पाक के पाक और नापाक में जेहाद !!!
एल. आर. गाँधी
काफिरों से पाक को पाक साफ़ करने के बाद अब अल्लाह के बन्दे बरेल्विओं से पाक को पाक साफ़ करने में मशगूल हैं - पाक में बरेलवी-मुस्लिमों की आबादी ६०% है और ये अल्लाह के बन्दे अल्लाह को सूफी संतो की दरगाहों में तलाशते हैं जो की सुन्नी और वहाबी तालिबान को हरगिज़ गवारा नहीं- ये उन्हें 'काफ़िर' मानते हैं. इनकी इबतात गाहों को हिन्दू काफिरों के पूजास्थलों की भांति ही तहस नहस करना 'सबाब का काम' मानते हैं.
गत इतवार को पाक के पंजाब प्रान्त के डेरा गाज़िखान की दरगाह में तालिबान ने ३ धमाके किये जिन में ४१ अल्लाह के बन्दे मारे गए और ६० को ज़ख़्मी हालत में शफाखानों में दाखिल करवाया गया जिन में २० की हालत गंभीर है. पिछले साल जुलाई में लाहोर की मशहूर सूफी दरगाह दाता दरबार में दो आत्मघाती बम हमलावरों ने हमला कर ५० से अधिक लोगों को जहनुम का रास्ता दिखाया था. तहरीक ए तालिबान -हज़रत दाता गंज बक्श सूफी संत की दरगाह को गुजरात के सोम नाथ मंदिर के समान मानते हैं ,जिसे महमूद गजनवी ने मिस्मार किया था. १००० साल पुरानी इस दरगाह में गरीब मुसलमानों को रोटी-कपडा और रहने के लिए छत मुहैया की जाती है. ऐसे ही जब बरेलवी मुसलमान कराची के निश्तार पार्क में हज़रत मुहम्मद का जन्म दिन मना रहे थे तो आत्मघाती बम हमलावर ने ७० अल्लाह के बन्दों को मार गिराया. साल २००९ में तालिबान ने ऐसी ही १७वि सदी की सूफी गायक संत रहमान बाबा की दरगाह को नेस्तो नाबूद कर दिया . देवबन्दिस का मानना है कि संगीत और नृत्य इस्लाम में हराम है. बहादर बाबा की दरगाह को तो तालिबान ने राकेटों से ही उड़ा दिया . पेशावर के निकट ४०० साल पुरानी सूफी संत अबू सईद बाबा की दरगाह को भी निशाना बनाया गया.
इस्लामिक विद्वान जावेद अहमद घमिदी का मानना है कि अपने ही मज़हब के दूसरे लोगों को काफ़िर करार देना मुल्लाओं का काम है. देवबंद और वहाबिओं ने जिया उल हक़ पर दवाब बना कर अहमदी समुदाए को गैर मुस्लिम घोषित करवाया था. दिसंबर २००९ में कराची के मुहर्रम जुलूस पर आत्मघाती हमला कर ३३ अल्लाह के बन्दों को मार गिराया.
जिन्ना के पाक में २५% अल्पसंख्यक थे ,जो आज घट कर मात्र ५% रह गए हैं . इनमें क्रिश्चन, इस्मईली ,हिन्दू,सिख , पारसी और अहमदी हैं . बाकी कुरआन और मुहम्मद को मानने वाले मुसलमानों में सुनी- शिया -बरेलवी-देवबंद और वहाबी हैं. देवबंद और वहाबी २० % हैं और सत्ता पर इन समुदाय का ही कब्ज़ा है और इस समुदाय के लोग ही राजनीती और सरकारी ओहदों पर काबिज़ हैं . ये लोग बरेलवी और अन्य मुसलमानों को 'काफ़िर' मानते हैं. शिया समुदाय के ,जिनकी संख्या १५ % है, २००० से अब तक शिया सुन्नी संघर्ष में ५००० मुस्लमान मारे गए हैं.
इस प्रकार देवबंदी और वहाबियों की नज़र में पाक के ८०% मुसलमान 'काफ़िर' हैं और कुरआन में 'काफ़िर ' की गर्दन पर तलवार से वार करना मोमीनाना काम है. और यह काम बदस्तूर जारी है.... अल्लाह महान है.....
