कानून के हाथ लम्बे भी और बौने भी
एल आर गांधी
कानून के हाथ कितने लम्बे या कितने बौने … किसी के लिए लम्बे तो किसी के लिए बौने ....
यही लम्बे हाथ बाबा आसा के गिरेबान तक पहुँच भी गए और सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया .... अपने योगदान पर मिडिया ने भी खूब पीठ थपथपाई .... अब संत राम पाल को कानूनी औकात दिखाने को हरियाणा पुलिस और मिडिया संत राम पाल के कबीर पंथी सतलोक आश्रम की किलेबंदी किये खड़े हैं और दूसरी तरफ संत जी के कबीर पंथी भक्त आश्रम की रक्षा में अड़े हैं ....झगड़ा २००६ का है , जब आर्य समाजियों का कबीरपंथी संत राम पाल के साथ इसी आश्रम के बहार झगड़ा हो गया था … तब सरकार कांग्रेस की थी ,अब बीजेपी है … कानून यका यक जाग गया और सिकुलर मिडिया भी ....
बाबा पर न्यायालय के नान- बेलेबल वारंट की तामील की दरकार है … सरकार और पुलिस बेचारी मज़बूर है … इस लिए संत जी को घेरा है … मगर मिडिया खाम खाह में पिट रहा है … इसे कहते हैं 'समझदार -नासमझ '.
हमारे सिकुलर देश में सैंकड़ों बेलेबल -नान-बेलेबल कोर्ट वारंट तामील की दरकार में कोतवालिओं की चौखटों पर बरसों से एड़ियां रगड़ रहे हैं … न तो सरकारों को याद है और न मिडिया को …
सिकुलर सियासतदानों की सबसे बुल्लंद इबादतगाह के शाही इमाम हज़रात सैयद अहमद बुखारी, जिनके यहाँ १२५ बरस पुरानी पार्टी की 'राजमाता' भी चुनाव से पहले सज़दा करना नहीं भूलती .... पर दो दर्ज़न से भी अधिक बेलेबल नान-बेलेबल कोर्ट के वारंट ज़ेरे -तामीर हैं …
दिल्ली की एक कोर्ट के जज साहेब की यह टिप्पणी : 'देश के कानून और सिकुलर मिडिया और सियासत की दिशा और दशा को खुद ब खुद बयां कर देती है ': रिकार्ड देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि कमिश्नर रैंक का अफसर भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सकता कि वह 'बुखारी' के खिलाफ वारंट की तामील करवा सके (जनवरी २००४ ) . वह (बुखारी ) देश के किसी भी कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता। …
यही लम्बे हाथ बाबा आसा के गिरेबान तक पहुँच भी गए और सलाखों के पीछे भी पहुंचा दिया .... अपने योगदान पर मिडिया ने भी खूब पीठ थपथपाई .... अब संत राम पाल को कानूनी औकात दिखाने को हरियाणा पुलिस और मिडिया संत राम पाल के कबीर पंथी सतलोक आश्रम की किलेबंदी किये खड़े हैं और दूसरी तरफ संत जी के कबीर पंथी भक्त आश्रम की रक्षा में अड़े हैं ....झगड़ा २००६ का है , जब आर्य समाजियों का कबीरपंथी संत राम पाल के साथ इसी आश्रम के बहार झगड़ा हो गया था … तब सरकार कांग्रेस की थी ,अब बीजेपी है … कानून यका यक जाग गया और सिकुलर मिडिया भी ....
बाबा पर न्यायालय के नान- बेलेबल वारंट की तामील की दरकार है … सरकार और पुलिस बेचारी मज़बूर है … इस लिए संत जी को घेरा है … मगर मिडिया खाम खाह में पिट रहा है … इसे कहते हैं 'समझदार -नासमझ '.
हमारे सिकुलर देश में सैंकड़ों बेलेबल -नान-बेलेबल कोर्ट वारंट तामील की दरकार में कोतवालिओं की चौखटों पर बरसों से एड़ियां रगड़ रहे हैं … न तो सरकारों को याद है और न मिडिया को …
सिकुलर सियासतदानों की सबसे बुल्लंद इबादतगाह के शाही इमाम हज़रात सैयद अहमद बुखारी, जिनके यहाँ १२५ बरस पुरानी पार्टी की 'राजमाता' भी चुनाव से पहले सज़दा करना नहीं भूलती .... पर दो दर्ज़न से भी अधिक बेलेबल नान-बेलेबल कोर्ट के वारंट ज़ेरे -तामीर हैं …
दिल्ली की एक कोर्ट के जज साहेब की यह टिप्पणी : 'देश के कानून और सिकुलर मिडिया और सियासत की दिशा और दशा को खुद ब खुद बयां कर देती है ': रिकार्ड देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि कमिश्नर रैंक का अफसर भी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सकता कि वह 'बुखारी' के खिलाफ वारंट की तामील करवा सके (जनवरी २००४ ) . वह (बुखारी ) देश के किसी भी कोर्ट में पेश नहीं किया जा सकता। …
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