बुधवार, 28 सितंबर 2011

स्वास्थ्य मंत्री की बीमार सोच.


स्वास्थ्य मंत्री की बीमार सोच. 
    एल. आर. गाँधी 

केन्द्रीय  स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने केरल के २ बच्चों के सिद्धांत की खिल्ली उडाई है. 
केरल सरकार  २ से अधिक बच्चे पैदा करने वाले दम्प्पतिओन पर १००००/- जुर्माना या ३ माह की कैद के प्रावधान पर विचार कर रही थी. केरल राज्य में महिलाओं और बच्चों के अधिकार और कल्याण हेतु , सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी.के.कृष्ण की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया गया था. आयोग की सिफारिश पर राज्य सरकार केरला वूमंज़ कोड बिल २०११ लागु करने पर विचार ही कर रही थी कि राज्य के मुस्लिम और क्रिश्चन विरोध करने लगे. फ़ौरन सेकुलर सरकार के अल्पसंख्यक मुकौटे नबी के गुलाम आज़ाद साहेब ताल ठोक कर विरोध में आ खड़े हुए . अपने मुस्लिम क्रिश्चन वोट बैंक की नाराज़गी न बाबा न. 
आजादी के ६५ वर्ष बाद देश के किसी राज्य ने पहली बार ' जनसैलाब विस्फोट' पर कुछ अंकुश लगाने का संजीदा प्रयास किया. भारत प्रति वर्ष एक आस्ट्रेलिया पैदा कर देता है. ८३६ मिलियन लोगों  के पास  प्रतिदिन भोजन के लिए मात्र २०/- से भी कम की आमदनी है, फिर भी आस्ट्रेलिया जितना अनाज पैदा करता है उतना तो हम प्रति वर्ष बर्बाद कर देते हैं. बहुत  ज़ल्द हम जनसँख्या में चीन से आगे निकल जाएंगे क्योंकि चीन ने सख्त परिवार नियोजन नियमों से अपनी जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिया है. चीन में १९७९ से एक बच्चा सिधांत का  सख्ती से पालन किया जा रहा है. एक से अधिक बच्चे पैदा करने वाले दम्पति पर भारी जुरमाना किया जाता है. दूसरे बच्चे को तो सभी सरकारी सुविधाओं से वंचित ही कर दिया जाता है. गत २० वर्ष में चीन ने ३०० मिलियन बच्चे कम पैदा किये . 
क्षेत्रफल की दृष्टि से देखा जाए तो भारत की आबादी चीन से अढाई गुना अधिक है ...चीन के ६.४ % क्षेत्र  में १९.५२ % आबादी रहती है जबकि भारत में १७.२६% आबादी के लिए महज़ २.१ % भू क्षेत्र उपलब्ध है. कहने को तो हमारी आबादी चीन से गिनती में कम है . मगर आबादी के लिए खाद्यान पैदा करने वाली भूमि हमारे पास चीन से एक तिहाई है . ज्यों ज्यों हमारी आबादी बढ़ेगी ... बढती आबादी के लिए 'भोजन' पैदा करने वाली भूमि और भी घटती जाएगी . अल्पसंख्यकों की वोट कि तलब गार हमारी यह सेकुलर सरकार यूं ही इस भयंकर राष्ट्रिय समस्या की खिल्ली उड़ाती रहेगी . क्रिश्चन धर्म और इस्लाम को मानने वाले परिवार नियोजन को नहीं मानते . क्रिश्चंज़ धर्म परिवर्तन से भारत को ईसाई देश बनाने पर तुले हैं और मुस्लिम अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर  देश में निज़ामे मुस्तफा नासिर करने में मशगूल हैं. देश में मुस्लिम आबादी ३४% कि द्रुतगति से बढ़ रही है जबकि हिन्दुओं कि आबादी मात्र १९ % कि गति से भी घट रही है. एक अनुमान है कि २०५० आते आते हिंदुस्तान भी पाक-बंगलादेश की भांति मुस्लिम बहुल देश हो जाएगा और हिन्दुओं की हालत भी कुछ कुछ पाक-बंगलादेश के हिन्दुओं जैसी हो जाएगी. 
राईट तो फ़ूड का कानून लाने वाली वोटों की भूखी सेकुलर सरकार अपने पीछे एक भूखा - नंगा और कंगाल देश छोड़ जाएगी. 
    

