सोमवार, 14 मार्च 2011

भरोसे की सुनामी

भरोसे  की  सुनामी 
  एल.आर.गाँधी
जापान की सुनामी में  भारी जान माल का नुक्सान हुआ और जापानी उससे उबर भी जाएंगे क्योंकि उनमें ऐसी  आपदाओं से उबरने की इच्छाशक्ति है. हिरोशिमा पर बम से हुई तबाही से यह देश और भी सशक्त हो कर एक विशव शक्ति के रूप में खड़ा हो गया. मगर सुनामी से हुए निउक्लियर प्लांट्स में  रिसाव और धमाकों से विश्व भर में परमाणु संयंत्रों से संभावित खतरे की घंटी बज गई है. इस से पूर्व भी परमाणु रिसाव १९७९ में अमेरिका के थ्री आईलैंड में, १९८६ में  सोवियत संघ (युक्रेन) के  चेंरेविल में हो चुके हैं जिनमें भारी जान माल का नुक्सान देखने को मिला था. जर्मन में तो परमाणु संयंत्र बंद करने की मांग जोर  पकड़ने लगी है. 
हमारे वैज्ञानिक  अपने परमाणु संयंत्रों के जापान से भी अधिक सुरक्षित होने के दावे तो कर रहे हैं मगर देशवासियों को विशवास नहीं हो रहा ! हो भी कैसे ! कहते हैं दूध का जला छाछ को भी फूंक  फूंक   कर पीता
है- हम तो वो है जो दूध से जले नहीं अपनों द्वारा ही जलाए गए हैं. भोपाल गैस त्रासदी को कौन भूल सकता है ?
कैसे गैस पीड़ित पिछले २५ बरस से ज़हरीली  गैस के साथ साथ -प्रशासन की उपेक्षा का संत्रास भोग रहे हैं. किस प्रकार हमारे ही रहनुमाओं ने दोषियों को बचाया भी और भगाया भी . फिर इन्ही सत्ता के दलालों पर जनता विश्वास करे तो कैसे ? 
जिस परमाणु बिजली समझौते के बल पर हमारे 'सिंह साहेब' पुन : सत्ता पर काबिज हो गए और लोगों ने देश में बिजली से प्रगति को वोट दिया .  वही 'सिंह साहेब' आज भरोसे की सुनामी में गोते खा रहे हैं . जो शख्स अपनी नाक के नीचे हो रहे गोल माल को नहीं रोक पाया - भला वह परमाणु संयंत्रों पर नियंत्रण का भरोसा जनता को क्या ख़ाक दे पाएगा. एक मजबूर प्रधानमंत्री से भला देश की जनता अपनी जान ओ माल की सुरक्षा की उम्मीद कर भी कैसे सकती है. 
सुनामी तो जापान में आई है और उसका दूरगामी असर भारत की परमाणु विद्युतीकरण पर पड़ने वाला है ! 
 


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