शनिवार, 28 सितंबर 2013

गांधी की मार… बेबस सरकार

गांधी की मार…  बेबस सरकार 
       एल आर गांधी

६५ वर्ष उपरांत देश की केंद्रीय सत्ता को फिर से  किसी ने असैन्विधानिक चुनौती दी …यह चुनौती दी है कांग्रेस के एक मात्र  राजकुमार राहुल गांधी ने . सजायाफ्ता सांसदो और  विधायको को बचाने वाले अध्यादेश को सिंघ साहेब की काबिना ने पास कर महामहीम को भेज दीया … … राजकुमार के दरबारिओ ने बीजेपी और बंगाली बाबू के  साथ साथ अवाम के आक्रोश को भाम्पा … और मौके की नजाकत को देखते हुए  राजकुमार को अपनी ही सरकार के खिलाफ खडा कर दिया …
राजकुमार ने भी  न आव देखा  न ताव   फ़ौरन प्रेस क्लब में अवतरीत हुए और अध्यादेश को बकवास बताते उसे फाड कर  फ़ेकने को कहा …. सरकार के मंत्री और पार्टी के संत्री  सभी सनं रह गए  … सिंघ साहेब विदेश में मुंह छुपाते फिर रहे … विरोधी भाई कार्तोल घोले फिर रहे हे … आणे दो …। ….
मगर राजकुमार के दरबरियो को  शायद मालूम नही कि जो हालत  आज इन लोगों ने आज के प्रधान मंत्री और इनकी काबिना की  बना दी   … यही हालत ६५ वर्ष पूर्व राहुल गांधी के पूर्वज प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की हुई थी …विभाजन के बाद पाकिस्तान की ५५ करोड की देनदारी केंद्रीय काबिना ने एक अध्यादेश जारी  कर रोक दी , क्योंकी पाकिस्तान ने हमला कर एक तिहाई काश्मीर पर कब्जा कर लिया था … गांधीजी को काबिना का यह फैसला न गवार गुजरा …  आमरण अनशन की धमकी दी और   उसी शाम  नेहरू  ने काबिना की   बैठक दोबारा बुलायी और पाकिस्तान को ५५ करोड की देनदारी पर लगी रोक निरस्त कर दी ….
दोनो अध्यादेशो में जमीन आसमान का अंतर ही … सिंग साहेब का अध्यादेश देश को अपराधीयो की जागीर बना देगा  जबकी ६५ वर्ष पूर्व नेहरू की देश भक्त काबिना का अध्यादेश देश हित मे पाकिस्तान को उसकी औकात बता देता … मगर गांधी के पाक व मुस्लिम प्रेम के आगे सभी बेबस थे … आज भी' गांधी ' परिवार के आगे पार्टी और सरकार बेबस ….

रविवार, 1 सितंबर 2013

क़ानून के हाथ कितने लम्बे कितने बेबस





                                         क़ानून के हाथ कितने लम्बे कितने बेबस 

                                                       एल आर गाँधी

आखिर आसा राम उर्फ़ बापू को  नाबालिग लड़की के यौन शोषण के  दोष में पुलिस ने सलाखों के पीछे पहुंचा ही दिया  …. सत्ता में बैठे सेकुलर शैतान बड़ी शान से इतरा और फरमा रहे हैं  …. देश के कानून के आगे सब बरोबर हैं  … चाहे कोई कितना भी बड़ा धर्माचार्य क्यों न हो  ….
शायद  दिल्ली के सेकुलर नवाबों की राजमाता और उनके पप्पू राजकुमार अपनी ही नाक के नीचे बैठे उस शाही इमाम को भूल गए जो शान से जमा मस्जिद से ऐलान ए आम ओ ख़ास करता है कि वह इस देश की किसी भी अदालत में कभी पेश नहीं होगा  …
इमाम साहेब पर भी नाबालिग बच्चों को मदरसों  से बंधक बना कर बंधुआ मजदूरों के रूप में 'सप्लाई ' करने के इलावा दर्ज़नों आपराधिक मामले देश की अदालतों में धूल फांक रहे हैं  . इमाम साहेब को अदालत ने अनगिनत बार 'भगोड़ा  ' घोषित भी किया , मगर किसी भी कानून के कितने ही लम्बे हाथ  उनकी गर्दन तक नहीं पहुँच पाए  …हर बार पुलिस अधिकारी अदालत में अपनी एक ही बेबसी का बखान करते दिखाई देते हैं की इमाम साहेब को पकड़ा तो दिल्ली में 'दंगे' हो जाएंगे  … आखिर  जनवरी २००४ में तो कोर्ट को यह सख्त टिपण्णी तक करनी पड़ी ' रिकार्ड को देख कर यह कहा जा सकता है कि कमिश्नर रैंक तक का अधिकारी भी इमाम बुखारी के खिलाफ कोर्ट के  वारंट तामील नहीं करवा सकता  …।
वक्फ बोर्ड सभी मुस्लिम धर्म स्थलों की एक मात्र प्रबंधक संस्था है  … जामा मस्जिद भी वक्फ बोर्ड की प्रापर्टी है  … मगर इमाम बुखारी जो कि वक्फ बोर्ड के पेड़ कारिन्दा थे , अब मालिक बने बैठे हैं  । १९७६ में तो अब्दुल्ला बुखारी ने   वक्फ बोर्ड से अपनी पगार १३०/- से बढ़ा कर ८४०/- करने की दरख्वास्त दी थी  । मल्कियत के इस झगडे का एक फायदा भी है।  गत ३५ साल से जामा मस्जिद का बिजली का बिल नहीं भरा गया  … बढ़ते बढ़ते जो अब सवा चार करोड़ रूपए को पार कर गया  . महज़ १० रूपए के बकाए पर गरीबों के कनेक्शन काटने वाली सेकुलर सरकार को यहाँ लगता है 'सांप सूंघ ' गया  ।