हम लोग दुखी जीवन से त्रस्त जन्म जन्म के बंधनों से मुक्ति की आकांक्षा में निरंतर ईश्वरोपासना में व्यस्त थे. - तो अँगरेज़ कष्टकारी रोगों से मुक्त कर इसी जीवन को सहज और उन्मुक्त करने में प्रयासरत था.
. १४ मई १७९६ को यह सौभाय प्राप्त हुआ जेनर नामक एक अँगरेज़ वैज्ञानिक को जब सर्वप्रथम उसने चेचक के टीके का आविष्कार कर डाला. जेनर के टीके ने चेचक को तो नेस्तोनाबूद कर दिया किन्तु 'टीका' इंजेक्शन के अवतार में खुद समाज के समस्त रोगों की राम बाण संजीवनी बन बैठा. हर कोई 'टीका' जेब में लिए घूम रहा है.कब,कहाँ, कैसे और किसके लगाना पड़ जाए क्या मालूम ! समस्त असाध्य बिमारिओं का ही नहीं ,अब तो जटिल समस्स्याओं का भी एक मात्र उपचार है 'टीका'. नीम हाकिम ख़तरा ए जान के पास भी जब कोई आहात मरीज़ आता है, तो पहला शब्द एक ही होता है ! डाक्टर बचा लो -बस झट से कोई टीका लगा दो !
गत दिनों 'टीके' की माया देख, हम तो बस देखते ही रह गए ! हमारे एक मित्र नए नए आयुर्वेदिक डाक्टरी का कोर्स कर अपने आर.एम्.पी पिताश्री के क्लिनिक में 'दीन दुखिओं ' के उपचार में मशगूल थे, हम भी जा बैठे -चुपके से . डाक्टर साहेब स्टेथो 'गले' में लटकाए एक मरीज़ की हार्ट बीट जांच रहे थे. इसके बाद दूसरे मरीज़ की पसलिओं का मुआयना किया,और फिर एक मरीज़ की अवरुद्ध छाती छान मारी.हम हैरान परेशान ! अरे स्टेथो बिना कान में लगाये ही..
खैर ! अब डाक्टर साहेब एक महिला के तीव्र अनुरोध पर 'इमरजेंसी ट्रीटमेंट 'यानि कि 'टीका' लगा रहे थे. महिला को बैंच पर आड़ी-टेढ़ी बिठाया और लगा दिया टीका.. और वह भी साडी के ऊपर से ही - टीका तो लग गया किन्तु टिके की पिचकारी से बैंच गीला हो गया ! बाद में उपचार से संतुष्ट महिला अपनी बहिना से बतिया रही...कमाल के डाक्टर हैं जी...'टीका' लगाते है कि पता ही नहीं चलता...
यह अँगरेज़ के अंग्रेजी टीके ही का तो कमाल जी - हर हिन्दुस्तानी नागरिक 'इंडियन सिटिज़न ' हो गया . हिंदी फिल्मों का नायक फिल्म फेयर अवार्ड पा कर बाग़ बाग़ तो होता है पर 'दो शब्द' आइ लव यू इंडिया अंग्रजी में ही कह पाता है.
अब तो हमारी पत्रकार बिरादरी भी पाठकों कि सुविधा के नाम पर 'हिंगलिश' शब्दावली पर ख़ास ध्यान देते है. पिछड़ेपन का प्रतीक हो कर हो कर रह गई 'विशुद्ध हिंदी' . है न ! अंग्रेजी टीके का कमाल !
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