ज्यों ज्यों राष्ट्र मंडल खेलों के महापर्व का दिन निकट आ रहा है -कलमाड़ी जी की तत्परता बेचैनी में बदलती जा रही है. कल रविवार है और २०० दिन महज़ शेष बचे हैं महां- खेले के. इस अवसर पर कलमाड़ी जी ने आयोजन को सफल और विश्व स्तर का बनाने के लिए 'जोर लगा के हई शा' प्रोग्राम इंडिया गेट पर रखा है ता कि दिल्ली वासिओं को एहसास दिलाया जा सके कि 'सब ठीक ठाक' है. इस अवसर पर २०० फुट कैनवस पर राष्ट्र मंडल खेलों का 'थीम' उकेरा जायेगा.अब हुसैन साहेब तो बीच मझधार छोड़ कर अपने स्लीपरों सहित क़तर भाग गए . इस लिए यह काम प्रसिद्ध कलाकार सतीश गुजराल जी को सौंपा गया है. अन्य कलाकार भी अपने फन के जौहर दिखायेंगे. पतंग बाज़ी का विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किया जायेगा.पतंग उड़ा कर कलमाड़ी जी अपने ऊंचे इरादों से दिल्ली कि जनता को रु- ब- रु करवाएंगे.
राष्ट्र मंडल २०१० को विश्व स्तर का आयोजन बनाने के लिए सरकार ने कलमाड़ी जी को खुली छुट दे रखी है.खेलों के लिए जहाँ १.६ बिल्लियन डालर का प्रावधान है, वहीँ दिल्ली सरकार पिछले तीन साल में दिल्ली को दुल्हन बनाने पर १७,४०० करोड़ खर्च कर चुकी है.शिला जी के मिन्नी पर्स में से ११००० करोड़ भी ख़त्म होने को हैं और केंद्र से २०,००० करोड़ कि और मांग कि गई है.
कलमाड़ी जी के सपने को साकार करने में लाखो मजदूर दिन रात पसीना ही नहीं अपना खून भी बहाए जा रहे हैं. अब तक ४३ मजदूर खेल गाँव के निर्माण में वीर गति को प्राप्त हो चुके हैं. विश्व स्तर के निर्माण के लिए सरकार ने तो अंतर्राष्ट्रीय कम्पनिओं से निविदाएँ आमंत्रित की थीं . इन बड़ी कम्पनिओं ने आगे मजदूरों आदि के जुगाड़ के लिए देसी ठेकेदारों को काम सौंप दिया. इन देसी ठेकेदारों ने लोकल मजदूरों के स्थान पर प्रवासी मजदूरों को दिहाड़ी पर काम दिया ता कि लेबर लास के झंझटों से बचा जा सके.पक्का मजदूर रखने पर नियमोअनुसार मजदूर का पंजीकरण अपेक्षित है. पंजीकृत मजदूर को मूलभूत सुविधाओं के इलावा जीवन बिमा भी किया जाता है. इस पर चिकित्सा सुविधा और दुर्घटना प़र समुचित मुआवजा देना होता है. अब इन अस्थाई मजदूरों को बीमे कि सुविधा तो क्या मूल भूत सुविधाएँ भी नहीं मिल पाती
गत जनवरी में कडाके कि ठण्ड में मजदूरों कि दुर्दशा का संज्ञान लेते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने पांच सदस्यों के एक पैनल का गठन किया. ताकि निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को दरपेश मुसीबतों की यथार्थ जानकारी प्राप्त की जा सके. १५ मर्च को पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट के समक्ष मजदूरों की दयनीय स्थिति बारे सनसनीखेज़ रहस्यों पर से पर्दा उठाया.मजदूरों को ठेकेदारों द्वारा मूल भूत सुविधाएँ भी मुहैया नहीं करवाई जाती. न्यूनतम वेतन भी नहीं दिया जाता और ऐसे मजदूरों की संख्या ४१५,ooo हज़ार है. पैनल की सदस्य अरुंधती घोष ने अपनी रिपोर्ट में कोर्ट को बताया है कि ये मजदूर देश के नागरिक हैं इस लिए इन्हें देश के क़ानून द्वारा निर्थारित सुविधओं पर इनका पूरा हक़ है,जिनसे इन्हें वंचित रखना एक अपराध है.मजदूरों के साथ जानवरों जैसा सलूक किया जा रहा है. मजदूर बदबूदार कोठड़ों में रहने को मजबूर हैं,जहाँ शौचालय तक कि सुविधा नहीं . १५० मजदूरों को मात्र ४ शौचालयों में जो गन्दगी से भरे रहते हैं ,उपलब्ध किये गए हैं जहाँ तक महिला मजदूरों का सम्बन्ध है, उनको यह सुविधा भी नहीं कि वे अलग परदे में शौच जा सकें. नियमानुसार मजदूरों को रक्षा कवच- हेमलेट , जूते और मास्क आदि कि तो बात ही छोडो. सरकार द्वारा निर्माण कम्पनिओं से मजदूरों कि सुख सुविधा के लिए सेस के रूप में कर लिया जाता है जो अब तक ३५० करोड़ रूपए तक पहुँच गया है. दिल्ली में ८ लाख मजदूरों में से केवल २००० मजदूर ही पंजीकृत हैं . मारे गए ४३ मजदूरों में से केवल मात्र एक मजदूर को दुर्घटना का मुआवजा मिल पाया है. इस फंड में से मजदूरों के मात्र १०० बच्चों को छात्रवृति और ३ बाल वाड़ीओं का इंतजाम शीलाजी की अफसरशाही कर पाई है.
पैनल ने उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट में इन मजदूरों के लिए लेबर एक्ट द्वारा निर्धारित सुविधाएं और सरकार द्वारा इकठे किये गए ३५० करोड़ कर में से पीड़ित परिवारों को सहायता पर्दान करने के अतिरिक्त दोषी अफसरशाही और निर्दई ठेकेदारों के विरुद्ध कारवाही करने का अनुरोध किया है.
जब निर्माण की रीढ़ मजदूर ही बेहाल है तो निर्माण कार्य निर्धारित समय सीमा में पूरा करना कैसे संभव है. अब कलमाड़ी जी कितने ही बिन डोर के पतंग उड़ा ले और २०० फुट कैनवस छोड़ २००० फुट की कैनवस को सत्ता के रंगों से रंग लें 'जोर लगा के हई शा' तो 'चोकी लामा को ही करना है.
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