाई राज ने २ मन लकड़ी की घोषणा क्या की ,एक होड़ सी लग गई २मन लकड़ी की । देखते देखते ३६ मन लकड़ी का जुगाड़ हो गया।
मैं मन ही मन ख़ुद को कोस रहा था । आम मुर्दा ६ मन लकड़ी में जलाया जाता है और यह खास पुरबानी ३६ मन लकड़ी मैं जल कर स्वर्ग्य पर्धान्मनतरी नरसिम्हाराव जी की श्रेणी मैं जा खड़ी हुई । अभी तक सबसे अधिक लकड़ी मैं दाहसंस्कार का रिकार्ड राव साहेब के नाम है। जाते जाते
पुरबनी को भी न मालूम होगा की वेह कितने जीवित प्राणियों की प्राण वायु लील गई -एक प्राणी को साँस लेने के लिए दो पेडो की प्राणवायु की जरुरत है । aअज वनों का घनत्व मात्र२% रह गया है जबकि समृद्ध पर्यावण के लिए ३३%भूमि पर वन होने चाहियें । तभी तो हमारे शास्त्रों में पेडो के महत्व को सर्वोपरि मानते हुए - एक हरे पेड़ को काटना युवा पुत्रे की हत्या के समान पाप माना गया है।जिस प्राणी ने अपने जीवन काल में एक भी पेड़ नहीं लगाया उसे भला जाते जाते पेडो की इतनी लकड़ी फूंकने का हक किसने दिया है। पेडो की पूजा करने वाले इनकी क़द्र करना कब सीखेगे।

रविवार, 9 अगस्त 2009

अश्वत्थामा प्रथम भ्रूण हत्यारा :
भ्रूण हत्यारों के लिए ये ब्लॉग एक सबक भी है और एक सच्चाई भी। बेशक इस कलयुग में कोई इसे माने या न माने। लेकिन किंवदंती है कि हिमालय की कंदराओं में आज एक भ्रूण हत्यारा निरंतर भटक रहा है । इसके माथे के घाव से मवाद रिश्ता है; यह है महाभारत युग का पुरोधा - अश्वत्थामा, जो आज भी भ्रूण हत्या का श्राप भोग रहा है. आज भी कई अश्वत्थामा सरेआम कई नवजातों को जनम लेने से पहले ही मौत कि नींद सुला रहे हैं। यकीन माने तब तो भगवन कृष्ण ने सीधे श्राप दिया था, तब सतयुग था तो इतनी भयानक सजा थी आज कलयुग है, हत्यारे अपने अंजाम ख़ुद सोच सकते हैं। ये वाकया है तब का है जब कुरुक्षेत्र की युध्भूमि की अन्तिम रात्रि-खून से लथपथ दुर्योधन हार की पीड़ा से कराह था तभी अश्वत्थामा ,क्रित्वेमा और क्रिपाचार्य वहां आते हैं । दुर्योधन अपने खून से अश्वत्थामा को तिलक कर सेनापति नियुक्त कर मांग करता है कि उसे पांडवों के शीश ला कर दो । अश्वत्थामा घोर दुविधा में फँस गया। तभी उसने देखा कि एक उल्लू सो रहे पक्षियों का शिकार कर रहा है। अश्वत्थामा ने सोते हुए पांडवों के वध की योजना बनाई और पांडवों के शिविर पर हमला बोल दिया । भ्रम वश द्रोपदी के पाँच पुत्तरों को मार डाला । पांडवों के शिविर मैं हाहाकार मच गया । हाथ में महा शक्ति वज्र लिए अगली प्रात वह फिर से पांडवों के सर्वनाश के लिए पहुंच गया । वहा पर उपस्थित महारिशी वेदव्यास ने अश्वत्थामा को विनाशकारी वज्र शक्ति को तुरंत रोकने के आदेश दिए। तभी अश्वत्थामा की दृष्टि उत्तरा जो अभिमन्यु की पत्नी व् परीक्षित की माँ थी, पर पड़ी और उसने शक्ति उत्तरा की कुक्षी की और फ़ेंक दी और गर्भवती उतरा मूर्छित हो कर गिर पड़ी । अश्वत्थामा के इस घृणित कार्य सभी ने घोर निंदा की । भगवान् कृष्ण ने उसे श्राप दिया और कहा कि इसने वह पाप किया है जो इसे ही नहीं इसकी कीर्ति को भी नष्ट कर चुका है । इस कायर को इतिहास एक महान योधा नहीं ,मात्र सोते हुए लोगों के निर्मम हत्यारे तथा भ्रूण हत्या के अपराधी के रूप में चित्रित करेगा । ऐसा भटके देगा भाग्य इसे भिक्षा नही मृत्यु भी नही देगा।
मेरा इस ब्लॉग को लिखने के पीछे एक ही उद्देश्य है कि किसी अजन्मे को मरने वाले को भगवन कृष्ण ने तक नही चोर, जो ख़ुद सबको माफ़ करने में यकीं करते हैं, तो अब उन लोगो का इन्साफ भी उसी भगवन के हाथ में है जो आधुनिक जीवन के अश्वत्थामा हैं।