पाक के क्रूर क़ानून
ईश निंदा -रिद्दाह
एल आर गांधी
पाक में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मस्तान सिंह को २५ अन्य सिक्खो सहित ब्लासफेमी अर्थात ईश निंदा के क़ानून के तहत ग्रिफ्तार किया गया है ... गुरूद्वारे पर हमला और पाक मुर्दाबाद के नारे लगाने का भी आरोप है ..... पाक में १९८७ से अब तक अपनी तरहां का यह दूसरा केस है जिसमें इस्लाम से इतर किसी धर्म की ईश निंदा पर मामला दर्ज़ हुआ है .... वरना तो १९१४ तक दर्ज़ हुए १३०० केसों में अधिकतर गैर -मुस्लिम ही इस का शिकार हुए हैं ... ईश निंदा में क़ुरआन या मुहम्मद के अनादर को गुनाह माना जाता है। १९९० तक ६२ लोग इस क़ानून का शिकार हुए और ५० तो कोर्ट की कार्यवाही के दौरान ही इस्लामिक कट्टरपंथीओं द्वारा मार दिए गए.
पाक के फौजी राष्ट्रपति जिया उल हक़ ने १९८०-८६ में इस कानून को और सख्त बनाया ताकि अल्पसंख्यकों के मन में भय पैदा किया जाए और डर के साए में जीते जीते वे इस्लाम कबूल कर लें।
अपने मन्तव् में वे कामयाब भी हुए ..... १९४७ में अल्पसंख्यक २५ % थे ,जो अब महज़ ३% रह गए और सबसे अधिक अत्याचार के शिकार 'हिन्दू' २४% से घट कर महज़ १% रह गए।
यूँ तो ईश निंदा कानून किसी भी धर्म के अनादर पर लागू है मगर इस्लाम में तो किसी दुसरे मज़हब को मानने वाला गुनहगार है ...ऐसे लोगों पर अपोस्टसी अर्थात रिद्दाह या इर्तिदाद लागू होती है ...कोई इस्लाम को त्याग दे या फिर इस्लाम में आ कर छोड़ जाए या फिर मूर्ती पूजा करे तो वह सज़ा का पात्र है ..... पाकिस्तान में हज़ारों मंदिर और असंख्य मूर्तिया तोड़ी गई मगर कोई ईश निंदा में नहीं पकड़ा गया ... एक शायर ने कहा है .....
शेख नें मस्जिद बना ,मिस्मार बुतखाना किया
पहले तो कुछ सूरत भी थी ,अब साफ़ वीराना किया
ईश निंदा -रिद्दाह
एल आर गांधी
पाक में गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मस्तान सिंह को २५ अन्य सिक्खो सहित ब्लासफेमी अर्थात ईश निंदा के क़ानून के तहत ग्रिफ्तार किया गया है ... गुरूद्वारे पर हमला और पाक मुर्दाबाद के नारे लगाने का भी आरोप है ..... पाक में १९८७ से अब तक अपनी तरहां का यह दूसरा केस है जिसमें इस्लाम से इतर किसी धर्म की ईश निंदा पर मामला दर्ज़ हुआ है .... वरना तो १९१४ तक दर्ज़ हुए १३०० केसों में अधिकतर गैर -मुस्लिम ही इस का शिकार हुए हैं ... ईश निंदा में क़ुरआन या मुहम्मद के अनादर को गुनाह माना जाता है। १९९० तक ६२ लोग इस क़ानून का शिकार हुए और ५० तो कोर्ट की कार्यवाही के दौरान ही इस्लामिक कट्टरपंथीओं द्वारा मार दिए गए.
पाक के फौजी राष्ट्रपति जिया उल हक़ ने १९८०-८६ में इस कानून को और सख्त बनाया ताकि अल्पसंख्यकों के मन में भय पैदा किया जाए और डर के साए में जीते जीते वे इस्लाम कबूल कर लें।
अपने मन्तव् में वे कामयाब भी हुए ..... १९४७ में अल्पसंख्यक २५ % थे ,जो अब महज़ ३% रह गए और सबसे अधिक अत्याचार के शिकार 'हिन्दू' २४% से घट कर महज़ १% रह गए।
यूँ तो ईश निंदा कानून किसी भी धर्म के अनादर पर लागू है मगर इस्लाम में तो किसी दुसरे मज़हब को मानने वाला गुनहगार है ...ऐसे लोगों पर अपोस्टसी अर्थात रिद्दाह या इर्तिदाद लागू होती है ...कोई इस्लाम को त्याग दे या फिर इस्लाम में आ कर छोड़ जाए या फिर मूर्ती पूजा करे तो वह सज़ा का पात्र है ..... पाकिस्तान में हज़ारों मंदिर और असंख्य मूर्तिया तोड़ी गई मगर कोई ईश निंदा में नहीं पकड़ा गया ... एक शायर ने कहा है .....
शेख नें मस्जिद बना ,मिस्मार बुतखाना किया
पहले तो कुछ सूरत भी थी ,अब साफ़ वीराना किया
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