शनिवार, 30 अप्रैल 2011

बगल की चप्पल

बगल की चप्पल 

एल. आर. गाँधी 


 कलमाड़ी जी   पर कपिल चौहान ने चप्पल क्या फेंकी - सभी  चप्पल पहिन  सड़क  नापने  वालों  में  मानों  एक  नयी  क्रांति  का  संचार  हो  गया . चोखी  लामा  जो  कल  तक  चप्लियाँ  पहिन खेल  ग्राम  में कलमाड़ी  जी की  ईंटें  ढ़ोता - मिट्टी बिछाता  था  और रात  को  शीला  जी के  टेंट  में वही  चप्लियाँ सिरहाने  दबा  कर  सोता  - कहीं  कोई  चोर  उच्चक्का चुरा न ले   जाये  .- आज  अपनी  ही  चप्लियों  को निहार - निहार  कर बलिहारी  हुआ  जा  रहा  है . 
चोखी को   आज भी याद है कलमाड़ी जी के किये वो वादे जो उन्हों ने उस जैसे फटेहाल -बेघर-भूखे नंगे मजदूरों से किये थे. खेल का काम पिछड़ गया था और कलमाड़ी जी अपने 'जोर लगा कर हई.. शा... अभियान पर थे. खूब लगन से काम करते देख चोखी लामा से मुखातिब  हो कर बोले.. 'चोखी अब हमारी लाज बस तुम लोगों के ही हाथ में है.' खेल पूरा होते ही यह खेल गाँव तुम्हारा  !!! चोखी ने भी सभी मजदूरों की और से कलमाड़ी जी को यकीन दिलवाया ' साहेब आप की नाक के लिए हम अपनी गर्दन कटवा देंगे'.
काम पूरा हुआ और सभी 'चोखी लामाज़' शीला जी को खटकने लगे. विदेशी महमान जब इन फटेहाल मजदूरों को देखेंगे ! हमारी तो बस नाक कट जाएगी ! सभी को तुरंत खेल गाँव से दफा होने को कहा गया - कुछ को तो शीला जी की दिल्ली पुलिस म्युन्स्पल गाड़ियों   में भर भर कर रेल का टिकट कटा आई. बाकी को बड़े बड़े साईन बोर्डों की ओट में छुपा दिया - यह कलमाड़ी जी का आईडिया था. 
चोखी लामा खेल गाँव के फाईनल टच कार्य में मशगूल था जब उसका पूरा परिवार खेल ग्राम से खदेड़ दिया गया. 
यह सिला दिया कलमाड़ी और शीला जी ने उनकी मेहनत का.चोखी को गुमान था की उसके बाबा ने एशियन गेम्ज़ में इंदिरा जी की नाक बचाई थी और वह सोनिया जी के काम आ रहा है. ५० मजदूर तो खेल के काम में अपनी जान पर खेल गए - मगर मुआवजा मिला केवल एक को - बाकी में से कोई भी शीला की सर्कार के पास रजिस्टर्ड जो न था. मजदूरों की भलाई के नाम पर जो ५०० करोड़ ठेकेदारों से इक्कठा किया गया - कहाँ गया .. मनमोहन जाने !
चप्पल भी क्या गजब की शै है. जब पैर में होती है तो सफ़र आसां सा हो जाता है . जब बगल में होती है तो इन्सान   
रियासती दौर का 'पटियालवी' लगता है. और जब सर पर पड़े तो खेल में पिटा कलमाड़ी ... बात पुराणी है रियासती दौर था .. पटियाला के महाराजा धरम पुरे की एक तवायफ पर फ़िदा थे .. तवायफ ने बाज़ार की दूसरी तवायफों को जलाने की ठान ली.  महाराज से बोली की उसके अब्बा जान सख्त बीमार हैं. .. धरम पूरा बाज़ार से गुजरने वाले राहगीरों के जूतों की धमक से अब्बा के आराम में खलल पड़ता है.  फिर क्या था - महाराज  ने हुकम  जारी कर दिया... सभी राहगीर धरमपुरा बाज़ार से गुजरें तो अपनी चप्लियाँ हाथ में उठा कर बगल में दबा लें. 
इन्हीं बगल में दबी चापलियों ने पटियालवीयों की ही नहीं बल्कि हिन्दुस्थानियों के भी मन में 'दासतां' की बेड़ियों को तोड़ कर 'आज़ादी' की चिंगारी भर दी. 
हजारो आज़ादी के परवाने देश को इन देसी रजवाड़ों और विदेशी शासकों से आज़ाद करवाने के लिए हस्ते हस्ते सूली पर चढ़ गए. देश आज़ाद हो गया और रजवाड़ों का स्थान सफेदपोश 'सेकुलर शैतान  राजाओं ने ले लिया और
 लगे देश को दोनों  हाथों  से लूटने. पहले हम मानसिक गुलामी झेलते थे और आज आर्थिक गुलामी से आक्रान्त हैं. बगल की चप्पल फिर से हाथ में आई है और चोरों के एक 'सरदार' पर उछली है. पुरानी चप्लियों को भी सहेजना होगा - ये चप्लियाँ उन बेजुबान पशुओं की खाल से बनी हैं जिनका चारा भी ये 'चोर उच्चक्के ' खाए बैठे हैं  और ये ' राब्ड़ियाँ 'भी उन्हीं पशुओं के दूध की बनी हैं- कोई दलाल है तो कोई खबरी और कोई ५६ सेकण्ड में एक हस्ताक्षर करने वाली मुख-मंत्री. सभी पुराणी चप्लियाँ इन पर उछालनी होंगी क्योंकि ........
फर्क है बस किरदारों में 
बाकी  खेल  पुराना   है :    
  

