शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

सत्ता का वर्णसंकर

सत्ता का वर्णसंकर 

एल आर गांधी 

मैं उस वक्त वहां मौजूद था, जब कश्मीर में सभा  दौरान फारूख अब्दुल्ला ने राजीव गांधी को हिन्दू कहा था।   
फ़ौरन राजीव गांधी ने कहा था     '  मैं हिन्दू नहीं हूँ   ' -------एम के रैना , लेखक , मुंबई                             

आई एम एक्सिडेंटली हिन्दू --------- नेहरू 

मंदिरों में जाने वाले , महिलाओं को माँ , बहन और देवी कहने वाले ही उन्हें छेड़ते हैं ------राहुल गांधी 

भगवान श्री कृष्ण ने गीता में ऐसे विधर्मी लोगों को 'वर्णसंकृत' श्रेणी में रक्खा   है।  जब कुल की स्त्रियां कुत्सित हो  जाती हैं तब समाज में वर्णसंकर फ़ैल जाता है  …। जो लोग अपने गौरवशाली इतिहास को भूल गए  वे हिन्दू संस्कृति और संस्कारों को क्या  जाने  …… 
ग़यासुद्दीन के प्रपौत्र खुद को 'एक्सिडेंटल ' हिन्दू मानेंगे ही !  मुस्लिम अब्बा फ़िरोज़ खान की संतान भला हिन्दू कैसे हो सकती है  …अब मुस्लिम अब्बा और ईसाई मदर के 'शहज़ादे' राउल दाविंचि  उर्फ़ राहुल गांधी हिन्दू संस्कार और संस्कृति में माँ ,बहन और देवी जैसे पवित्र रिश्तों की मान्यता या महिमा क्या जाने  … मंदिर देवालयों में  चरित्रहीनता या आतंकवाद का पाठ नहीं पढ़ाया जाता  … यदि कोई राक्षक साधु वेश में सीता हरण करता है ,तो क्या सारे  का सारा साधु समाज रावण हो गया  … फिर किसी वर्णसंकृत विधर्मी को मंदिरों पर ऐसी ओछी टिप्पणी का अधिकार  किसने दिया ?

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

जाकी पप्पू

 जाकी पप्पू 


पार्टी की महिला  प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते  हुए अचानक ही 'भावुक'  हो गए 'राजकुमार ' यह  क्या कह गए  .... मंदिरों में जाने वाले ,महिलाओं को माँ -बहिन -देवी कहने वाले ही  उन्हें बसों में छेड़ते हैं।
 इतनी करारी हार के  बाद  तो अच्छे अच्छों का  मानसिक  संतुलन बिगड़ जाता है  .... मगर राहुलजी का जाकी मिजाज़  जस का तस कायम है   .... चुनाव संग्राम में भी टाफी खा -खा कर खूब गुबारे उड़ाते रहे   …   गरीबी 
क्या है  … सब बकवास - महज़ इक मानसिक अवस्था है  .... केरल के  कांग्रेसी नेता मियां मुस्तफा ने जनाब  को  जोकर क्या  कह दिया , पारिवारिक मसखरों ने मुस्तफा को बर्खास्त करवा  कर ही दम लिया  … अब 'जोंक' जोक नहीं करेगा तो  क्या कुमार बिस्वास करेगा  … 
राहुलजी को यह उपहास -ज्ञान अपने गुरु दिग्गी -मियां जी से   गुरु-दक्षिणा में मिला  .... और दिग्गी मियां को अपने गुरु श्री श्री जगद्गुरुजी से।    तभी तो दिग्गी मियां किसी दुष्ट -आतंकी के आगे-पीछे  ' श्री और जी'  लगाना नहीं भूलते। 
 चेले से अधिक गुरु  को कौन जानता होगा  … दिग्गी मियां अपनी बेटी की आयु की   महिला से ही इश्क लड़ा बैठे  … मंदिर में  देवी जी के साथ खूब आरती करते दिखे  …  अब चेला ऐसे बगुला- भक्तों से अपने  दल की देविओं को  आगाह कर रहे हैं  … मज़ाक  है क्या ?

