अष्टावक्र
बहिर्मुखी को ज्ञान या बोध का मार्ग समझ में नहीं आ सकता . विद्वान , प्रज्ञावान , प्रखर बुद्धि एवं चेतना वाला ही इसे ग्रहण कर सकता है . इसी कारण अष्टावक्र का उपदेश जनसामान्य में अधिक प्रचलित नहीं हो पाया . अष्टावक्र की पूरी विधि सांख्य योग की है जिसमें करना कुछ भी नहीं है .
अक्रिया ही विधि है , बोध या स्मरण मात्र पर्याप्त है . यदि यह जान लिया कि मैं शरीर , मन आदि नहीं हूँ ,बल्कि शुद्ध चैतन्य आत्मा हूँ तो सारी भ्रांतियां मिट जाती हैं व् यही मोक्ष है .
मोक्ष कोई स्थान नहीं है बल्कि चित्त की एक अवस्था है जिसमें स्थित हुआ जीव परमानन्द का अनुभव करता है