काबुल में करबला
एल.आर.गाँधी
सिंह साहेब के शांति पुरुष की काबिना के अंदरूनी रक्षा मंत्री रहमान मालिक ने 'तालिबान' का शुक्रिया अदा किया .. क्योंकि उनकी अपील पर इस बार तालिबान ने 'मुहर्रम' के मौके पर कोई 'काण्ड' नहीं किया और शांति बनाए रक्खी . पाक की वीणा मलिक तो जिसम से ही बेनकाब हुई थी, मगर मलिक साहेब तो इखलाक से भी नंगे हो गए .. जिन आतंकियों को नेस्तोनामूद करने की अमेरीका से अरबों डालर की सुपारी लेते रहे ..उन्हीं का शुक्रिया ?
उधर अफगानिस्तान में इन्हीं तालिबान के 'भाइयों' ने मुहर्रम के पाक जलूस पर आतंकी हमला कर ५६ अफगान शिया मुस्लिमों को बम से उड़ा दिया १५० के करीब ज़ख़्मी हुए .. मरने वालों में ज्यादाता मासूम औरतें और बच्चे थे... पाक से आतंकी संगठन लश्करे झांगवी ने हमले की जिम्मेवारी कबूली. यह संगठन सुन्नी मुसलमानों से बावस्ता है , जो शिया मुसलमानों को 'काफ़िर' मानते हैं. कल तक पाक को अपना 'भाई' और अमेरिका -भारत से भी अधिक हरदिल -अज़ीज़ कहने वाले करज़ई साहेब भी बेनकाब हो गए . करज़ई साहेब ने इस हमले के पीछे पाक की ख़ुफ़िया एजेंसी आई .एस.आई. के हाथ का आरोप लगाया . शाम होते होते एक और धमाके ने १९ अफगानियों को मौत की नींद सुला दिया.
मुहर्रम शिया मुसलमान हर बरस हज़रत इमाम हुसेन की क़ुरबानी की याद में मनाते हैं. ६८० ऐ डी में हज़रत मुहम्मद के नाती इमाम हुसेन , ७२ ईमान वालों के साथ खलीफा याज़िद के विरुद्ध लड़ते हुए 'कर्बला' में शहीद हुए थे. इमाम हुसेन को मानने वाले 'शिया' सम्प्रदाय कहलाने लगे और इसके साथ ही एक ही 'अल्लाह' को मानने वाले दो सम्प्रदायों शिया-'सुन्नी में बँट गए. पिछली १३ शताब्दियों से शिया -सुन्नी एक दूसरे को 'काफ़िर' मान कर मुसलसल लड़ रहे हैं . पिछले एक दशक से अफगानिस्तान में बेशक कोई ऐसी वारदात नहीं हुई जिसमें मुहर्रम के पवित्र अवसर पर खून खराबा बरपा होई. तालिबान के वक्त में तो खैर अफगानिस्तान में २०% शिया अक्सरियत को मुहर्रम मानाने की ही मनाही थी. हाँ पाकिस्तान में शिया समुदाय की मस्जिदों पर सुन्नी जेहादी हमले करते ही रहते हैं ...अबकी बार रहमान मालिक की बात मान कर जेहादियों ने पाक को बख्श दिया और सारी कसर अफगानिस्तान में पूरी कर दी.. आखिर करज़ई के भाई होने का भी तो 'क़र्ज़' अदा जो करना था.... करज़ई साहेब शायद भूल गए ! शैतान भी कभी किसी के हुए हैं.
एल.आर.गाँधी
सिंह साहेब के शांति पुरुष की काबिना के अंदरूनी रक्षा मंत्री रहमान मालिक ने 'तालिबान' का शुक्रिया अदा किया .. क्योंकि उनकी अपील पर इस बार तालिबान ने 'मुहर्रम' के मौके पर कोई 'काण्ड' नहीं किया और शांति बनाए रक्खी . पाक की वीणा मलिक तो जिसम से ही बेनकाब हुई थी, मगर मलिक साहेब तो इखलाक से भी नंगे हो गए .. जिन आतंकियों को नेस्तोनामूद करने की अमेरीका से अरबों डालर की सुपारी लेते रहे ..उन्हीं का शुक्रिया ?
उधर अफगानिस्तान में इन्हीं तालिबान के 'भाइयों' ने मुहर्रम के पाक जलूस पर आतंकी हमला कर ५६ अफगान शिया मुस्लिमों को बम से उड़ा दिया १५० के करीब ज़ख़्मी हुए .. मरने वालों में ज्यादाता मासूम औरतें और बच्चे थे... पाक से आतंकी संगठन लश्करे झांगवी ने हमले की जिम्मेवारी कबूली. यह संगठन सुन्नी मुसलमानों से बावस्ता है , जो शिया मुसलमानों को 'काफ़िर' मानते हैं. कल तक पाक को अपना 'भाई' और अमेरिका -भारत से भी अधिक हरदिल -अज़ीज़ कहने वाले करज़ई साहेब भी बेनकाब हो गए . करज़ई साहेब ने इस हमले के पीछे पाक की ख़ुफ़िया एजेंसी आई .एस.आई. के हाथ का आरोप लगाया . शाम होते होते एक और धमाके ने १९ अफगानियों को मौत की नींद सुला दिया.
मुहर्रम शिया मुसलमान हर बरस हज़रत इमाम हुसेन की क़ुरबानी की याद में मनाते हैं. ६८० ऐ डी में हज़रत मुहम्मद के नाती इमाम हुसेन , ७२ ईमान वालों के साथ खलीफा याज़िद के विरुद्ध लड़ते हुए 'कर्बला' में शहीद हुए थे. इमाम हुसेन को मानने वाले 'शिया' सम्प्रदाय कहलाने लगे और इसके साथ ही एक ही 'अल्लाह' को मानने वाले दो सम्प्रदायों शिया-'सुन्नी में बँट गए. पिछली १३ शताब्दियों से शिया -सुन्नी एक दूसरे को 'काफ़िर' मान कर मुसलसल लड़ रहे हैं . पिछले एक दशक से अफगानिस्तान में बेशक कोई ऐसी वारदात नहीं हुई जिसमें मुहर्रम के पवित्र अवसर पर खून खराबा बरपा होई. तालिबान के वक्त में तो खैर अफगानिस्तान में २०% शिया अक्सरियत को मुहर्रम मानाने की ही मनाही थी. हाँ पाकिस्तान में शिया समुदाय की मस्जिदों पर सुन्नी जेहादी हमले करते ही रहते हैं ...अबकी बार रहमान मालिक की बात मान कर जेहादियों ने पाक को बख्श दिया और सारी कसर अफगानिस्तान में पूरी कर दी.. आखिर करज़ई के भाई होने का भी तो 'क़र्ज़' अदा जो करना था.... करज़ई साहेब शायद भूल गए ! शैतान भी कभी किसी के हुए हैं.
yahi satya hai, lekin kisi ko dikhai nahi deta..
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