संथारा
एल आर गांधी
जब से तेरी ऊँगली पकड़ कर चलने की ठानी है .... जिंदगी यकायक 'जो है सो है ' की माफिक कटी पतंग सी हुई जा रही है ..... बिना डोर के आकाश की नित नई उचाइयां छूने को बेताब .... बेपरवाह ! हवा का झोंका जिस ओर लेजाए ..... वक्त के साथ ही 'बस' ऊपरी हवा में परवाज़ पर हो लिए हैं .... भय मुक्त - शोक मुक्त -लालसा मुक्त , मुक्ति की बंदिशों से भी मुक्त .... कहूँ तो मुक्ति से भी मुक्त ..... अंत: करण में अनंत अमृत कलश लबालब भर कर छलक रहा है .. सूखे झरने की मानिंद बूँद बूँद धीरे धीरे अग्रसर है .... अपनी ऊँगली को थामे हाथ में लुप्त हो जाने को ...... मृत्यु की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखो ...... संथारा है।
एल आर गांधी
जब से तेरी ऊँगली पकड़ कर चलने की ठानी है .... जिंदगी यकायक 'जो है सो है ' की माफिक कटी पतंग सी हुई जा रही है ..... बिना डोर के आकाश की नित नई उचाइयां छूने को बेताब .... बेपरवाह ! हवा का झोंका जिस ओर लेजाए ..... वक्त के साथ ही 'बस' ऊपरी हवा में परवाज़ पर हो लिए हैं .... भय मुक्त - शोक मुक्त -लालसा मुक्त , मुक्ति की बंदिशों से भी मुक्त .... कहूँ तो मुक्ति से भी मुक्त ..... अंत: करण में अनंत अमृत कलश लबालब भर कर छलक रहा है .. सूखे झरने की मानिंद बूँद बूँद धीरे धीरे अग्रसर है .... अपनी ऊँगली को थामे हाथ में लुप्त हो जाने को ...... मृत्यु की ऊँगली पकड़ कर चलना सीखो ...... संथारा है।
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