रविवार, 10 अगस्त 2014

अष्टावक्र

 अष्टावक्र

"मुक्ति  का अभिमानी मुक्त है , और बद्ध  अभिमानी बद्ध है।  किंवदन्ती सत्य है  कि जैसी मति होती है वैसी ही गति होती है।  "

अष्टावक्र कहते   हैं कि ' जैसी मति होती है वैसी ही गति होती   है '  अध्यात्म का एक  सूत्र और है    कि '  अंत मति सो गति ' यानि मृत्यु के  समय जैसी मति होती  है वैसी ही गति होती है है।  श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि "अनासक्त  पुरुष कर्म करता हुआ परम पद को प्राप्त होता है।  जानकादि ज्ञानी जन भी आसक्ति रहित कर्म द्वारा ही परम सिद्धि को   प्राप्त हुए। 
गीता में यह भी कहा है -- 'योग : कर्मसु कौशलम् ' … जो योग में स्थित हो  कर अर्थात स्थितप्रज्ञ हो कर कर्म करता है वह भी मुक्ति का अधिकारी है। 
कर्म बंधन नहीं है ,   उसके प्रति जो आसक्ति है , राग है वही बंधन  है। 
 
उपनिषद् कहते हैं 'मन ही बंधन  और मुक्ति का कारण है।  मन में जैसी भावना होती है वैसी ही मनुष्य की गति होती है 

सोमवार, 4 अगस्त 2014

गीता ज्ञान और सैकुलर शैतान

 गीता ज्ञान और सैकुलर शैतान 

         एल आर  गांधी 

जस्टिस दवे ने समाज के चरित्र निर्माण के लिए गीता और महाभारत की अनिवार्यता के विषय में क्या कह दिया कि सैकुलर शैतानों और कौमनष्टो के ज़मीर पर आस्तीन का सांप  लोट गया। जस्टिस दवे ने गुरु-शिष्य प्रणाली से पलायन को सभी राष्ट्रीय समस्याओं का कारण बताया  …' यथा राजा तथा प्रजा ' यदि प्रजातंत्र में   सभी अच्छे हैं तो प्रजा शैतानों को क्यों चुनती है ?  यह विचार जस्टिस दवे ने कानून-विदों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।  
गीता को सत्य मार्ग पथ -प्रदर्शक की क़ानूनी मान्यता प्राप्त है  … न्यायालय में गीता की सौगंध उठाने वाले व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह न्याय के मंदिर में असत्य नहीं बोलेगा ! अब जिस व्यक्ति ने गीता को पढ़ा ही नहीं तो उससे कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि उसे सत्य असत्य की समझ है  ? 
गीता के ज्ञान के लिए 'पात्रता ' अनिवार्य है  … अर्जुन इस ज्ञान के पात्र थे तभी भगवान श्री कृष्ण ने गीता का ज्ञान उसे दिया  … जिस वक्त भगवान कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे रहे थे  … तो अधर्म के पक्ष में खड़े भीष्म पितामाह पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे  … काश ! पवन  मेरी  ओर हो जाए और माधव के मुखारविंद से निकले अमुल्य शब्द मेरे कानों को भी धन्य कर दें ?
बिना पात्रता के गीता का पठन -मनन और ग्राह्यता अधर्मियों के भाग्य में कदापि नहीं है। गीता और महाभारत में भारतियों को मानवीय मूल्यों के गहन ज्ञान से अवगत करवाया गया है।  गीता और महाभारत के ज्ञाता कभी भी अन्याय करने या सहने का पाप नहीं करते  … आज गीता के ज्ञान को बिसरा कर हम अन्याय को निरंतर सहने के घोर संताप को सहते जा रहे हैं  । शैतान को मानने वाले आतंकी  सदियों से भारतियों के खून से  होली खेल रहे हैं और गीता के ज्ञान को बिसरा चुके भारतीय 'अहिंसा' और मोक्ष के चक्रव्यूह में अभिमन्यु का संत्रास भोग रहे हैं।  
सैकुलर शैतान और कौमनष्ट , दुर्योधन की भांति कितना ही 'वज्र -अमानुष ' बन जाएं मगर गीता और महाभारत के ज्ञान की गदा से भारतीय भीम अंततय इनका अंत कर ही देगा  … जय भारत !