विरासत होटल
एल आर गांधी
नीमराणा हैरिटेज होटल के डाइनिंग हाल में प्रवेश करते ही ,पटियाला रियासत के रजवाड़ों की भूली बिसरी यादें इतिहास के पन्नों से उतर कर ज़हन में परत दर परत दस्तक देने लगीं। परिवार के साथ राजाशाही भोजन कक्ष में बैठ कर बिना पीये ही अनायास पटियाला 'पैग ' सा नशा तारी होने लगा। पानी का गिलास उठा कर ज्यों ही होंटो को लगाया तो नज़र महाराजा भूपेंद्र सिंह के शानदार 'चित्र ' पर पड़ गई .... यकीन नहीं हो रहा था कि इतने आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी का अवसान इतनी कम उम्र में ' ऐसे हालात ' में हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
महाराजा राजेन्द्र सिंह प्रकृति प्रेमी थे। उन्होंने ही बारादरी गार्डन और इस महल का निर्माण करवाया .... बारादरी बाग़ में अनेक किस्मों के अमूल्य पेड़ विश्व के कोने कोने से मंगवा कर लगाए गए .... यहीं पर पहाड़ी बाग़ में एक 'नग्न सुंदरी -बॉथिंग ब्यूटी ' का बुत विदेश से मंगवा कर लगाया गया ,जिसे उग्रवाद के काले दिनों में कला के शत्रु 'आतंकियों ने बम से उड़ा दिया। पहाड़ी बाग़ में जब महाराज अपनी रानियों के साथ नहाने आते थे तो किसी भी ख़ास-ओ-आम को माल रोड से गुज़रना 'नागवार ,' था।
२६३ रानिओं के साथ महाराजा भूपेंद्र सिंह को यह राजेंद्रा महल छोटा पड़ गया .... तब उन्होंने पुराने मोती महल ,जहाँ अब केंद्रीय खेल कूद संस्थान है , का निर्माण करवाया .... इसके निर्माण पर दस साल का समय और महज़ ५ लाख रूपए खर्च हुए।
एल आर गांधी
नीमराणा हैरिटेज होटल के डाइनिंग हाल में प्रवेश करते ही ,पटियाला रियासत के रजवाड़ों की भूली बिसरी यादें इतिहास के पन्नों से उतर कर ज़हन में परत दर परत दस्तक देने लगीं। परिवार के साथ राजाशाही भोजन कक्ष में बैठ कर बिना पीये ही अनायास पटियाला 'पैग ' सा नशा तारी होने लगा। पानी का गिलास उठा कर ज्यों ही होंटो को लगाया तो नज़र महाराजा भूपेंद्र सिंह के शानदार 'चित्र ' पर पड़ गई .... यकीन नहीं हो रहा था कि इतने आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी का अवसान इतनी कम उम्र में ' ऐसे हालात ' में हुआ जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।
महाराजा राजेन्द्र सिंह प्रकृति प्रेमी थे। उन्होंने ही बारादरी गार्डन और इस महल का निर्माण करवाया .... बारादरी बाग़ में अनेक किस्मों के अमूल्य पेड़ विश्व के कोने कोने से मंगवा कर लगाए गए .... यहीं पर पहाड़ी बाग़ में एक 'नग्न सुंदरी -बॉथिंग ब्यूटी ' का बुत विदेश से मंगवा कर लगाया गया ,जिसे उग्रवाद के काले दिनों में कला के शत्रु 'आतंकियों ने बम से उड़ा दिया। पहाड़ी बाग़ में जब महाराज अपनी रानियों के साथ नहाने आते थे तो किसी भी ख़ास-ओ-आम को माल रोड से गुज़रना 'नागवार ,' था।
२६३ रानिओं के साथ महाराजा भूपेंद्र सिंह को यह राजेंद्रा महल छोटा पड़ गया .... तब उन्होंने पुराने मोती महल ,जहाँ अब केंद्रीय खेल कूद संस्थान है , का निर्माण करवाया .... इसके निर्माण पर दस साल का समय और महज़ ५ लाख रूपए खर्च हुए।
५ लाख के ज़िक्र के साथ ही महाराजा नरेंद्र सिंह की याद ताज़ा हो गई ... १८५७ की प्रथम जंग ए आज़ादी के बाद भारतियों ने अंग्रेज़ों को 'लगान' बंद कर दिया। गोया फिरंगिओं की माली हालत पतली हो गई ... पंजाब के गवर्नर ने अंग्रेज़ सल्तनत के खैर-ख्वाह रजवाड़ों और ज़मींदारों से मदद मांगी ..... महाराज ने तैश में आ कर ५ लाख दे दिए। अब खज़ाना खाली हो गया तो पटियालविओं पर नए नए कर लगाए गए। उनमें से एक था ' रेड एरिया 'धरमपुरा बाजार 'के लिए बाहर से आने वाली 'वेश्याओं पर चुंगी ' . शायद इसी लिए जब उनके वंशज महाराजा अमरेंद्र सिंह मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने सबसे पहले चुंगी माफ़ी का तोहफा पटियालविओं को दिया।
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