एल. आर. गाँधी
काफिरों से पाक को पाक साफ़ करने के बाद अब अल्लाह के बन्दे बरेल्विओं से पाक को पाक साफ़ करने में मशगूल हैं - पाक में बरेलवी-मुस्लिमों की आबादी ६०% है और ये अल्लाह के बन्दे अल्लाह को सूफी संतो की दरगाहों में तलाशते हैं जो की सुन्नी और वहाबी तालिबान को हरगिज़ गवारा नहीं- ये उन्हें 'काफ़िर' मानते हैं. इनकी इबतात गाहों को हिन्दू काफिरों के पूजास्थलों की भांति ही तहस नहस करना 'सबाब का काम' मानते हैं.
गत इतवार को पाक के पंजाब प्रान्त के डेरा गाज़िखान की दरगाह में तालिबान ने ३ धमाके किये जिन में ४१ अल्लाह के बन्दे मारे गए और ६० को ज़ख़्मी हालत में शफाखानों में दाखिल करवाया गया जिन में २० की हालत गंभीर है. पिछले साल जुलाई में लाहोर की मशहूर सूफी दरगाह दाता दरबार में दो आत्मघाती बम हमलावरों ने हमला कर ५० से अधिक लोगों को जहनुम का रास्ता दिखाया था. तहरीक ए तालिबान -हज़रत दाता गंज बक्श सूफी संत की दरगाह को गुजरात के सोम नाथ मंदिर के समान मानते हैं ,जिसे महमूद गजनवी ने मिस्मार किया था. १००० साल पुरानी इस दरगाह में गरीब मुसलमानों को रोटी-कपडा और रहने के लिए छत मुहैया की जाती है. ऐसे ही जब बरेलवी मुसलमान कराची के निश्तार पार्क में हज़रत मुहम्मद का जन्म दिन मना रहे थे तो आत्मघाती बम हमलावर ने ७० अल्लाह के बन्दों को मार गिराया. साल २००९ में तालिबान ने ऐसी ही १७वि सदी की सूफी गायक संत रहमान बाबा की दरगाह को नेस्तो नाबूद कर दिया . देवबन्दिस का मानना है कि संगीत और नृत्य इस्लाम में हराम है. बहादर बाबा की दरगाह को तो तालिबान ने राकेटों से ही उड़ा दिया . पेशावर के निकट ४०० साल पुरानी सूफी संत अबू सईद बाबा की दरगाह को भी निशाना बनाया गया.
इस्लामिक विद्वान जावेद अहमद घमिदी का मानना है कि अपने ही मज़हब के दूसरे लोगों को काफ़िर करार देना मुल्लाओं का काम है. देवबंद और वहाबिओं ने जिया उल हक़ पर दवाब बना कर अहमदी समुदाए को गैर मुस्लिम घोषित करवाया था. दिसंबर २००९ में कराची के मुहर्रम जुलूस पर आत्मघाती हमला कर ३३ अल्लाह के बन्दों को मार गिराया.
जिन्ना के पाक में २५% अल्पसंख्यक थे ,जो आज घट कर मात्र ५% रह गए हैं . इनमें क्रिश्चन, इस्मईली ,हिन्दू,सिख , पारसी और अहमदी हैं . बाकी कुरआन और मुहम्मद को मानने वाले मुसलमानों में सुनी- शिया -बरेलवी-देवबंद और वहाबी हैं. देवबंद और वहाबी २० % हैं और सत्ता पर इन समुदाय का ही कब्ज़ा है और इस समुदाय के लोग ही राजनीती और सरकारी ओहदों पर काबिज़ हैं . ये लोग बरेलवी और अन्य मुसलमानों को 'काफ़िर' मानते हैं. शिया समुदाय के ,जिनकी संख्या १५ % है, २००० से अब तक शिया सुन्नी संघर्ष में ५००० मुस्लमान मारे गए हैं.
इस प्रकार देवबंदी और वहाबियों की नज़र में पाक के ८०% मुसलमान 'काफ़िर' हैं और कुरआन में 'काफ़िर ' की गर्दन पर तलवार से वार करना मोमीनाना काम है. और यह काम बदस्तूर जारी है.... अल्लाह महान है.....
यहां भी रा्जनीतिबाज यही हालात कराने जा रहे हैं...
जवाब देंहटाएंek bahut accha lekh likha hai aapne
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