रविवार, 17 अप्रैल 2011

mamta -budhdev- ki ladaai


 ममता -बुद्धदेव की लड़ाई 
डोल्लीमौमिता खातून की खातिर. 
       एल.आर.गाँधी 
नवीं क्लास की मौतिमा खातून ने बंगाल के गृह  मंत्री जी को ख़त लिख कर आगाह किया कि उसके अब्बा उसका निकाह करने जा रहे हैं क्योंकि वे उसके स्कूल तक के सफ़र का खर्चा नहीं उठा सकते . गृह मंत्री ने मुख्य मंत्री को लिखा और बुद्धदेव जी  ने निजी तौर पर खातून से मिल कर वायदा किया कि उसके घर से स्कूल तक सड़क बना दी जाएगी. यह तो रही एक वामपंथी मुख्यमंत्री की एक 'छात्रा' के प्रति संवेदना . अब देखिये इन्ही मुख्यमंत्री जी की इन छात्रों को पढ़ाने वाली अधियाप्काओं के प्रति असंवेदनशीलता. डोल्ली प्रमाणिक शांतिपुर के हाई स्कूल में पढाती हैं - उन्हें हर रोज़ स्कूल तक पांच घंटे का सफ़र करना पड़ता है. स्कूल तक जाने  के लिए तीन ट्रेनें और दो बसें बदलनी पड़ती हैं, फिर भी वे कहती हैं कि अपने स्थानान्तरण के लिए वे वामपंथी यूनियन नहीं जुआयिन करेंगी. ऐसी अनगिनत डोल्लिज़ और खातून्ज़ की अपनी अपनी कहानी है. 
अपने साढ़े  तीन दशक के राज में वाम सरकार ने ५२००० स्कूल खड़े किये जब की एस.एस राय ने मात्र  अपने मुख्य मंत्री काल में ही ४०००० स्कूल निर्मित किये  थे.   यूनेस्को कि एक स्टडी में यह तथ्य सामने आया कि बंगाल के ८० % स्कूल छात्र एक सामान्य लीफलेट नहीं पढ़ पाते. एच  आर डी मंत्रालय ने अपने २०१० के एजुकेशन इंडेक्स में बंगाल को २८ राज्यों और ७ केंद्र शासित प्रदेशों में ३२  वां स्थान दिया है. 
 १९७७ में जब वाम दल के कामरेड बंगाल की सत्ता पर  काबिज हुए तो चाहू और ट्रेड युनिअनों  का आतंक फ़ैल गया.कोल्यानी में १५० उद्योगिक संयंत्र चल रहे थे और एक लाख बंगालियों को रोज़गार मिला हुआ था . यूनियन आतंक के चलते अधिकाँश बंद हो गए और मात्र ३० संतंत्र बचे हैं.       
ज्योति  बासु का बंगाल आज अगले पांच वर्ष के लिए फिर से सरकार चुनने जा रहा है. . ज्योति बाबू ने अपने अढाई दशक के एक छत्र राज में बंगाल को वामपंथी विचार धारा का रोल माडल बनाने में कोई कसार नहीं छोड़ी. सभी निजी संस्थानों को वाम्दंड से दण्डित किया गया और बंगाल की सीमाओं के बाहर फेंक दिया और सरकारी संस्थानों को स्थापित कर लाल झंडे फैहरा दिए गए . वाम पंथी कर्मचारी युनिअनों  का सभी संस्थानों पर एक छत्र राज्य था. दायित्व  या जवाबदेही राज्य से तिरोहित कर दी गई- चहुँ और कामगार अधिकार का बोल बाला हो गया. परिणाम सब के सामने थे- जब ज्योति बाबू की जान पर बन आई तो उन्होंने भी किसी सरकारी हस्पताल की जगहें एक प्राइवेट क्लिनिक को तरजीह दी और वहीँ पर प्राण त्यागे. कामरेड हर्क्रिशन सिंह सुरजीत ने भी अपनी जान बचाने के लिए किसी सरकारी हस्पताल के स्थान पर एक प्राइवेट क्लिनिक को चुना.
वाम पंथी इमानदारी का ढिंढोरा यूँ तो खूब पीटते हैं. मगर बंगाल के चुनाव में उतरे विधयाको के निजी पूँजी ब्यौरे की जांच पड़ताल  की जाए तो ढ़ोल की पोल सामने आ ही  जाती है.विधयाकों की जमा पूँजी में भारी  वृद्धि तो यही दर्शाती है की ज्यो ज्यो बंगाली कंगाल होते गए त्यों त्यों विधायक मालामाल होते गए. २००६ और २०११ के अंतराल में विधायकों की पूँजी में जहाँ ८६०३०% तक की वृद्धि देखने में आई वहीँ यह भी सनसनी खेज़ सच्चाई पर से पर्दा उठा कि एक करोड़ बंगाली भूख से बेहाल है और सभी सरकारी इदारो का बुरा हाल है .