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

चाणक्य का भूखा ... मनमोहन का चोर


चाणक्य का भूखा 
मनमोहन का चोर 
 एल.आर.गाँधी 
.हमारे अर्थशास्त्री प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और अखंड भारत के सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधान मंत्री विष्णुगुप्त आचार्य 'चाणक्य ' की विचारधारा में ज़मीं आसमान का नहीं बल्कि आकाश -पाताल का अंतर है. 
मनमोहन जी गरीब की लक्ष्मण रेखा खींचने में व्यस्त हैं और धनवान की लूट खसूट से अनजान बने बैठे हैं ! वहीँ चाणक्य एक ओर गरीब के अधिकार के प्रति जागरूक हैं और दूसरी ओर अमीर की लक्ष्मण रेखा पर राज दंड हाथ में लिए प्रहरी की भांति अटल खड़े दिखाई देते हैं- ताकि अमीर अपनी सीमा लांघ कर गरीब के अधिकारों का हरण न कर पाए.चाणक्य का मानना था कि हर नागरिक को खूब मेहनत कर धनोपार्जन करना चाहिए और अपनी आवश्यकता से अधिक धन सुपात्र को दान कर देना चाहिए.   चाणक्य का अपना जीवन ही राज्य के अन्य मंत्रियों के लिए के दृष्टान्त था. चीन के ऐतिहासिक यात्री फाह्यान ने जब कहा कि इतने विशाल देश का प्रधान मंत्री ऐसी कुटिया में रहता है . तब उत्तर था चाणक्य का ' जहाँ का प्रधान मंत्री साधारण कुटिया में रहता है वहां के निवासी भव्य भवनों में निवास किया करते हैं और जिस देश का प्रधान मंत्री राज प्रासादों में रहता है वहां की सामान्य जनता झोम्पडियों में रहती हैं.
नास्ते चौरेशु  विश्वास : चाणक्य ... अनुचित तरीकों से धन कमाने वाले सभी लोग , वे चाहे मंत्री हों, अधिकारी हों, कर्मचारी हों या व्यापारी , इन्हें चोर ही समझाना चाहिए . इसलिए चोरों का कभि विश्वास नहीं करना चाहिए. हमारे आधुनिक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री लगता है अपने ही देश के महान अर्थशास्त्री 'चाणक्य ' की रीति नीति से अनजान हैं ...विदेशी शिक्षा में शायद उन्होंने भारतीय संस्कृति और दर्शन के बारे में कोई  जानकारी प्राप्त ही नहीं की. तभी तो खुद भले मानुष और ईमानदार होते  हुए भी चोर उच्चक्कों की मंडली से बुरी तरहं घिरे हुए हैं. और अब तो लोग उनकी इमानदारी पर भी शक करने लगे हैं और पूछते हैं:- 'चोरों का सरदार और सिंह फिर भी ईमानदार ? पहले कलमाड़ी का 'खेल' चुपचाप देखते रहे , फिर राजा को क्लीन चित दे दी,अब चिदम्बरम पर पूरा भरोसा जता रहे हैं.... लगता है चोर सिपाही का यह खेल यूँ ही चलता रहेगा जब तक एक एक करके सिंह साहेब की सारी की सारी केबिनेट 'तिहार' में नहीं पहुँच जाती और सिंह साहेब अपनी केबिनेट की बैठके 'तिहार ' में ही बुलाएंगे           
चाणक्य का मानना था कि राष्ट्र-उद्दारक योजनायें राजकीय व्ययों में से बचत करके चलाई जानी चाहियें ..जनता को उत्पीडित कर नए नए कर लगा कर लम्बी चौड़ी योजनाएं जन विरोधी हैं. आज हमारी सरकार महंगाई और भुखमरी से त्रस्त जनता पर नित नए कर लगा कर लम्बी चौड़ी योजनाएं बनाने और चलाने में व्यस्त है ताकि राजनेता और अधिकारी अपनी जेबें भर सकें. 
न क्षुधा सम: शत्रु : चाणक्य ..का मानना था कि भूख के समान शत्रु नहीं.. भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. .. जिस देश में भूख से पीड़ित एक ब्रेड चोर की तो खूब पिटाई होती है और करोड़ों रुपया खाने वाले 'राजनेता' तिहार' में भी त्यौहार मनाते हैं , और हमारे सिंह साहेब २६ रूपए रोज़  कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर बता कर 'राशन चोर '  ठहराने पर तुले  हैं. 

