सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

बापू के मौसेरे ........

बापू का वह रूप देख तो मैं स्तब्ध रह गया था. मेरे मन में बापू के प्रति श्रधा भाव और भी प्रबल हो गया . मैं इतरा रहा था , अपने भाग्य पर कि बापू ने भी मेरी माँ का दूध पिया है. इस प्रकार मैं भी उनका मौसेरा ही हुआ ना.
बापू के साबरमती आश्रम में हम सभी एक परिवार के समान थे. एक गाये माता और उनका बछड़ा - भीरु ! मैं और मेरी माता. बापू प्यार से गाये को माता और मेरी माँ को मौसी बुलाते थे. भीरु भैया बचपन से कुछ ढीले से रहते थे. पैदा होते पीलिया जो हो गया था उन्हें .आश्रम ढोर डाक्टर ने बहुत उपचार किया किन्तु भीरु भाई बीतते ही चले गाये. एक दिन बापू ने भीरु को असह्य दर्द से छटपटाते देखा तो 'करुणा' के आगे अहिंसा पर्मोधरम हार गया.फ़ौरन डाक्टर को
डाटा! या तो इसका दर्द हर लो या फिर इसे सहज मृत्यु दो. मुझ से इसका दर्द नहीं देखा जाता ! डाक्टर ने एक 'टीका' लगा कर भीरु को सहज मृत्यु कि गोद में सुला दिया.
बापू के आश्रम में विद्वानों और अदीबों का मजमा लगा रहता . हिन्दू समाज में व्याप्त धार्मिक और सामाजिक कुरीतिओं पर बापू अपने बेबाक विचार रखते थे. सती प्रथा, बाल विवाह ,विधवा विवाह, बहुविवाह, वेश्या - वृति,दासी प्रथा , नारी उत्पीडन और छूआ - छूत जैसी सामाजिक और धार्मिक कुरीतिओं को जड़ से उखाड़ फैंकने का संकल्प कर रखा था उन्होंने. जो देव पुरुष जानवरों में भेद भाव नहीं रखता , भला इंसानों में भेद भाव कैसे सहन करता । बापू कहा करते मैंने गीता के साथ साथ कुरआन को भी पढ़ा है और भीतर तक समझा है। फिर भी अदीबों के समक्ष तलाक-हलाला, हलाल - हराम पर 'हे राम ' का सा मौनव्रत धारण किये रहते? मेरे लिए भी यह चुप्पी ता- उम्र एक पहेली कि माफिक ही रही । आखिर मेरी माँ का दूध पी कर भी बापू यह चुप्पी क्यों साध लेते हैं। बेशक कोई न समझे हमारी ज़ुबां को पर हम ऐसे चुप तो नहीं बैठते !
फिर भी कितने महान थे बापू ! जानवर और इंसान सभी को ईश्वर अल्लाह कि संतान जो मानते । तभी तो मांसाहार को हराम घोषित कर रक्खा था और गोहत्त्य के विरुद्ध तो राष्ट्रव्यापी आन्दोलन भी छेड़ दिया। इसे कहते हैं अहिंसा के पुजारी। मुझे तो बस पूरा यकीन हो चला है कि बापू के भारत में कोई किसी को नहीं सताएगा ..एक बार बस ये मांस-ख़ोर फिरंगी रुखसत हो जाएँ । वह दिन भी आ गया और फिरंगी अपना बोरिया बिस्तर बाँध भाग खड़ा हुआ । मैं चशमदीद था बापू के उस कमाल का । मैं भी गुनगुना रहा था !

'दे दी हमें आजादी ,बिना खडग बिना ढाल ॥
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल ॥
सब लोग बाग़ बापू के इस कमाल का जश्न मनाने कि तैयारी में ही थे कि जिन्ना ने बंटवारे का बिगुल फूंक दिया। बापू ने जिन्ना को लाख समझाया भई 'मेरा अपना बेटा मुसलमान हो गया तो क्या उसकी वतन परस्ती पाक हो जाएगी' । यहाँ तक कह डाला सारा कुछ तुम्ही सम्हालो !पर जिन्ना तो जिन्ना थे नहीं माने!बापू ने आखरी पांसा फेंका ..खुदा का वास्ता दिया और बकरीद का तोहफा भी ॥ मेरी रस्सी जिन्ना के हाथ में थमा दी... और फिर से अपनी भजन मंडली में जा बैठे और गुनगुनाने लगे ।
'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम '
सबको सन्मति दे भगवान्'।
मैं कातर दृष्टि से बापू को निहार रहा था ॥ अरे इस काफिर ने तो 'हराम' गोष्ट नहीं छोड़ा ,मुझे कहाँ बख्शेगा ....सौतेला हूँ ना ..मौसी का बेटा जो ठहरा !क्या मेरा सहज मृत्यु पर कोई अधिकार नहीं ? बापू तूने मेरी माँ का भी दूध पिया है... मुझे सहज मृत्यु दे दो ..अरे मारना ही है ..तो झटक दो ..तड़पाते क्यों हो ?