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

yojna baddh loot khasoot

 
योजना बद्ध - लूट खसूट

       एल.आर गाँधी.

यूं  तो  हमारे सिंह साहेब खुद को एक दक्ष अर्थशास्त्री होने का दंभ पाले बैठे हैं, मगर सरकारी योजनाओं के नाम पर हो रही लूट  खसूट और लापरवाही के चलते देश को भारी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ रहा है. सरकारी योजनाओं के कर्र्यन्वन में हो  रही लेट लतीफी के चलते ही सरकारी खजाने पर १,२४,००० करोड़ रूपए अतिरिक्त बोझ पड़ेगा और इस लेटलतीफी के लिए ज़िम्मेदार केन्द्रीय और राज्य सरकारों के नेता-अफसरों पर कोई जिम्मेवारी निर्धारित नहीं होने वाली.
यह इतनी बड़ी रकम है कि देश के ३० करोड़ भूखों को दो साल के लिए खाना दिया जा सकता है. यह  रकम साल २०११-१२ के बजट प्लान की राशी का एक तिहाई है.यह रपट सरकार के अपने ही कार्य निष्पादन मंत्रालय की है जिसके मंत्री एम्.एस.गिल जिन्हें हाल ही में खेल मंत्रालय से यहाँ भेजा गया है, ने मुख्य मंत्रिओं को लिखे अपने एक पत्र में, उनकी लेट लतीफी के कारन हो रहे नुक्सान से आगाह करवाया है. 
महान राजनयिक व् अर्थशास्त्री विष्णु गुप्त-चाणक्य ने अपने 'अर्थशास्त्र' निति ग्रन्थ में राज्य को सलाह दी है कि आदर्श राज्य संस्था वह  है जिसकी योजनाएं प्रजा को उसके भूमि ,धन-धान्यादी पाते रहने से वंचित करने वाली न हों. उसे लम्बी चौड़ी योजनाओं के नाम पर कर भार से आक्रांत न कर डालें . राष्ट्रोद्धारक योजनाएं राजकीय व्ययों में से बचत करके ही करनी चाहियें . राजा का ग्राह्य भाग दे कर बचे प्रजा के टुकड़ों के भरोसे पर लम्बी चौड़ी योजना छेड़ बैठना प्रजा का उत्पीडन है.

चाणक्य का निवास स्थान शहर के बाहर एक पर्णकुटी थी , जिसे देख कर चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने खा था- इतने विशाल देश का प्रधानमंत्री ऐसी कुटिया में रहता है. तब उत्तर था चाणक्य का '' जहाँ का प्रधान मंत्री साधारण कुटिया में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास करते हैं और जिस देश का प्रधान मंत्री राज प्रासादों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोंपड़ों में रहती है. 

हमारे अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री इन लम्बी चौड़ी योजनाओं के नाम पर हो रही लूट खसूट के दायत्व  से  खुद  को  भला  कैसे  बचा  सकते  हैं- लूट खसूट के विरुद्ध अन्ना हजारे के उद्दघोश पर आज सारा राष्ट्र एक जुट हो कर एक ही प्रशन पूछ रहा है ' चोरों का सरदार सिंह फिर भी ईमान दार ?


मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

पाक के पाक और नापाक में जेहाद !!!

पाक के पाक और नापाक में जेहाद !!!
     एल. आर. गाँधी
काफिरों से पाक को पाक साफ़ करने के बाद अब अल्लाह के बन्दे बरेल्विओं से पाक को पाक साफ़ करने में मशगूल हैं - पाक में बरेलवी-मुस्लिमों की आबादी ६०% है और ये अल्लाह के बन्दे अल्लाह को सूफी संतो की दरगाहों में तलाशते हैं जो की सुन्नी और वहाबी तालिबान को हरगिज़ गवारा नहीं- ये उन्हें 'काफ़िर' मानते हैं. इनकी इबतात गाहों को हिन्दू काफिरों के पूजास्थलों की भांति ही तहस नहस करना 'सबाब का काम' मानते हैं.
गत इतवार को पाक के पंजाब प्रान्त के डेरा गाज़िखान की दरगाह में तालिबान ने ३ धमाके किये जिन में ४१ अल्लाह के बन्दे मारे गए और ६० को ज़ख़्मी हालत में शफाखानों में दाखिल करवाया गया जिन में २० की हालत गंभीर है. पिछले साल जुलाई में लाहोर की मशहूर सूफी दरगाह दाता दरबार में दो आत्मघाती  बम हमलावरों ने हमला कर ५०  से अधिक लोगों को जहनुम का रास्ता दिखाया था. तहरीक ए तालिबान -हज़रत दाता गंज बक्श सूफी संत की दरगाह को गुजरात के सोम नाथ मंदिर के समान मानते हैं ,जिसे महमूद गजनवी ने मिस्मार किया था. १००० साल पुरानी इस दरगाह में गरीब मुसलमानों को रोटी-कपडा और रहने के लिए छत मुहैया की जाती है. ऐसे ही जब बरेलवी मुसलमान कराची के निश्तार पार्क में हज़रत मुहम्मद का जन्म दिन मना रहे थे तो आत्मघाती बम हमलावर ने ७० अल्लाह के बन्दों को मार गिराया. साल २००९ में तालिबान ने ऐसी ही १७वि  सदी की सूफी गायक संत रहमान बाबा की दरगाह को नेस्तो नाबूद कर दिया . देवबन्दिस का मानना है कि संगीत और नृत्य इस्लाम में हराम है. बहादर बाबा की दरगाह को तो तालिबान ने राकेटों से ही उड़ा दिया . पेशावर के निकट ४०० साल पुरानी सूफी संत अबू सईद बाबा की दरगाह को भी निशाना बनाया गया.
 इस्लामिक विद्वान जावेद अहमद घमिदी  का मानना है कि अपने ही मज़हब के दूसरे लोगों को काफ़िर करार देना मुल्लाओं का काम है. देवबंद और वहाबिओं ने जिया उल हक़ पर दवाब बना कर अहमदी समुदाए को गैर मुस्लिम घोषित करवाया था. दिसंबर २००९ में कराची के मुहर्रम जुलूस पर आत्मघाती  हमला कर ३३ अल्लाह के बन्दों को मार गिराया.
जिन्ना के पाक में २५% अल्पसंख्यक थे ,जो आज घट कर मात्र ५% रह गए हैं . इनमें क्रिश्चन, इस्मईली ,हिन्दू,सिख , पारसी और अहमदी हैं . बाकी कुरआन और मुहम्मद को मानने वाले मुसलमानों में सुनी- शिया -बरेलवी-देवबंद और वहाबी हैं. देवबंद और वहाबी २० % हैं और सत्ता पर इन समुदाय का ही कब्ज़ा है और इस समुदाय के लोग ही राजनीती और सरकारी ओहदों पर काबिज़ हैं . ये लोग बरेलवी और अन्य मुसलमानों को 'काफ़िर' मानते हैं. शिया समुदाय के ,जिनकी संख्या १५ % है, २००० से अब तक शिया सुन्नी संघर्ष में ५००० मुस्लमान मारे गए हैं.
इस प्रकार  देवबंदी और वहाबियों की नज़र में पाक के ८०% मुसलमान 'काफ़िर' हैं और कुरआन में 'काफ़िर ' की गर्दन पर तलवार से वार करना मोमीनाना काम है. और यह काम बदस्तूर जारी है.... अल्लाह महान है.....