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

कतार में राज कुमार

 कतार में  राज कुमार 
    एल आर  गाँधी 



राजमाता दुःखी है  ..... दुःखी है मुए मोदी  से  ..... मुए ने मेरे फूल से 'लाल' को लाइन में लगा दिया  ..... पिछली पांच पीढ़ियों , घियासुदीन से अब तक , किसी तीसमारखाँ में हिम्मत नहीं थी ,राज परिवार के किसी राज कुमार को आम जनता और वह भी गरीब -गुरबों की लाइन में लगा दे। 
हमने तो अपने राज में करीब -करीब गरीबी पर विराम लगा दिया था।  हमारे योजना आयोग के सर्वे -सर्वा सरदार मोंटेक सिंह जी ने तो अपने ३५ लाख के 'जनाना- मर्दाना ' से फारिग हो कर साफ़ कर दिया था कि ३२/- में शहरी और २६/- में ग्रामीण भर पेट खाता है  ..... किसी की क्या मज़ाल कोई उन्हें ग़रीब कह कर अपमानित करे। 
यह तो  मोदी की सोची समझी साजिश है ! १००० -५०० के नोट यका -यक  और वह रात के १२ बजे बंद करके 'बेचारे ' गरीबों को लंबी-लंबी लाइनों में धक्के खाने को मज़बूर कर दिया  !  महज़ ३२/- रूपए और २६/- रुप्पली में भर पेट खाने  वाला मजदूर आज १०००-५०० के नोटो के लिए लाइन में धक्के खाने को मजबूर है।  एक हमारा राज था जब कुछ लोग महज़ १२ रूपए में पेट भर खा कर हज़म करने को 'हाजमोला ' चूसते थे   हमारे राज बब्बर  मियां ने तो साफ़ - साफ़ अपनी आँखों से देखा था 'मुम्बई' में ! ५/- रूपए में भर पेट खाते हमारे एक एम्.पी ने अपनी आँखों से देखा वह भी   शीला की दिल्ली में !
लगता है  ५०० - १००० के नोटधारी लोग -बाग़ भी अब  भर पेट 'खाने'  को तरसते हैं  ..... इनका 'दुःख' राजकुमार से देखा  नहीं गया  ...... बस लग गए लाइन में !

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

न क्षुधा सम : शत्रू .... भूख के समान कोई शत्रू नहीं !

