गुरुवार, 15 सितंबर 2011

न क्षुधा सम : शत्रू .... भूख के समान कोई शत्रू नहीं !

न क्षुधा सम : शत्रू 
भूख के समान  कोई शत्रू नहीं !
    एल. आर. गांधी 

यूँ तो हमारे सिंह साहेब भी अपने आपको महान अर्थ शास्त्री होने का भ्रम पाले बैठे हैं . मगर देश की गरीब जनता की गरीबी रेखा दिनों दिन जिस प्रकार विकराल रूप धारण किये जा रही है और देश की आधी से अधिक आबादी को अपने पेट की आग शांत करने के लिए दो जून का निवाला तक मयस्सर नहीं हो पाता ! ऐसे में सर्वोच्च नयायालय द्वारा केंद्र व् राज्य सरकारों को सख्त निर्देश जारी करते हुए यह निश्चित करने हेतु आवश्यक कदम उठाने को कहा  है कि देश में भूख और कुपोषण से कोई न मरे. !पीपल यूनियन फार सिविल लिबर्टीज़ द्वारा उच्च न्यायालय  में सार्वजानिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी. न्यायालय ने पी.डी.एस को कम्प्यूटरीकृत कर सरकारी अनाज को आम जनता तक पहुँचाने और बीच में से भ्रष्ट तंत्र को समाप्त करने लिए समय बध उपाए सुझाए हैं.
भारत के महान अर्थशास्त्री आचार्य विष्णुगुप्त 'चाणक्य ' ने ठीक ही कहा है ...न क्षुधा सम : शत्रु .. अर्थात भूख के समान कोई शत्रु नहीं है. भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. पिछले दिनों एक विचित्र समाचार देखने को मिला . एक व्यक्ति अपने कुत्तों को अपने मकान में बंद कर के चला गया. कुछ दिनों के बाद जब वह लौटा और अपने मकान का दरवाज़ा खोला ..तो उसके अपने ही वफादार कुत्ते उस पर टूट पड़े .. भूख से व्याकुल कुत्ते अपने मालिक को ही चीर फाड़ कर खा गए. कुत्ते को  वफ़ा और संतोष का प्रतीक माना जाता है ... मगर भूख के आगे सब बेमानी हो जाता है.   
कुछ ऐसा ही आभास सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हुआ होगा ... जब उन्होंने देश की भ्रष्ट और निरंकुश सरकार को चेतावनी दे डाली ' भूख और कुपोषण से कोई व्यक्ति न मारा जाए !  बुद्ध  और गाँधी के देश भारत में सदियों से अहिंसा और संतोष का पाठ पढ़ाया जाता रहा  है .. तभी तो देश की भूखी और बीमार जनता आज़ादी के छह दशक बाद भी अपने भ्रष्ट और निरंकुश  राजनेताओं को सह रही है  और अभी तक भूख से बेहाल  श्वान व्रिती उनके विवेक की मर्यादा को नहीं तोड पाई. ..मगर कब तक ?