न क्षुधा सम : शत्रू 
भूख के समान  कोई शत्रू नहीं !
    एल. आर. गांधी 

यूँ तो हमारे सिंह साहेब भी अपने आपको महान अर्थ शास्त्री होने का भ्रम पाले बैठे हैं . मगर देश की गरीब जनता की गरीबी रेखा दिनों दिन जिस प्रकार विकराल रूप धारण किये जा रही है और देश की आधी से अधिक आबादी को अपने पेट की आग शांत करने के लिए दो जून का निवाला तक मयस्सर नहीं हो पाता ! ऐसे में सर्वोच्च नयायालय द्वारा केंद्र व् राज्य सरकारों को सख्त निर्देश जारी करते हुए यह निश्चित करने हेतु आवश्यक कदम उठाने को कहा  है कि देश में भूख और कुपोषण से कोई न मरे. !पीपल यूनियन फार सिविल लिबर्टीज़ द्वारा उच्च न्यायालय  में सार्वजानिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी. न्यायालय ने पी.डी.एस को कम्प्यूटरीकृत कर सरकारी अनाज को आम जनता तक पहुँचाने और बीच में से भ्रष्ट तंत्र को समाप्त करने लिए समय बध उपाए सुझाए हैं.
भारत के महान अर्थशास्त्री आचार्य विष्णुगुप्त 'चाणक्य ' ने ठीक ही कहा है ...न क्षुधा सम : शत्रु .. अर्थात भूख के समान कोई शत्रु नहीं है. भूखा व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है. पिछले दिनों एक विचित्र समाचार देखने को मिला . एक व्यक्ति अपने कुत्तों को अपने मकान में बंद कर के चला गया. कुछ दिनों के बाद जब वह लौटा और अपने मकान का दरवाज़ा खोला ..तो उसके अपने ही वफादार कुत्ते उस पर टूट पड़े .. भूख से व्याकुल कुत्ते अपने मालिक को ही चीर फाड़ कर खा गए. कुत्ते को  वफ़ा और संतोष का प्रतीक माना जाता है ... मगर भूख के आगे सब बेमानी हो जाता है.   
कुछ ऐसा ही आभास सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हुआ होगा ... जब उन्होंने देश की भ्रष्ट और निरंकुश सरकार को चेतावनी दे डाली ' भूख और कुपोषण से कोई व्यक्ति न मारा जाए !  बुद्ध  और गाँधी के देश भारत में सदियों से अहिंसा और संतोष का पाठ पढ़ाया जाता रहा  है .. तभी तो देश की भूखी और बीमार जनता आज़ादी के छह दशक बाद भी अपने भ्रष्ट और निरंकुश  राजनेताओं को सह रही है  और अभी तक भूख से बेहाल  श्वान व्रिती उनके विवेक की मर्यादा को नहीं तोड पाई. ..मगर कब तक ?

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

नवजात मृत्यु दर - कोई चिंता नहीं.

नवजात मृत्यु  दर - कोई चिंता नहीं. 
   एल. आर. गाँधी  

आंध्र  प्रदेश के कुर्नूर के हस्पताल में बदइन्तजामी के चलते पिछले ४८ घंटे  में ११ नवजात मौत के आगोश में समा गए. मुख्यमंत्री ने जांच बिठा दी तो हस्पताल अधिकारिओं ने इस बात से इनकार किया कि बचों की मौत का कारन वेंटीलेटर में आक्सीज़न का न होना था. देश की सेहत के ठेकेदार केन्द्रीय सेहत   मंत्री ने फरमा दिया की चिंता की कोई बात नहीं. अब नबी के गुलाम जी आज़ाद फरमा रहे हैं कि चिंता की कोई बात नहीं... तो मानना ही पड़ेगा भई !
नवजात शिशु मृत्यु दर में हम विश्व में नंबर वन हैं और हर साल ९ लाख बच्चे पैदा होते ही मृत्यु  की गोद में समा जाते हैं .....सचमुच चिंता की कोई बात नहीं.. चलो इसी बहाने  किसी क्षेत्र  में तो हम नंबर वन हैं. !!! फिर भी हम संतोष कर सकते हैं कि पिछले दो दशक में यह मृत्यु दर ३३% कम हुई है. विश्व में हर साल ३.३. मिलियन नवजात शिशु अकाल मृत्यु को प्राप्त होते हैं और इन में से आधे - भारत, नाईजेरिया ,पाकिस्तान ,चीन और कांगो के हैं. पछले दो दशक में मृत्यु दर में २८% की कमी आई है.  और यह ४.६ मिलियन से घट कर ३.३. मिलियन रह गई है.  नवजात शिशु मृत्यु दर उक्त पांच देशों में सर्वाधिक होने का मुख्य कारन अधिक जनसँख्या तो है ही वहीँ भारत जैसे देश में इन मौतों का मुख्य कारन बिमारियों से बचाव की मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव साथ साथ देश की बहुत बढ़ी आबादी तक स्वच्छ पेय जल पहुँचाने में हमारी सरकार की नाकामी भी है. चीन ने तो फिर भी अपनी जनसँख्या पर प्रभावशाली ढंग से अंकुश लगा लिया है. मगर हमारे सेकुलर शैतान वोट बैंक की चिंता के चलते ... बढती आबादी से बिलकुल भी चिंतित नहीं हैं. फिर नवजात शिशु अपने प्रथम चार सप्ताह पूरे होते होते परलोक सिधार जाए तो आजाद साहेब के लिए चिंता की बात हो भी कैसे सकती है .. क्योंकि यह भी तो परिवार नियोजन की एक परोक्ष योजना ही हुई न ?